22.8.09

व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई : 22 अगस्त जन्मदिन पर एक मूल्यांकन



आज प्रसिद्द व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्मदिवस है .



श्री हरिशंकर जी का झुकाव अधिकतर सर्वहारा वर्ग की ओर अधिक था . 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था तत्समय सारे देश में आदर्शवादिता चरम सीमा पर थी ओर लोगो के दिलो में आदर्शवादिता का जज्बा कायम था . लोगो के नए नए अरमान थे वे देश ओर साहित्य के लिए समर्पित थे . प्रहरी में हरिशंकर जी परसाई की पहली रचना " पैसे का खेल " 23 नवम्बर 1947 को प्रकाशित हुई थी ओर इसके बाद धोखा, भीतर के घाव, भूख के स्वर ओर स्मारक ओर जिंदगी ओर मौत, दुःख का ताज आदि एक से बढ़कर एक उनकी रचनाये प्रकाशित हुई जोकि अत्यंत भावप्रधान थी जिनमे गरीबी की छाप स्पष्ट दिखलाई देती है.





नौकरी से त्यागपत्र देकर श्री परसाई जी ने अल्प साधन होते हुए भी लेखन के क्षेत्र में पदार्पण किया वे सर्वहारा वर्ग के शुभचिंतक थे बाद में उनका झुकाव बामपंथ की ओर हो गया था जिसके कारण उनके लेखो में इस प्रकार के वाक्यों का अधिकतर उल्लेख किया गया है जैसे -

पर जहाँ जीवन की परिभाषा मृत्यु को टालते जाना मात्र हो वहां जीवन को नापता हुआ वर्ष पास पास कदम रखता है . पर जो जीवन की कशमकश में उलझे है जो पसीने की एक एक बूँद से एक एक दाना कमाते है जिन्हें बीमार पड़ने की फुरसत नहीं है (पुस्तक-जिंदगी ओर मौत) से साभार.

जो साहित्यकार गरीबो ओर पिछडे वर्ग के लिए चिंतन करता है ओर उनके हितों को ध्यान में रखकर रचना धर्मिता कार्य लेखन करता है वह निश्चय ही दूरद्रष्टि का मालिक होता है इसमें कोई संदेह नहीं है ओर जो लेखक अन्तराष्ट्रीय राजनीति ओर समस्याओं पर इतना अधिक लिख सकता है वह अपने मोहल्ले गाँव ओर कस्बे से बंधा नहीं रह सकता है और निश्चित ही संकीर्ण चिन्तक हो ही नहीं सकता है . परसाई जी का स्वतंत्र चिंतन समग्र सर्वहारा वर्ग के लिए था जो इस देश की सीमाओं को पार करते हुए देश विदेश तक फ़ैल गया . पाई पाई जोड़कर अपने चिंतन द्वारा श्री परसाई जी द्वारा जो साहित्य रचित किया गया है आज हम उसे परसाई साहित्य के नाम से जानते है और पढ़ते है .

श्री परसाई जी की पहली रचना "स्वर्ग से नरक" जहाँ तक पहली रचना है जोकि मई १९४८ को प्रहरी में प्रकाशित हुई थी जिसमे उन्होंने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ पहली बार जमकर लिखा था . धार्मिक खोखला पाखंड उनके लेखन का पहला प्रिय विषय था . वैसे श्री हरिशंकर जी परसाई कार्लमार्क्स से जादा प्रभावित थे . परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में "सदाचार का ताबीज" प्रसिद्द रचनाओं में से एक थी जिसमे रिश्वत लेने देने के मनोविज्ञान को उन्होंने प्रमुखता के साथ उकेरा है .



जिस स्थान पर अमन चैन हो वहां पुलिस वाले कैसे अशांति फैला रहे है और कैसे भ्रष्टाचार फैला देता है को लेकर परसाई जी की रचना "इस्पेक्टर मातादीन" लोकप्रिय रचनाओं में से एक है . इस तरह यह कहा जा सकता है की श्री हरिशंकर जी परसाई जी की रचना पहले के समय में प्रासंगिक थी और आज भी है और भविष्य में भी रहेगी . चूंकि श्री हरिशंकर जी परसाई जी इस शहर मे रहे है और उनका संस्कारधानी से अट्ट नाता था और यहाँ के वाशिंदों साहित्यकारों से उनका आत्मिक लगाव- जुडाव था . जन्मदिन के अवसर पर उनके व्यक्तिव और कृतित्व का भावभीना स्मरण करते हुए संस्कारधानी के ब्लागर्स , साहित्यकारों और समस्त जनों की ओर से शत शत नमन करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ .