19.10.09

मुंशी प्रेमचंद : धन और प्रतिष्ठा की अपेक्षा मुझे देश भक्ति अधिक प्यारी है

अंग्रेजी शासनकाल में मुंशी प्रेमचंद एक प्रसिद्द उपन्यासकार के रूप में स्थापित और प्रख्यात हो चुके थे और अपनी लेखनी के माध्यम से देश में देशभक्ति जगाने का वे कार्य कर रहे थे. उस दौरान अंग्रेजो की यह नीति थी की जैसे भी बने विद्वानों , प्रतिभावानों को सरकार का समर्थक बना लिया जाए . इसके लिए भारतीय युवा जनों को तरह तरह के नौकरी और पद प्रतिष्ठा के प्रलोभन दिए जाते थे इस हेतु तरह तरह के जाल-जंजाल बुने जाते थे क्योकि अंग्रेजो को ये डर लगा रहता था की ये साहित्यकार कलमकार विद्रोह भड़काने का कारण न बन जाए .

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर सर मालकम ने मुंशी प्रेमचंद को अपनी और मिलाने के लिए एक चाल चली . अंग्रेजो के जमाने में राय साहब का खिताब सबसे बड़ा राजकीय सम्मान माना जाता था . कई विद्वान प्रतिभावान जिनका मनोबल कमजोर था इस खिताब को पाने को अपना सम्मान समझते थे . मुंशी प्रेमचंद को यह समझते देर न लगी की उन्हें यह खिताब क्यों दिया जा रहा है .

एक अंग्रेज द्वारा राय साहब का खिताब और भारी रकम श्री मुंशी प्रेमचंद के घर यह कहकर पहुंचा दी गई की माननीय गवर्नर द्वारा उनकी रचनाओं से प्रभावित होकर यह उपहार भेजा गया है . उस समय मुंशी प्रेमचंद घर पर नहीं थे . घर पहुँचने पर मुंशी प्रेमचंद जी को इस बात की जानकारी मिली . उनकी पत्नी ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की आर्थिक विपन्नता के समय यह खिताब और यह राशिः बड़ा सहारा है .

मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा दुःख व्यक्त करते हुए कहा " एक देश भक्त की पत्नी होते हुए तुमने यह प्रलोभन स्वीकार कर लिया यह मेरे लिए शर्म की बात है" . मुंशी प्रेमचंद तुंरत उस राशि और खिताब को लेकर गवर्नर साहब के पास पहुंचे और यह कहते हुए सहानुभूति के लिए धन्यवाद वह रकम और खिताब गवर्नर साहब को लौटा दिया और कहा आपकी यह भेट मुझे स्वीकार नहीं है , धन और प्रतिष्ठा की अपेक्षा मुझे देश भक्ति अधिक प्यारी है . आपका उपहार लेकर मै देश द्रोही नहीं बनना चाहता हूँ .