9.10.09

सदगुरु वचनामृत : पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी की कलम से

घडी पास में होने पर भी जो समय के प्रति लापवाही करते है, समयवद्ध जीवनक्रम नहीं अपनाते उन्हें विकसित व्यक्तित्व का स्वामी नहीं कहा जा सकता है घड़ी कोई गहना नहीं है . उसे पहिनकर भी जीवन में उसका कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं दिया जाता , तो यह गर्व की नहीं शर्म की बात है समय की अवज्ञा वैसे भी हेय है, फिर भी समय निष्ठा का प्रतीक चिन्ह (घडी) धारण करने के बाद यह अवज्ञा तो एक अपराध ही है
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उत्साह जीवन का धर्म , अनुत्साह मृत्यु का प्रतीक है उत्साहवान मनुष्य ही सजीव कहलाने योग्य है उत्साहवान मनुष्य आशावादी होता है और उसे सारा विश्व आगे बढ़ता हुआ दिखाई देता है विजय, सफलता और कल्याण सदैव उसकी आँख में नाचा करते है . जबकि उत्साहहीन ह्रदय को अशांति ही अशांति दिखाई देती है
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आज अनेको ऐसी पुराणी परम्पराये एवं विचारधाराये है जिनको त्याग देने से अतुलनीय हानि हो सकती है साथ ही अनेको ऐसी नवीनताये है जिनको अपनाए बिना मनुष्य का एक कदम भी आगे बढ़ पा सकना असंभव हो जायेगा नवीनता एवं प्राचीनता के संग्रह एवं त्याग में कोई दुराग्रह नहीं करना चाहिए बल्कि किसी बात को विवेक एवं अनुभव के आधार पर अपनाना अथवा छोड़ना चाहिए

साभार - पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी की कलम से
जय गुरुदेव