6.10.08

हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.

एक आशियाना सजाने में मेरी हस्ती मिट गई
उन्हें हालेगम सुनाने में तमाम उम्र गुजर गई
देखिये वो..एक पल में फ़िर से बेगाने हो गए
कई कई बरस लग गए उन्हें अपना बनाने में.

मेरे दिले गम पर कहकहे लगाए थे सभी ने
हमें सारे ज़माने में मुझे एक भी हमदर्द न मिला
गीत गजल.. जब मेरे अश्को पर ढल गए यारा
हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.

कोई तो अपनी है जो मुझे अपने पास बुलाती है
यूँ बुलाती है मुझे वो मेरी प्यारी अपनी तो है
यारब उनका रहमो करम कैसे दिल से भुला दूँ
जो मुझे अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है.

...........