29.8.08

माँ नर्मदा प्रसंग : रेवा कुंड की कथा

मांडोगढ़ की रानी माँ नर्मदा जी की परम भक्त थी . वे प्रतिदिन शाही डोले में सवार होकर माँ नर्मदा में स्नान करती थी और गरीब तथा साधुओ को भोजन बाँटती थी यह उनका प्रतिदिन का कर्म था . रानी जब वृध्दावस्था को प्राप्त हुई . रानी नर्मदा माँ के अन्तिम दर्शन करने गई और हाथ जोड़कर माँ नर्मदा से कहा की माँ मै अब आपके दर्शन करने नही आ सकूंगी आप मुझे क्षमा करना ऐसा कहकर रानी दुखी मन से मांडोगढ़ वापिस लौट गई .

रात्रि में माँ नर्मदा ने रानी को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि महल के सामने एक कुंड बनवाओ और जब कुंड बन जाए तो तुंरत तुम और प्रजाजन कुंड के सामने आकर ऊँचे स्वर में माँ नर्मदे का उच्चारण करना मै उसी समय कुंड में प्रगट हो जावेगी और तुम वही स्नानं करना मै तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ . सुबह रानी ने स्वप्न का हाल राजा को कह सुनाया और राजा ने उसी समय एक कुंड तैयार करने का हुक्म दे दिया .

कुछ दिनों बाद कुंड तैयार हो गया और एक पक्का घाट बनवाया गया . रानी और प्रजाजनों ने कुंड के सामने आकर ऊँचे स्वर में माँ नर्मदा का बारम्बार उच्चारण करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते ही कुंड नर्मदा जल से लबालब भर गया और सबने रानी सहित प्रसन्नतापूर्वक कुंड में स्नान किया . ये कुंड रेवा कुंड के नाम से आज भी विख्यात है . परिक्रमावासियो को इस कुंड में स्नान कर माँ नर्मदा के दर्शन अवश्य करना चाहिए .

नमामि देवी माँ नर्मदा .

रिमार्क - माँ नर्मदा के अन्य तीर्थो के बारे में कल से निरंतर आलेख.....