10.6.09

निरंतर डेढ़ सौ वी पोस्ट एक रचना : तुम्हारे हर ख़त का लिफाफा संभाल कर रखा है

आप सभी से मिल रहे निरन्तर स्नेह और शुभाशीष के फलस्वरूप आज मुझे निरन्तर हिंदी ब्लॉग में डेढ़ सौ वी पोस्ट लिखने का अवसर मिला है . हिंदी ब्लॉग समयचक्र के बाद मुझे निरंतर ब्लॉग बहुत पसंद है . निरंतर में भी मैंने हरसम्भव कविता कहानी जोग सामयिक लेख आदि समय समय पर लिखने का प्रयास किया है . आप सभी ने समय समय पर मेरी हौसलाफजाई की है उससे मुझे निरंतर लिखने की प्रेरणा प्राप्त होती है इस हेतु मै आप सभी का दिल से शुक्रगुजार हूँ आभारी हूँ . विश्वास है कि आप इसी तरह भविष्य में भी स्नेहाशीष बरसाते रहेंगे.


तुम्हारे हर ख़त का लिफाफा संभाल कर रखा है


तेरे साथ गुजरे हुए लम्हों की याद आने लगी है
वो बीती यादे कहानी बन दिल में छाने लगी है.

ख़त पढ़ कर सारी रात मेरा दिल रोता रहा है
आप है जो हाले दिल देख कर मुस्कुरा रही है.

तेरे ख़ूबसूरत खतो को मैंने संभाल कर रखा है
जैसे कोई अपने दिल को हिफाजत से रखता है.

कभी तुम्हारे ये ख़त बड़े ही ख़ूबसूरत लगते थे
पढ़ कर अब अश्को के सिवाय कुछ नहीं देते है.

तुम्हारे हर ख़त का लिफाफा संभाल कर रखा है
हर खतो के मजनूनो को दिल में उकेर रखा है.

जब उनके खतो के मजनून उन्हें पढ़कर सुनाये
खुद के लिखे अल्फाजो को वो अब भूल गए है.


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