2.3.09

खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..

कोई लकीर न मिली कभी हमें खुशनसीबी की
खुद अपना हाथ हमने कई बार गौर से देखा है..

मै अक्सर तन्हाइओ में जाकर तुझे खोजता हूँ
कही मेरे हाथो की लकीरों में नाम तेरा होगा..

गर देखना है तेरा मुक़द्दर दहलीज के बाहर
तू खुद देख तकदीर खुले आसमाँ तले बसती है..

वो किस तरह कैसे मै क्या कहूं और क्या लिखूं
मेरी तकदीर न जाने कैसे कैसे खेल खेल गई है..

अजीज दोस्त भी नहीं रहते है तकदीर के भरोसे
खुद की तकदीर अपने हाथो ही बनाना पड़ती है..

गर आदमी की तकदीर आदमी के हाथो में होती
हर आदमी खुद को खुदा कहलवाना पसंद करता..