19.12.08

हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है


हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है
मैंने काँटों भरी राह को हम सफर समझा है.



मेरी आँखों में बसे दिल को उतर कर नही देखा
समुन्दर नही देखा कश्ती के उस मुसाफिर ने.

चाँद तारे मुस्कुराते रहे, दिल में अरमां बने रहे
बढ़ता दर्द ढलती रात पर वो फ़िर भी नही आए.







गिरता है समुन्दर में दरिया बड़े उमंग उत्साह से
लेकिन दरिया में समुन्दर नही गिरता प्यार से

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