23.10.09

दो सौ वी पोस्ट : सज्जनता नम्रता उदारता सेवा आदि सदगुण और मानवीय प्रखरता

सभी ब्लॉगर भाई बहिनों के द्वारा मेरा ब्लाग लेखन में लगातार उत्साहवर्धन और निरन्तर हौसलाफजाई करते रहने से आज मुझे " निरन्तर " ब्लॉग में दो सौ वी पोस्ट पूरा करने का मौका मिला है जिसके लिए मै आप सभी का आभारी हूँ . आज की दो सौ वी पोस्ट आचार्य श्रीराम शर्मा जी को समर्पित है ..

***** सज्जनता नम्रता उदारता सेवा आदि सदगुणों की जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है पर साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए की प्रखरता के बिना ये विशेषताए भी अपनी उपयोगिता खो बैठती है और लोग सज्जन को मूर्ख दब्बू चापलूस साहसहीन भोला एवं दयनीय समझने लगते है . बहुत बार ऐसा भी होता है की डरपोक कायर संकोची पुरुषार्थ हीन व्यक्ति सज्जनता का आवरण ओढ़कर अपने को उदार या अध्यात्मवादी सिद्ध करने का प्रयत्न करते है . डरपोकपन को साहसहीनता को दयालुता क्षमाशीलता संतोष वृद्धि की आड़ में छिपाना कितना उपहासास्पद होता है और उस भ्रम में रहने वाला कितने ही घाटे में रहता है . यह सर्वविदित है . लोग उसे बेतरह उगते और आयेदिन सताते है . इस स्थिति को भलमनसाहत का दंड ईश्वर की उपेक्षा धर्म की दुर्बलता दर्म की दुर्बलता आदि कहा जाता है जबकि वस्तुत वह प्रखरता की कमी के दुष्परिणाम हैं *******