30.8.08

माँ नर्मदा प्रसंग : श्री हनुमंतेश्वर तीर्थ का महत्त्व

रावण पर और लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात मर्यादा पुरषोत्तम राम अयोध्या के गद्दी पर आसीन हुए और उनके परमभक्त हनुमान जी उनकी सेवा में रत हो गये . एक श्रीराम से हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा कि मै भगवान शंकर जी के दर्शन करना चाहता हूँ आप मुझे आज्ञा दे . उसी छड़ श्री राम से आज्ञा प्राप्त कर हनुमान जी उड़कर कैलास नगरी पहुंच गए और द्वार पर तैनात नंदी जी से अन्दर जाने की अनुमति मांगी . नंदिकेश्वरजी ने हनुमान जी से कहा तुमने रावण के पुत्रो का वध किया इसीलिए पहिले जाकर तुम ब्रामण हत्या का प्रायश्चित करो तब आपको भोलेनाथ दर्शन देंगे और तब ही तुम्हे मुक्ति मिलेगी . आप नर्मदा तट पर जाकर किसी जगह जाकर आप शिवजी की पिंडी की स्थापना करे और तप करे .

हनुमान जी ने ऐसा ही किया और नर्मदा तट पर जाकर शिवजी की पिंडी की स्थापना की और तप किया . श्री हनुमान जी ने १०० वर्ष तक तपस्या की तब जाकर भगवान शंकर जी प्रगट हुए . हनुमान जी भगवान शंकर के चरणों में लेट गए तब भगवान भोलेनाथ ने हनुमान जी से कहा कि आज आप ब्रामण हत्या से मुक्त हो गए है जो पिंडी आपने नर्मदा तट पर स्थापित की थी यह मूर्ती आज से हनुमंतेश्वर के नाम से विख्यात होगी और जो भी भक्त यहाँ आकर श्रद्धापूर्वक पूजा करेगा वो ब्रामण हत्या से मुक्त हो जावेगा .

रिमार्क - अगली कड़ी कल - भडोच में माँ नर्मदा जी का आगमन .