12.11.09

माइक्रो पोस्ट ....

भारतीय संस्कृति कभी बहुत ही उच्चकोटि की थी . भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ परम्पराएं संसार भर में सम्मान की नजर से देखी जाती थी पर अन्धकार युग में विदेशी दासता के साथ साथ भारतीय परम्पराओ में अनेको विकृतियो ने प्रवेश कर लिया और उनमे कुरीतियों अन्धविश्वासों और मूढ़ मान्यताओ ने अपनी गहरी जड़ें जमा ली है .

वर्णाश्रम व्यवस्था सनातन है पर जाति पांति के नाम पर बरती जाने वाली नीच और छुआछूत के लिए उसमे कोई स्थान है . मनुष्यमात्र एक है . गुण कर्म स्वभाव के कारण किसी को उंच नीच ठहराया जा सकता है पर जन्म और वंश के कारण न कोई उंच होता है और न कोई नीच होता है .

नर और नारी के बीच बरती जाने वाली असमानता भी इसी प्रकार अनुचित है . मनुष्य जाति के दोनों घटक सामान्य रूप से एक है उनके बीच भेदभाव उत्पन्न करने वाली प्रथाओ को अमान्य ठहराया जाना चाहिए . परदा प्रथा जैसे रिवाज इस युग में स्वीकार्य योग्य नहीं होना चाहिए .