25.2.09

फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है ?

ब्लॉग में दो तीन दिनों से कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था . विगत बीस दिनों के दौरान चड्डी बनियान और आरोप प्रत्यारोप से लबरेज खूब पोस्ट पढ़ी और कुछ नामचीन ब्लागरो के संस्मरण पढ़े . एक ब्लाक्स के कमेंट्स बाक्स में कुछ इस तरह की टीप पढ़ की दिल दुखित हो गया और यूं ही लगने लगा कि अमर्यादित हिंदी भाषा का प्रयोग अधिकाधिक बढ़ने लगेगा तो क्या हमारी मातृभाषा हिंदी विश्व स्तर पर सम्मानजनक स्थान अर्जित कर सकेगी ब्लागर्स भाई को बाध्य होकर अपने ब्लॉग में कमेंट्स बॉक्स में माडरेट कुंजी का प्रयोग करना पड़ा.

जब हिंदी में कुछ सार्थक लेखन नहीं किया जावेगा तबतक हमारी हिंदी भाषा स्तर पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं कर सकेगी यह कटु सत्य है यह प्रश्नचिह्न हमारे सामने खडा हो गया है . हिंदी भाषा को नेट पर सारी दुनिया में पढ़ा जाता है यदि अमर्यादित पोस्टो और टीपो को बाहर के लोग पढेगें तो उसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा भाई समीर लाल जी ने अपने ब्लॉग उड़नतश्तरी में सार्थक शब्द का प्रयोग अपनी पोस्ट में कर कुछ संकेत तो दे दिए है . ब्लॉग जगत के कलमकारों को इस और गंभीरता से विचार करना चाहिए कि अच्छा लिखे और अच्छे विचार ब्लॉग के माध्यम से पाठको को उपलब्ध कराये .

* माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के द्वारा "अमर्यादित टीप पोस्ट देने वाले ब्लागर्स को न्यायालयीन कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है" संकेत दिए गए है सराहनीय है जोकि ब्लागजगत के लिए आगे शुभकारी होंगे और कम से लोग कमेंट्स पोस्ट देते समय मर्यादित भाषा का प्रयोग करेंगे. ....... ये तो हो गई मेरे दिल की बात.

उपरोक्त खरी खोटी लिखने के बाद यह कविता " फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है " प्रस्तुत कर रहा हूँ .बचपन के दौरान मेरे पिता यह कविता मुझे हमेशा सुनाया करते थे.

फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है ?


अधर तुम्हारे हाथ तुम्हारे
बंसुरिया भी साथ तुम्हारे
इस पर दर्द गीत गाओ तो
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है .

तुम चाहो तो अपने स्वर से
द्वार द्वार दिवाली कर दो
मरुस्थल की सूनी झोली में
उपवन की हरियाली भर दो

बिजली की हर छठा तुम्हारी
अम्बर की हर घटा तुम्हारी
इस पर यदि चातक दे गाली
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है

तुम चाहो धूमिल संध्या को
चाँदनी से बोर बोर कर दो
हर सागर की गहन उदासी
मधुचंदा बन तुम हिलोर दो

द्रश्य तुम्हारे नैन तुम्हारे
मधुवन में तुम पतझड़ ढूढो
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है

बगिया के फूलो को पतझड़
के घर गिरवी मत रख देना
काली रजनी में कम से कम
झिलमिल सा दीपक रख देना

जीवन की हर ज्योति तुम्हारी
मेहनत की हर सीक तुम्हारी
इस पर अंधियारों में तुम बैठे
फिर इसमें मेरा दोष कहाँ है