6.1.09

मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको

दोनों की किस्मतो का आज फैसला होगा
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.

तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.

किस्मत कहाँ.. मै उड़कर पहुँचू बहारो तक
कभी दिल में कभी गुलिस्ता को झांकता हूँ.

अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.

मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको
उसकी दुनिया मै अपने साथ ले जा रहा हूँ.