30.12.08

ओह : ब्लागिंग का नशा : दो वर्ष कट गए पता ही नही चला

इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है
काँटों भरी राह को हमसफ़र समझा है.


एक समय अखबारों में पढ़ा था कि इंटरनेट पर ब्लाक्स के माध्यम से आप अपने विचार स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त कर सकते है . घर में लगे नेट का फायदा उठाया और स्वयं का ब्लॉग बनाने में जुट गया आखिरकार भारी जद्दोजहद के बाद ब्लॉग बना लिया . मेरे परिजन प्रकाशक थे . सैकडो लाखो किताबे प्रकाशित होती थी . बचपन से लेखन की प्रेरणा मुझे अपने परिवारवालों से मिली है. लिखने का शौकीन मै बचपन से रहा हूँ . अखबारों में लेख कहानी आदि सामायिक समस्या पर अपने विचार रखता रहता था उसके पश्चात मध्यप्रदेश जनहित संरक्षण समिति का संयोजक होने के नाते अखबारों में जमकर विज्ञप्ति बाजी की . विज्ञप्ति बाजी का काम भी आखिरकार बोरियत भरा लगा उससे भी उब गया .

इंटरनेट पर अपना ब्लॉग क्या बना लिया जैसे डूबते को एक तिनके की रोशनी दिखाई दे गई हो. सबसे पहले समयचक्र ब्लॉग बनाया . सबसे पहले मेरे ब्लॉग पर उड़नतश्तरी और उन्मुक्त जी आए और उन्होंने ब्लॉग हिन्दी में लिखने के लिए मेरी हौसलाफजाई की उसके बाद से मै निरंतर हिन्दी भाषा में निस्वार्थ भावः से इस भावना के साथ कि ब्लागलेखन को मुझे व्यवसाय नही बनाना है और न ही ब्लॉग के माध्यम से कोई कमाई करना है. ईश्वर ने मुझे जीवन यापन करने हेतु काफी कुछ दिया है बस उद्देश्य यह कि हिन्दी भाषा का परचम सारी दुनिया में लहराए . सारी दुनिया के लोग हिन्दी भाषा पढ़े और हमारी भाषा का स्थान सर्वोपरि हो . करीब पॉँच हजार लोग हिन्दी भाषा में ब्लॉग लेखन कर रहे है जोकि विश्व में काफी रूचि चाव के साथ पढ़े जाते है .

ब्लॉग लेखन के दो वर्ष पूरे होने के दौरान मैंने अनुभव किया कि ब्लाक्स एक दूसरे को जानने और एक दूसरे के विचारो को जाने के अच्छा माध्यम है . दो वर्षो के दौरान मेरी अनेको ब्लागरो से टेलीफोनिक बात हुई और कई ब्लागरो से मेल मुलाकात भी हुई . कई ब्लागरो से भाई चारा सम्बन्ध भी स्थापित हुए . भाई समीर लाल "उड़नतश्तरी", ज्ञानदत्त जी पांडे, राज भाटिया जी , दीपक भारतदीप जी, अरविन्द मिश्रा जी, रंजू जी, जाकिरअली रजनीश जी, विवेक सिग जी, पी.एन सुब्रमनियम जी, नीरज गोस्वामी, सुनीता शानू जी, कुमार धीरज जी, डाक्टर अनुराग जी, दिनेशराय जी द्विवेदी, परमजीतसिह बाली जी, स्मार्ट इंडियन, नीतेश राज जी, अनिल पुसादकर जी, भाई संजीव तिवारी जी, डाक्टर अमर कुमार जी, सीमा गुप्ता जी, प्रीती वर्थवाल जी, भाई प्रेमेन्द्र प्रताप सिह जी, अभिषेक ओझा जी, कुश जी ,रतन सिह शेखावत, मोनिका दुबे जी (भट्ट),मनुज मेहता जी , धीरु सिह जी, महक, अजय कुमार झा, विनय जी , अर्श जी, संगीतापुरी जी, अशोक "मधुप" जी , योगेन्द्र मौदगिल जी, प्रदीप मनोरिया जी, विष्णु बैरागी जी, अमित जी, सचिन मिश्रा जी, सुनीता शानू जी, रचना जी, राहुल सिद्धार्थ जी, शोभा जी, रंजना (रंजू )भाटिया जी, डाक्टर भावना जी, आशा जोगलेकर जी, रश्मि प्रभा जी, नारद मुनि जी, डाक्टर उदय मणि कौशिक जी, श्रद्धा जैन जी, जितेन्द्र भगत जी, मकरंद जी, एस.बी. सिह ,मानविंदर जी, पारुल जी, डाक्टर चन्द्र कुमार जी जैन जी, घुघूती बासूती जी ,अनूप शुक्ला जी और जबलपुर शहर के स्थानीय ब्लॉगर भाई विजय तिवारी "किसलय" जी, भाई सुशांत दुबे 'लाल और बबाल " जी, राजेश कुमार दुबे जी "डूबेजी",भाई पंकज स्वामी जी "गुलुस" आदि ब्लॉगर समय समय पर मेरे ब्लॉग पर आकर टीप /अभिव्यक्ति प्रदान कर मेरा मानसिक मनोबल बढाते रहते है जिसके फलस्वरूप ब्लॉग लेखन में मेरी निरंतर रूचि बढ़ती ही गई है.

नौकरी के उपरांत मुझे जो समय मिलता है उसका मै भरपूर उपयोग ब्लॉग लेखन में कर लेता हूँ . बर्तमान में मै "समयचक्र" "निरंतर" और प्रहार लिख रहा हूँ और भरसक प्रयास करता हूँ कि अच्छी कविताये, सामायिक लेख, व्यंग्य आदि इन ब्लागों के माध्यम से प्रस्तुत करूँ . ब्लॉग लेखन के दो वर्ष पूर्ण होने पर मै आप सभी का आभारी हूँ कि आपकी उत्साहवर्धक अभिव्यक्ति/विचारो से/ टीप से निरंतर ब्लॉग लेखन में मेरा मानसिक संबल बना रहा है जिसके फलस्वरुप मै दो वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर सका हूँ जिस हेतु आप सभी धन्यवाद् के पात्र है और मै आप अभी का आभारी हूँ और आप सभी से अपेक्षा करता हूँ कि भविष्य में भी आप सभी इसी तरह से उतासहवर्धन और अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करते रहेंगे. ब्लागजगत से जो प्यार और सहयोग मुझे मिला है उसे द्रष्टिगत रखकर मै यही कहना चाहूँगा

जीना यहाँ मरना यहाँ
इसके सिवाय जाना कहाँ
तुम मुझको आवाज दो
हम है यहाँ हम है यहाँ



नववर्ष की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई और आने वाला वर्ष आपके जीवन में खुशियाँ बरसाए . आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे और सुख सम्रद्धि लाये.

महेंद्र मिश्राजबलपुर.

28.12.08

पलक पांवडे बिछाये रहता हूँ सुबह शाम

याद करता हूँ हर रोज सुबह शाम तुझे
पलक पांवडे बिछाये रहता हूँ सुबह शाम.

इस दिल में बस तेरी मीठी यादे बसती है
खुदा से तेरे आने के लिए दुआ करता हूँ.

काश कभी गर ऐसा हो जाए ए मेरे खुदा
मेरे तन्हा ख्वाब हकीकत में बदल जाए.

वो मुझसे मिले और तमन्ना मेरी पूरी हो
मुझे फ़िर से बेइन्तजा मोहब्बत मिल जाए.

हर ख्बाव में हर तरफ़ हर नजर में बस
मुझे सीमा तुम ही तुम नजर आती हो.

मेरी बेपनाह मोहब्बत से तुम अंजान हो
क्या बात है मुझे तुम पसंद आने लगी हो.

दिल में अजीब टीस कशिश सी होती है
जब तुम मेरे ख्यालो में चली आती हो.

तेरी याद में जब लिखता हूँ मनपसंद शेर
ख्यालो और ख्बावो से दूर चली जाती हो.

25.12.08

आँगन में आज फ़िर से गुलाब खिला है



आँगन में आज फ़िर से गुलाब खिला है
शायद वो इस तरफ़ दो कदम चला है
आँखों में मस्ती है चेहरा गुलाबी सा है
मुझे यार का ख़त मुद्दतो बाद मिला है.

किस आफत में मेरी जान फंस गई है
चाहत में मेरा हर एक लम्हा गुजरता है
ओ मेरे महबूब निगाहें न फेरना मुझ से
हर खुशी है इस सूने हयात में गर तू है.

22.12.08

अपनी ढपली अपना राग अलापना कभी कभी मंहगा साबित हो सकता है.

कहा गया है कि व्यक्ति को उचित अनुचित का विचार करना चाहिए कि जो कार्य वह कर रहा है क्या समय के अनुरूप है या किसी ने जो सलाह दी है वह उचित है अथवा उचित नही है . कभी कभी व्यक्ति उचित अनुचित का ध्यान न रखकर अपनी ढपली और अपना राग अलापने लगता है और उस स्थिति में वह किसी की सलाह मानने को भी तैयार नही होता है और उसे अपने हित अहित का ख्याल भी नही रह जाता है जिसका खामियाजा उसे कभी कभी निश्चित रूप से भुगतने पड़ते है.
पंचतंत्र में मैंने आज एक कहानी पढ़ी है जिसमे लिखा है कि असमय गधे को गीत गाना कितना महंगा साबित हुआ. एक गधा भूखा प्यासा जंगल में घूमता फिरता रहता था उसकी दोस्ती एक गीदड़ के साथ हो गई. गीदड़ के साथ गधा घूम फिरकर बहुत मौज करता था और खा पीकर वह मोटा हो गया था. गीदड़ के साथ गधा एक रात तरबूज के खेतो में घुसकर खूब माल खा रहा था.



गधे ने गीदड़ से कहा - मामा मुझे बहुत अच्छा राग आता है मै तुम्हे एक गीत सुनाऊ.

गीदड़ बोला - बेटा भांजे यह समय राग सुनाने का नही है यहाँ हम चोरी से खा रहे है. तुम्हारा गाना सुनकर हमें खेत के रखवारे पकड़ लेंगे और हमारी पिटाई करेंगे.

गधा गुस्से से बोला मामा तुम जंगली होकर गीत का आनंद नही जानते हो . विद्या तो वह कला है जिस पर देवी देवता भी मोहित हो जाते है.

गीदड़ बोला - अरे तुम गाना नही गाते हो बस खाली रेंकते हो.



गधा क्रोध से बोला - मामा क्या मै गाना नही जानता हूँ अरे सात स्वर, उन्चास ताल, नवरस, छत्तीस राग और कुल १6५ गानों के भेद जो प्राचीनकाल में भरत मुनि ने सार रूप में कहें है उन सबका मुझे ज्ञान है. मामा तुम कहते हो मुझे कुछ नही आता है .

गीदड़ बोला - अरे अच्छा भांजे मै खेत के बहार जाकर खेत के रखवारे को देखता हूँ तुम खूब खुलकर गाना इतना कहकर गीदड़ चला गया.

अब गधा महाराज शुरू हो गए लगे जोर जोर से राग अलापने. गधे की आवाज सुनकर रखवारा हाथ में ताऊ का लट्ठ लेकर आया और उसने गधे की जोरदार धुनाई कर दी बेचारा गधा पिटता हुआ दौड़ लगाकर वहां से भाग गया. रास्ते में गधे को मामा गीदड़ मिल गया.

गीदड़ ने गधे से कहा - क्यो भाई बेवक्त राग अलापने का जोरदार मजा चख लिया है . इसीलिए कहा गया है जो अपना हित अहित नही समझते वो इसी तरह मार खाते है.

साभार कहानी-पंचतंत्र से.

19.12.08

हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है


हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है
मैंने काँटों भरी राह को हम सफर समझा है.



मेरी आँखों में बसे दिल को उतर कर नही देखा
समुन्दर नही देखा कश्ती के उस मुसाफिर ने.

चाँद तारे मुस्कुराते रहे, दिल में अरमां बने रहे
बढ़ता दर्द ढलती रात पर वो फ़िर भी नही आए.







गिरता है समुन्दर में दरिया बड़े उमंग उत्साह से
लेकिन दरिया में समुन्दर नही गिरता प्यार से

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16.12.08

जरा हंस मेरे यार इन जोगो पे

एक रईस मोटी काली एक सौन्दर्य विशेषज्ञ के पास यह पूछने गई कि उसे किस रंग का कपडा पहिनना चाहिए जिससे वह सुंदर और आकर्षक लगे .
सौन्दर्य विशेषज्ञ ने उसे सलाह दी देखिये श्रीमती जी भगवान ने गाने वाली चिडिया बनाई तो उसे कई रंग दिए. तितली को भी भगवान ने रंगबिरंगा बनाया पर भगवान ने हथिनी को सिर्फ़ एक ही रंग दिया है .

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कंजूस बाप ने अपने बेटे को एक चश्मा लाकर दिया . एक दिन बेटा कुर्सी पर चश्मा लगाये हुए बैठकर कुछ सोच रहा था .
बाप ने आवाज दी बेटा तुम क्या कर रहे हो क्या पढ़ाई कर रहे हो .
बेटा - नही पापाजी
बाप - फ़िर क्या तुम लिख रहे हो ?
बेटा - नही पापाजी
बाप - (गुस्से से) फ़िर अपना चश्मा उतार क्यो नही देता फिजूलखर्ची की आदत पड़ गई है.

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लेखक - दस साल लिखते रहने के बाद मुझे यह पता चला की मुझमे साहित्यसृजन की प्रतिभा बिल्कुल भी नही है.
मित्र - तो तुमने लिखना छोड़ दिया ?
लेखक - नही नही तब तक तो मै काफी प्रसिद्द हो चुका था.
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एक उपन्यासकार ने कहा "आखिरकार मैंने एक ऐसी चीज लिख ली है जिसे हर पत्रिका स्वीकार कर लेगी"
क्या है वह ? उसके मित्र ने पूछा
लेखक - "एक वर्ष के चंदे का चैक"

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12.12.08

ये जिंदगी हमें दी है तो तेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत ने

ये जिंदगी हमें दी है तो तेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत ने
फूलो ने जैसे चमन में बहारो की ताजी खुशबू दी है.

तेरी फरामोशी का जिक्र ये जब सारा जमाना करेगा
वो समां आयेगा जब हर दिल आशिक दीवाना होगा.

सितारों को देख कर प्यार की महफ़िल याद आती है
फलक में देखकर चाँद को महबूब की याद आती है.

अपनी वफ़ा को सीने में लगाकर ठिकाना छोड़ चले है
न राहों न मंजिल की ख़बर फ़िर भी मुसाफिर बना हूँ।
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9.12.08

राज भाई अमां यार गुस्सा थूक दो कह दो मुंबई सबकी है

एक चिट्ठी अमां यार तुम्हारे नाम
तुम्हारी तलाश है तुम कहाँ हो यार


राज भाई
(मोस्ट वांटेड}
मेरा मुबई... मेरी मराठी भाषा..... यहाँ रहना है तो मराठी बोलो .......अन्यथा खैर नही है मारे जाओगे , यहाँ तुम बाहरी लोग...... नौकरी नही कर सकते हो और यहाँ फुटपाथ पर खोमचे का ठेला नही सकते हो .
भाई तुमने तो तहलका मचा दिया था और तुम्हारे नाम से लोग मुबई जाने से डरने लगे थे . अचानक इन बिना बुलाये मेहमानों ने तुम्हारे शहर में हमला कर दिया



सैकडो की जाने ले ली पर अमां यार समझ में नही आता है कि हमले के बाद तुम कहाँ छापामार तरीके से छुप गए और और तो और न जाने तुमने अचानक दहाड़ना भी बंद कर दिया . तुम्हारी दहाड़ न सुनकर हम भी हक्के बक्के रह गए और सोचा कि शायद तुम कोई नया गुल खिला रहे होगे.

पर एक जगह तुम्हारी बढ़िया फोटो मेरे हाथ लग गई है जिसे देखकर पता चला कि तुम आजकल कुत्ता प्रेम में व्यस्त हो .भाई मेरी सलाह है कि तुम कुत्तो से प्रेम करना छोड़ दो और आदमियो से प्यार करना सीखो यही तुम्हारे ताऊ समझाया करते थे पर एक तो तुम हो भेजे में कुछ चढ़ता ही नही है .
तुम्हारी पिछले दिनों बहादुरी देखकर भाई मै भी तुम्हारा मुरीद हो गया हूँ . तुम्हारे बयान तुम्हारी दहाड़ न सुनकर आजकल मेरा खाना भी नही पच रहा है सो याद कर लिया है आखिर तुम भी तो मेरे देश के मेरे परिवार एक सदस्य हो तो लाजिम है तुम्हारी खोज ख़बर तो करनी पड़ती है.

यार समझ में नही आता तुम इतने बहादुर हो जब तुम्हारी मुबई में आतंकी हमला हो रहा था तो तुम आखिर कहाँ रहे . अब तो मुबई से संकट के बदल हट गए है अब तो प्रगट हो जाओ तुम्हारी मुबई को उत्तरवसियो ने अपने प्राणों का बलिदान कर बचा लिया है . कहाँ हो तुम और तुम्हारे मनसे के वीर सिपाही जो गरीब उत्तरवसियो के खोमचे के ठेला पलटाते है और गरीबो के पेट पर बेवजह लात मारते है . दक्षिण और उत्तर के कई वीर तुम्हारी मुबई के लिए शहीद हो गए है शायद तुम्हे पता चल गया होगा . अब शान्ति का राज कायम हो गया है यार और अपना गुस्सा थूक दो और अपनी सेना सहित बिल से बाहर आ जाओ और यार एक बार तो कह दो मुंबई हम सबकी है .

देख मुन्ना भाई नाराज नई होने का
तुम्हारा

बड्डा
खुन्नसबाज.

6.12.08

व्यंग्य कहानी : गीदडो तुम अपनी मांद में ही अच्छे लगते हो शेरो के बीच तुम्हे मौत नसीब होगी

आज बड्डे बड़े उदास थे. रह रहकर उन्हें अपनी बन्नो ब्लॉगर की काफी याद आ रही थी पता नही आतंकवादियो के हमले के बाद से बन्नो बाई न जाने कहाँ लुक छिपकर बैठ गई थी . अब बड्डे से न रहा गया सो वे बन्नो के घर खोजते खाजते पहुँच गए. एक बन्नो ने बड़ी मुश्किल से घर के दरवाजे खोले और बड्डे से अन्दर आने को कहा.

हाल चाल पूछने और चाय पानी पीने के बाद बड्डे ने बन्नो ब्लॉगर से कहा भाई क्या बात है आजकल तुम्हारा अता पता नही चलता है क्या बात है ? ब्लॉग में छुट पुट पोस्ट दे रही हो आखिर क्या बात है .

बन्नो - का खाक पोस्ट लिखे चारो तरफ़ चीख पुकार मार काट मची रहती है . जब देश में शान्ति रहती है तो हमारे ही लोग चीख पुकार मार काट मचाये रहते है जब ये शांत हुए तो मुंबई में बाहरी आतंकवादियो ने मार काट मचा दी और लोगो ने काफी चीख पुकार की . सैकडो निरीह लोगो को अपनी जाने गवानी पड़ी यह सब देख सुनकर मेरी ह्रदयात्मा दुखी हो गई है कुछ लिखने को अब मन नही करता है.

बड्डे - भाई यह घटना तो असामयिक घटित हो गई है इससे हम सभी को सबक लेना चाहिए और इन घटनाओ से निपटने के लिए अब हमें मानसिक रूप से तैयार रहना होगा . ऐसे गीदडो से डर गए तो कुछ भी नही कर सकते है जो समय आने पर शेर की खाल पहिन लेते है . मुबई में दो तरह के गीदड़ देखे गए है एक स्थानीय गीदड़ जो समय आने पर अपनी केंचुली से बाहर आते है और शेर की खाल ओड़ लेते है और दूसरे गीदड़ जिन्हें हाल में मुंबई के लोगो ने भोगा है.

बन्नो बाई को फ़िर अपने बड्डे ने गीदडो की ये कहानी सुनाई और कहा बन्नो तुम इस कहानी से सीख लो और इन गीदडो से मत डरो -

एक जंगल में शेर शेरनी अपने बच्चो के साथ शिकार के लिए जा रही थी तो राह में एक गीदड़ का बच्चा मिल गया . शेर शेरनी को इस गीदड़ के बच्चे पर बहुत दया आ गई उन्होंने उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया और अपने घर ले गए . गीदड़ का बच्चा अब शेर के बच्चो के साथ खाने पीने लगा और उनके साथ खेलने लगा . खा पीकर वह खूब मोटा ताजा हो गया . एक दिन गीदड़ का बच्चा शेर के बच्चो के साथ जंगल में खेल रहा था.

अचानक गीदड़ ने अपनी तरफ़ एक हाथी को देखा और उसने शेर के बच्चों को हाथी को दिखाया . शेर के बच्चे आखिरकार शेर के बच्चे थे उन्होंने तत्काल हाथी पर हमला करने का विचार किया तभी गीदड़ का बच्चा जोर से चिल्लाया भागो यहाँ से वरना जान चली जावेगी और यह कहकर वहां से भागा यह देखकर शेर के बच्चो ने भी भागने में ही अपनी भलाई समझी और वहाँ से फूट लिए. घर पहुंचकर शेर के बच्चो ने गीदड़ के बच्चे से कहा तुमने हाथी के सामने से हम लोगो को भागने के लिए क्यो कहा और शेर के बच्चे गीदड़ के बच्चे से लडाई झगडा करने लगे और उन्होंने उस गीदड़ को काफी मारा पीटा.

तभी उन शेर बच्चो की माँ वहां पहुँच गई. लडाई रोककर लड़ाई का कारण पूछा और कहा बेटा इसे मरो मत यह मर जावेगा यह सारा दोष तो इसकी जाति का है. यह तुम लोगो के साथ रह रहा है जरुर पर यह शेर पुत्र नही है. यह जंगल में पड़ा मिला था पला पोसकर मैंने इसे इसीलिए बड़ा किया था की एक दिन यह बड़ा होकर हमारी मदद करेगा पर मदद करना तो दूर छिपा बैठा रहा और दूसरो को भागने की सलाह देता है.

फ़िर शेरनी ने गीदड़ के बच्चे से कहा कि तुम शेरो के साथ रहकर शेर की खाल पहिनकर शेर नही बन सकते हो तुम यहाँ से भाग जाओ इसी में खैर है वरना मारे जाओगे.

आखिरी में बड्डे ने लम्बी साँस लेकर कहा देखो बन्नो शेर की खाल पहिनकर गीदड़ बिलों में छिपकर बैठे रहे और बाहरी गीदड़ तुमने देखा पढ़ा होगा अपनी मौत मारे गए अब काहे का डरना बन्नो जी हा हा हा आखिर गीदड़ तो गीदड़ होते है इनसे डरने की अब जरुरत नाही है.


महेंद्र मिश्राजबलपुर.

1.12.08

तुझे रुसवा न करेंगे अपने अल्फाजो से हम

हर मोड़ पर खुशी मिले जरुरी नही है
हंसके उठाते रहिये गम भी लाजिम है

यहाँ हर शख्स दोस्त नही हुआ करता
रस्मे दुनिया है यारा हाथ मिलाते रहिये

अंधेरे में जलते चिरागों को न बुझाओ
आग इस महकते चमन में न लगाओ

आज हर शख्स के...अजब से हाल है
शाद होकर भी हाले दिल हाल बेहाल है

उनके ओठों पर एक झूठी मुस्कान सी है
गमो के निशान ..उनके चेहरों पर भी है

गर तुम्हे चलना नही आता है राहेवफा पे
तो कांटे न बिछाओ तुम औरो की राह पे

तुझे रुसवा न करेंगे अपने अल्फाजो से हम
मरकर न करेंगे तेरी बेवफाई का जिक्र हम

...........

28.11.08

मुंबई घटनाक्रम के सन्दर्भ में - वो बेवजह गुनाह कर रहे है..

चुनाव कार्य पूर्ण करने के उपरांत आज समाचार पत्रों में टी.वी. में मुंबई में चल रहे घटनाक्रम को देखकर ह्रदय व्यथित हो गया है . धमाको से कई निरीह लोगो की जाने चली गई और आतंकवादियो द्वारा खुलकर खूनी खेल खेला गया उसे देखकर यह सोचने लगा हूँ कि लगातार घटनाये हो रही है जाने जा रही है आखिर इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है ? क्या हमारी व्यवस्था इसी घटनाओ को रोकने में सक्षम नही है ? क्या हम ऐसी आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए पूर्ण रूप से निपटने के लिए अपनी मानसिकता नही बना सके है ? आज की आतंकी घटना के संदर्भ में मन में उभरी कुछ पंक्तियाँ दे रहा हूँ -

वो बेवजह गुनाह कर रहे है
और तौबा करते है
मानवीयता को दरकिनार रख
निरीह अरमानो का
बेदर्दी से
खूनी सौदा कर रहे है.
खूनी नदिया
बह जाने के बाद
हम अपने ही
बाग़ और बगियाँ को
कोस रहे है .

बेवजह आतंकवादी घटनाओ में मृत सभी निरीह जनों को व्यथित ह्रदय से श्रध्धांजलि अर्पित है . ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे .

...............

24.11.08

दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.

मेरा दिल चाहे, कि कोई तो मेरा हो
मै वहां जाऊ, जहाँ हासिल हो खुशी.

मेरा दिल, ऐसे दिलदार को तरसता है
दिल से मेरे प्यार को,दिल में बसा ले.

दो बाते, जी चाहकर भी कर न सके
वो फ़िर, करके इकरारे मोहब्बत गए.

खुली थी आंख, वो दिल में समां गए
सीने में आग लगा गए, जब वो गए.

न समझेंगे न समझे अपना ख्याल करो
कुछ तो रहम, उस शोख जवानी पे करो.

न दिल पे एतबार न तुझ पे इख्तियार
फ़िर भी न जाने, क्यो तेरा इंतजार है.

.............

19.11.08

यूँ ही चुपचाप से गुजर गया बहुत चाहने वाला..



शख्स कितना कमजोर था आइना बनाने वाला
जीतता रहा है वो अक्सर पत्थर बनाने वाला.

यूँ ही चुपचाप से गुजर गया बहुत चाहने वाला
महसूस किया पत्थर से मेरा दिल कुचल गया.

उनकी सजी संवरी हुई जुल्फे हाय क्या कहने
मैंने निगाह डाल कर जुल्फों को मैला कर दिया.

न सलाम याद रखना न मेरा पैगाम याद रखना
आरजू है जानी दिल में मेरा नाम याद रखना.

दिल को ठेस लगी है फाड़कर दिखा नही सकते
दिली ठेस को सुनाना चाहे तो सुना नही सकते.

............

15.11.08

*कुछ मस्ती भरे चुटकुले*

एक जेबकट ने एक आदमी की जेब में हाथ डाला और पकड़ा गया
पकड़ने वाले ने जेबकट से कहा - तुम्हे शर्म नही आती है ?
जेबकट - शर्म तो तुम्हे आना चाहिए अपनी जेब में एक रूपया तक नही रखते हो.
***

अध्यापक - बच्चो क्या जानते हो भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह कौन सा है ?
छात्र - जी सर, हमारे घर के पीछे है वहां ढेर बन्दर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते देखे जा सकते है.
***

एक गंवार आदमी पहली बार शहर में सिनेमा देखने गया . पिक्चर शुरू होने के पहले सिनेमा हाँल की सारी बत्तियां बुझा दी गई . यह देखकर वह गंवार आदमी चकित रह गया और वह दौडा दौडा सीधे सिनेमा के मैनेजर के पास गया और मैनेजर से वह बोला - क्या हम उल्लू गंवार है जो हम अंधेरे में सिनेमा देखेंगे.
***

एक दोस्त दूसरे दोस्त से - क्यो भाई तुम्हारे यहाँ एक नौकरानी है वह तुम्हारे कपडे धोती थी आज क्या बात है यार तुम कपडे धो रहे हो ?
दूसरे दोस्त ने जबाब दिया - यार मैंने उससे शादी कर ली है .
***

पहली लड़की - मैंने उससे अपनी सगाई तोड़ दी है मै उससे नफ़रत करती हूँ और मै उससे प्यार नही करती हूँ .
दूसरी लड़की - पर तुमने सगाई की अंगूठी अभी तक पहिन रखी है ऐसा क्यो ?
पहली लड़की - ओह मै इस अंगूठी को अब भी प्यार करती हूँ .
***

भिखारी - असल में मै एक राईटर हूँ मैंने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है " पैसे कमाने के ह़जार तरीके "
राहगीर - फ़िर तुम भीख क्यो मांग रहे हो ?
भिखारी - यह भी उनमे से एक तरीका है .
***

11.11.08

पंचतंत्र की कहानी : कामचोर

पंकजवन में टीपू नाम का एक बन्दर था जो जानवरों में सबसे चालाक था. एक दिन रीतू जंबो हाथी और बिन्दु भालू एक साथ बैठे थे वे सभी परेशान थे . उनकी परेशानी यह थी कि जब दूरदराज से उनके नाम की कोई चिट्ठी आती थी तो उसे लाने में लम्बू जिराफ लाने में काफी समय लगाता था . वगैर पैसे दिए कोई भी चिट्ठी उन्हें नही मिलती थी.

एक दिन सबने बैठकर एकमत से सहमत होकर यह निश्चय किया कि पंकजवन का डाकिया टीपू बन्दर को बनाया जाए क्योकि वह चुस्त और चालाक भी है . उसी दिन से टीपू बन्दर को पंकजवन का डाकिया बना दिया गया . टीपू बन्दर समय पर सभी को डाक लाकर दे देता था . टीपू बन्दर ने देखा कि उसे सभी चाहते है तो उसने पैसो की जगह हर एक से केला लेना शुरू कर दिया . धीरे धीरे टीपू बन्दर कामचोर होता गया और उसकी कामचोरी बढती गई . फ़िर धीरे धीरे उसने सभी से पैसे लेना शुरू कर दिया.

जब सभी ने देखा की टीपू बन्दर कामचोर हो गया है और सभी से पैसे लेने लगा है और सबने बैठकर पंकजवन में एक बैठक आयोजित की और सर्वसम्मति से निर्णय पारित किया कि अब टीपू बन्दर को हटा दिया जाए और बिन्दु भालू को डाकिया बना दिया


परन्तु इसी बीच जम्बो हाथी बीचमे कूंद पड़ा और बोला अब इस जंगल में कोई डाकिया नही बनेगा . तो सभी जानवरों ने उससे कहा कि नया डाकिया नही बनेगा तो हम लोगो को चिट्ठी कैसे मिलेगी . जंबो हाथी ने कहा - अब शहर में अपने नाते रिश्तेदारों दोस्तों भाई बहिनों और माता पिता को यह संदेश भिजवा दो कि वे अब चिट्ठी न लिखे तो आप सभी आगे देखेंगे कि टीपू बन्दर घर में बैठा रहेगा.

बिन्दु भालू ने कहा भैय्या जम्बो आपका आइडिया बहुत अच्छा है मगर अगर शहर में किसी को कुछ हो गया तो ख़बर कैसे पता लगेगी . सभी जानवर एक साथ बोले हाँ हाँ बताओ कैसे पता चलेगा ?

जंबो हाथी ने कहा - सब शांत होकर मेरी बात सुनो हम सब मिलकर एक साथ पंकज वन में एक बूथ खोलेंगे और जब नंबर लगायेंगे तो बात हो जाया करेग . सभी जानवर अपने अपने घरो में टेलीफोन लगा ले जिससे उन्हें कभी डाकिये के भरोसे रहना नही पड़ेगा यह सुनकर सभी जानवर बहुत खुश हो गए . . यह सब बातें टीपू बन्दर सुन रहा था उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने बहुत पश्चाताप किया और उसने सभी जानवरों से माफ़ी मांगी.

रिमार्क - उपरोक्त कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपना काम ईमानदारी से संपादित करना चाहिए और कामचोर नही बनना चाहिए . ईमानदारी सबसे अच्छी नीति मानी गई है और इसका उल्लेख सभी धर्मग्रंथो और कहानियो में मिलता है . .नीति शिक्षा में ईमानदारी पर हमेशा जोर दिया जाता है और ईमानदारी के सन्दर्भ में तरह तरह के पाठ लोगो को पढाये जाते है पर इसके बावजूद लोग गलती कर बैठते है ऐसा क्यो ?

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8.11.08

व्यंग्य : हमरे ब्लॉगर भैय्या चुनाव के पहले चित्त हो गए ....

हमरे एक दोस्त है . भैय्या बात इ है कै वे कछु दिनन से ब्लॉग लिखन लगे है और बेवा जगत में बड़ा नाम कमाईलियन है . मै उनका तनिक भी इस पत्रा में नाम न लिख्वे करू . कायके कहूं भैय्या खो पता चलवे करे तो तो समझो अपनी खैर नही.

मै उनको काल्पनिक नाम रामरतन हिन्दी ब्लॉगर इ पात्र में लिख देत हो . अपने रामरतन हिन्दी बिलागरवा है कछुक दिनों में उन्होंने बड़ा नाम कमा लिया है . जर्मनी कनाडा अमेरिका सिंगापुर और भारत के सभी नामी गिरामी शहरों के ब्लॉगर उनकी बेवा साइड में टीप देने वो का बोलत है कमेंस देने आत है सो अपने रामरतन ब्लागरवा को भारी घमंड हो गया है रात दिनन कम्पूटरवा में अपनी अंगुलियाँ ठोकत रहत है और अपनी आंखे फोडत रहत है.

सरकारी कर्मचारी है सो ब्लॉग से कमाई भी नही कर सकत है और विज्ञापन की पर्ची भी नही चिपका सकत है . कही कमाई का किसी को पता चल गया सो सर मुढाये बिना ओले पड़ने का खतरा अधिक है . पर अपने भैय्या है बड़े लालची हमेशा पैसो की जुगत करत रहत है.

अब हमरे प्रदेशवा में चुनाव का माहौल चल रहा है . उम्मीदवारों ने फॉर्म जमा कर दिए है और अपनी सम्पति का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को दे दिए है . जो नाक पोछत थे जो साईकिल की टूटी सीट पर बैठकर सवारी किया करते थे आज वे करोड़पति है उनको चुनाव लड़ने की झंडी मिल गई है वे मैदाने ज़ंग में उतरने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने में लगे है और रुपया पैसा पानी की तरह बहा रहे है क्योकि उन्हें मालूम है कि जीतने के बाद एक करोड़पति से दशानन करोड़पति बन जावेंगे.

खैर छोडिये अब अपना अपने असल मुद्दे पे वापिस चल पडत है . हाँ ब्लॉगर भइया रामरतन को किसी ने सलाह दे डाली कि भैय्या जुगत बैठा लो और इस चुनाव में वेव साइड में किसी नेता का प्रचार कर डारो और कमाई कर डारो मौका है भइया . अपने रामरतन भैय्याँ जी जुगत भिड़ने में जुट गए ..

एक दिन अपने क्षेत्र के अंगूठा छाप पूर्व विधायक भौतई पैसन वाले है को ख़बर मिली कि अपने रामरतन हिन्दी ब्लॉगर है विश्व में उनकी चार चार वेवसाइड को लोग चाव लेकर पढ़त है देश विदेश के लोग टीप देने उनके ब्लागरवा में आत है क्यो न अपन अपना चुनाव प्रचार वेवसाइड में करा दे देश विदेश में प्रचार होगा नाम होगा दूर से वोट मिल जावेगी . सो झट से अपने रामरतन ब्लागरवा के पास अपनी लकदक कार लेकर पहुँच गए.

अपने भैय्याँ जी को प्रचार करने को कहा और ढेर सा पैसा देने कि बात भी कही . अपने भैय्याँ जी टेस में आ गएँ झट से उनई के सामने अपने ब्लागवा में उनका प्रचार लिखने लगे.

इसी बीच का भओ कि वहां अपुन पहुँच गए और अपुन ने जुगत से सारी बातें सुनी और अपनी ताजी ताजी खोपडी से समझी और फ़िर एक कोने में उ नेता को ले गया और उसे समझाया -

भइया तुम लगे हो चुनाव विधानसभा का है तो तुम अपनों प्रचार पूरे विश्व में कराना चाहते हो का तुम्हे सारी दुनिया के लोग वोट देवे आहे . जा बताओ तुम्हे वोट विधान सभा क्षेत्र से मिलने है कै सारी दुनिया से . तुम्ह के नाहक पैसा खर्चा करत हो और समय ख़राब करत हो . नेताजी ने अपनी खोपडी खुजाई फ़िर उसके बाद बात उनके समझ में कुछ आई और और तुंरत अपनी लकदक कार से वहां से फ़ुट लिए .

यह देखकर हमरे बड्डे को खूब गुस्सा आई और उन्होंने मुझे खूब लाल पीली ankhe दिखाई और दहाड़ कर बोले यार तुमने मेरी होने वाली कमाई पर पानी फेर दिया यार मेरा मुंडा ख़राब हो गया है तुम यहाँ से फ़ुट जाओ .

फ़िर का है कि अपुन भी ठहरे ब्लॉगर भैय्या सो अपुन ने भी छूट गोली चलाई और भैय्याँ से कहाँ शुक्र करो -

रामरतन मेरे आने के कारण तुम बच गए वरना चुनाव में नेताजी का प्रचार करने के आरोप में तुम्हारी सरकारी नौकरी चली जाती फ़िर उसके बाद तुम रोड पर पचास रुपये रोज पर राजनीतिक दलों का झंडा लेकर घूमते नजर आते .

यह सुनकर अपने रामरतन भैय्याँ ने सर झुका लिया . इसके बाद मै भी यह कहते हुए वापिस लौट गया "कि वेवकूफो की दुनिया में कमी नही है" . सुना है कि तब से अपने ब्लागर भैय्याँ घर में बीमार पड़े है और मुझे जरुर कोस रहे होंगे.

आखिर आप सभी बताईं कि इसमे हमरी का गलती है मैंने तो उसकी सरकारी नौकरी बचाई और नेताजी के वेवाजगत में प्रचार में नाहक खर्च होने वाले रूपये पैशैन बचाओ . पैसा की लालच में चुन्नव होने के पहले अपने ब्लागरवा भैय्या रामरतन पहले से चित्त हो गए है अब आप ही बताइन कि इस्मा हमरी का गलती है.

व्यंग्य - महेंद्र मिश्रा रचनाकार.

6.11.08

चुटकुले : ये भी खूब रही

मालिक नौकर से जरा दस तारिख का अखबार लाओ
नौकर - सर दस तारीख का अखबार मिल नही रहा है . तारिख ६ और ४ तारीख का अखबार ला देता हूँ इसे जोड़ ले और दस तारीख का अखबार मानकर इसे पढ़ ले.
.......

मालिक - तुम्हे इस कारखाने में काम करते कितने साल हो गए है ?
नौकर - हुजूर पैसठ साल
मालिक - फ़िर तुम्हारी उम्र क्या है ?
नौकर - साब चालीस साल
मालिक - तुम्हारी उम्र कम है तो तुम्हे नौकरी करते पैसठ साल कैसे हो गए .
नौकर - सर आपकी फेक्टरी में ओवर टाइम बहुत होता है.
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पति - प्रिये यह बताओ कि वशीकरण क्या है ?
पत्नी - याने पुरूष को अपने वश में कर लेना फ़िर उसके बाद चाहे जो उससे करवा लेना.
पति - पति तुम सही नही कह रही हो यह वशीकरण नही वरन यह तो शादी है.
.....

लेखक - मै एक सनसनीखेज उपन्यास लिख रहा हूँ.
लेखक का मित्र - इस छापेगा कौन ?
लेखक - इसे तो जासूस पता करेगा.
..हा.....हा. हा हा .

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4.11.08

बच्चे मन के सच्चे

बच्चा - " राग,द्वेष, बैर आदि बुरे भावो से रहित होता है "

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रिमार्क- चुनाव ड्यूटी में होने के कारण आप सभी से लगभग २० दिनों तक दूरी रहेगी. क्षमाप्रति हूँ.

2.11.08

माइक्रो पोस्ट - सबक : दूरियां और नजदीकियाँ.

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ये दूरियां मजबूरी हो सकती है मगर इतनी भी बड़ी नही है कि बने बनाये रिश्तो को पल में तोड़ दे .वक्त गर आ जाए अगर तो सच्चे प्रेम और सच्चे रिश्तो की डोर दूरियों को भी लांघकर नजदीकियो में बदल देती है, चाहे फ़िर वह झूठा बहाना ही क्यो न हो .......

31.10.08

जातक कथाये : कपटी सियार

बोधिसत्व ने एक चूहे के रूप में जन्म लिया वे बड़े बुद्धिमान थे और हजारो चूहों के साथ जंगल में रहते थे . वे इतने बड़े थे कि छोटे सुआर के जैसे लगते थे . जंगल में एक धूर्त सियार रहता था वह बड़ा ही धूर्त था और उसकी निगाहे सदैव जंगल के चूहों पर रहती थी . वह इन चूहों को कई दिनों से खाने की योजना बना रहा था और अंत में एक योजना उसने सोची और वह चूहों की बस्ती के पास गया और सूर्य की ओर मुँह करके एक टांग के बल खड़ा हो गया.

एक समय बोधिसत्व भोजन की तलाश में निकले ओर उन्होंने इस सियार को सूर्य की ओर मुँह किए इस सियार को देखा जोकि एक टांग के बल खड़ा था. बोधिसत्व ने सोचा वह शायद एक संत है जो एक टांग के बल खड़ा होकर ध्यानमग्न है .बोधिसत्व उसके पास ओर नमस्कार कर उससे उसका नाम पूछा.

सियार ने उत्तर दिया - मेरा नाम भगत है

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - तुम एक टांग के बल क्यो खड़े हो ?

सियार ने कहा - यदि मै चारो टांगो के बल पर खड़ा हो जाऊँगा तो प्रथ्वी मेरा भार सहन नही कर पाएगी.

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - किंतु तुमने अपना मुँह क्यो खुला रखा है ?

सियार ने कहा - मै सिर्फ़ हवा खाता हूँ हवा में साँस लेने के लिए ओर हवा ही मेरा भोजन है.

चूहे बोधिसत्व ने प्रश्न किया - तुम सूर्य की ओर मुँह करके क्यो खड़े हो ?

सियार - मै इस तरह से सूर्य की आराधना करता हूँ.

बोधिसत्व सियार की बाते सुनकर बड़े प्रभावित हुए.

अब क्या था सुबह शाम चूहे सियार को प्रणाम करने आने लगे . सियार भी बड़ा खुश था क्योकि उसे ऐसा अभाष हो रहा था की अब उसकी योजना सफल होने लगी है . चूहे लाइन लगाकर सियार को प्रणाम करते थे और चूहे जब में वापिस जाने लगते थे तो लाइन के अन्तिम चूहे को सियार पकड़ कर खा जाता था और इस तरह से किसी को पता भी नही चलता था कि लाइन के आखिरी चूहे को पकड़कर खा गया है . धीरे धीरे चूओ की संख्या कम होती गई और चूहे जाति का मुखिया भी बेहद परेशान था कि आखिर क्या बात है कि उसके समाज के चूहों कि संख्या में लगातार कमी आ रही है .

उसने बोधिसत्व से इस बात की चर्चा की. उन्हें सियार पर शक हुआ कही यह सियार की घपलेबाजी तो नही है . एक दिन बोधिसत्व ने सियार की परीक्षा लेने की सोची . बोधिसत्व ने अगले दिन सारे चूहों को आगे जाने दिया और अंत में बोधिसत्व गए . हमेशा की तरह सियार ने लाइन के आखिरी चूहे बोधिसत्व को दबोचने की कोशिश की

पर बोधिसत्व बहुत तेज गति से निकल गए और जाते जाते पलटकर सियार की ओर मुड़े ओर कहा - धूर्त सियार तुम साधू के रूप में मक्कार हो . तुमने संत बनने का नाटक किया तुम ढोंगी पाखंडी ओर बहुत बड़े धूर्त हो . सब चूहे यह सब सुन रहे थे तो असल सच उनके सामने आ गया ओर वे क्रोधित हो गए ओर समूह में एकत्रित होकर धूर्त सियार पर हमला कर दिया ओर उसे जंगल से खदेड़ दिया . धूर्त सियार अपने प्राण बचाकार जंगल से भाग गया .

रिमार्क - हमें ऐसे ढोंगी पाखंडी ओर धूर्त साधुओ से बचना चाहिए ओर इनका बहिष्कार करना चाहिए . हमारे देश में ऐसे ढोंगी पाखंडी साधुओ की कमी नही है जो देश की भोली भली जनता को अपने मायाजाल में फंसाकर लूट लेते है . आए दिन अखबारों में मीडिया चैनलों में ऐसे ढोंगी साधुओ के खुलासे होते रहते है जो बलात्कार करने से लेकर धन संपत्ति तक लूट लेते है.

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28.10.08

दिवाली के अवसर पर हँस ले : दिवाली पर फुलझडी और बम

एक मछियारे ने अपने साथी मछियारे से कहा - भाई मैंने इतनी बड़ी मछली पकडी की वह नाव में नही समां रही थी और उसे तौलने के लिए कोई तराजू भी नही मिल रही थी तो मैंने उस मछली की फोटो ले ली और फ़िर रुक मुस्कुराया और रुक कर बोला तुम्हे मालूम हो कि उस मछली कि फोटो का वजन ११ किलो था तो उस मछली का वजन कितना रहा होगा.

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एक सेठ ने एक पंडित जी को दिवाली के दिन अपने घर निमंत्रण पर बुलाया और उन्होंने पेट भरकर खाया और अपनी तौंद पर हाथ फेरकर एक लम्बी डकार ली और कहा बस भर गई है . उसके बाद पंडित जी के सामने दो मलाई कि दो प्लेट राखी गई और पंडित ने वे प्लेट भी साफ़ कर दी . सेठ का लड़का पास में खड़ा था बोला पंडित जी आपकी बस भर गई फ़िर भी अपने दो प्लेट मलाई भी खा ली .
लडके से पंडित जी बोले- बेटा बस तो भर गई थी परन्तु कंडेक्टर की सीट खाली थी.

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अरे भाई दिवाली के दिन तुम चम्मच धोने क्यो बैठ गए हो ?
अगले ने उत्तर दिया - धोने दे यार वरना जेब ख़राब हो जावेगी.

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दिवाली के दिन एक पहलवान एक जूते की दूकान पर जूते लेने गया . दुकानदार ने उसे कई जूते दिखाए पर पहलवान को कोई जूता फिट नही हो रहा था .
आखिर में पहलवान ने एक में पैर डालते हुए कहा भाई इसे पैक कर दो यह ठीक रहेगा .
दूकानदार बोला - हुजूर माफ़ कीजिए यह जूता नही है यह जूते का डिब्बा है.

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प्रोफेसर - क्या तुम मुझे सोलहवी शताब्दी के वैज्ञानिको के बारे में कुछ बता सकते हो ?
छात्र - सर वे सब मर गए है.

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कबाडी बाजार में एक आदमी एक कबाडी से पुरानी पुस्तके खरीद रहा था . ग्राहक को दूकान में एक पुरानी किताब दिखी जिसका नाम था " करोड़पति कैसे बने" पर उस पुस्तक में आधे पन्ने थे .
ग्राहक दूकानदार से बोला - भाई दुकानदार जी इस किताब में आधे पन्ने गायब है.
दूकानदार ने कहा - आधे पन्नो में भी तो आधा करोड़पति बना जा सकता है.

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दिवाली के दिन एक दूकान पर एक ग्राहक संतरे खरीदने गया .
ग्राहक को देखकर दूकानदार तपाक से ग्राहक से बोला - सब पिछले सप्ताह जो आप संतरे ले गए थे वो कैसे रहे ?
ग्राहक - संतरे बड़े ताजे रहे.
दूकानदार ने फौरन कुछ संतरे ग्राहक की और बढ़ते हुए कहा साब इन्हे ले जाओ पिछले हफ्ते के उन्ही में से बचे है.

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दिवाली धमाका
एक आदमी थाने पहुँचा और थानेदार से बोला आप मेरे घर की चाबी रख लीजिये .
थानेदार सकपका गया और बोला क्यो ? वह आदमी बोला आज दिवाली के अवसर पर एक ड्रिंक पार्टी है और जाहिर है कि मै पार्टी में छककर व्हिस्की और वोदका पिऊंगा और ऐसी हालत में मेरी चंबियाँ गिर सकती है और मै यह सोच रहा हूँ कि नशे में धुत सड़क से मुझे पकड़कर कोई पुलिसवाला थाने लायेगा तो मै आपसे घर की चाबी ले लूँगा.

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मालकिन नौकर से तुमने फ्रिज साफ़ कर दिया .
नौकर बोला - हाँ मालकिन
मैंने फ्रिज अच्छी तरह से पूरी तरह से साफ़ कर दिया है हर चीज स्वादिष्ट और लाजबाब थी.

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खानसामा रोने लगा कि हाय साहब का कुत्ता मर गया बड़ा प्यारा था दुलारा था हर काम अच्छी तरह से कर देता था.
साहब - लगता है तुम्हे मेरे कुत्ते से बड़ा लगाव और प्यार था .
खानसामा - हुजूर पूछिए मत वह बड़े प्यार से जूठी प्लेट अपनी जीभ से साफ कर देता था . हुजूर मै प्लेट धोने धुलने धुलाने के चक्कर से बच जाता था हाय अल्लाह अब प्लेट कौन साफ़ करेगा और यह कहकर बेहोश हो गया.

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शिक्षक छात्र - इसे दो प्राणियो के नाम
बताओ जिनके दाँत नही होते है ?
छात्र - हाथ उठाकर कहा सर दादा और दादी.

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26.10.08

दीवाली की शुभकामना के साथ रचना - घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले और मै एक नन्हा छोटा सा दिया.

घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
सुख शान्ति का संकल्प ले अखंड पावन दीप जलाये.

घर घर में उपजे देवीय गुण बने सभी आचार परायण
आधि व्याधि हर लेने वाली सबके मन में ज्योति जले.




घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
स्वार्थ नही परमार्थ संवारे , मानस के कल्मष धो डाले.

हर जगह हो नंदन सी हरियाली, नील गगन के तले
घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले.

जाने सब जप तप की गरिमा जाने प्रभु की महिमा
जिस बगिया से हम निकले बने उसी बगिया के माली.

मै एक नन्हा छोटा सा दिया




धरती की मिट्टी को
अनेको पैरो से रौंदकर
भट्टी में जलते अंगारों के बीच
मुझे खूब तपाकर
जन्मदाता ने मुझे जन्म दिया है.
मै एक नन्हा छोटा सा दिया

मै अपने संकल्पों का निर्वहन
भली भांति कर रहा हूँ
मुझे अपने दायित्वों का बोध है
जाति पाती का भेद नही है मुझमे
मै एक नन्हा छोटा सा दिया

अंधियारों और हवाओ से लड़कर
गरीबो की कुटिया से लेकर सभी को
उजाला देकर ही बुझता हूँ
सबको मै प्रकाश देता हूँ
मै एक नन्हा छोटा सा दिया,

यह रचना दीवाली के पावन अवसर पर आप सभी हिन्दी ब्लॉगर बहिनों और भाइओ को समर्पित कर रहा हूँ . दीपावली के पावन पर्व पर आप सभी को मेरी और से हार्दिक ढेरो शुभकामनाये . आप सभी का आगामी वर्ष उज्जवल हो आपका भविष्य मंगलमय हो और सुख सम्रद्धि वैभव से परिपूर्ण हो .

22.10.08

आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए.

देश में चल रहे जाति पति और भाषावाद और क्षेत्रवाद के आधार पर बड़ी दुखद स्थितियां चल रही है इन पर कुछ पंक्तियाँ लिखी जो आपकी नजर प्रस्तुत कर रहा हूँ.

जिंदगी में आदमी को प्यार की पहचान आना चाहिए
आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए
देश क्या परदेश क्या सारा संसार अपना हमारा यार हो
रहे चाहे न रहे कुछ भी हमारा बस बांटने को प्यार हो
दूर से बस प्यार मौहब्बत का एक पैगाम आना चाहिए
गर रहे हम या न रहे हमारे देश की आन रहना चाहिए
राम क्या रहीम क्या अजान हम सबकी उसकी जान है
जो प्रभु और आदमी में भेद समझे वह पागल नादान है
प्यार शान से इंसान को सबको सिखाना बढ़ाना चाहिए

रचना - महेंद्र मिश्रा,जबलपुर.

20.10.08

तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही.

मेरी जुबान से पूछ लो या चाँद से तुम पूछ लो
किस्सा अपना मेरा हर तरफ़ जहाँ से पूछ लो.

बिगड़ी हुई तदवीर से अपनी फ़िर तकदीर बना ले
एक दांव तू भी लगा ले गर अपनों पर भरोसा है.

तेरे जिस्म की खुशबू में मेरा हर लब्ज ढला है
तेरे जिस्म से हर रंग उजला निखरा निकला है.

मोहब्बत करने की उनको रियायत बहुत ही खूब थी
अहसास नही हुआ कि दिल उन्होंने मेरा चुराया था.

तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही
मेरे दिल में जो प्यार है इस सारे जहाँ में नही .

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19.10.08

टी.वी.चैनलों में अश्लीलता और हिंसा के द्रश्यो पर सुप्रीम कोर्ट की चिता जायज ?

इस समय देश में दर्जनों टी.वी.चैनलों की भरमार है जो लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए निरंतर हिंसा और अश्लीलता से लबरेज द्रश्य परोस रहे है जिसका दुष्प्रभाव युवा पीढी पर अधिकाधिक पड़ रहा है . जिस पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और टी. वी. चैनलों को कड़ी फटकार लगाई है और प्रसारण स्थिति पर सरकार से प्रतिवेदन माँगा है . इस मामले में कोर्ट ने कहा कि परिवार के लोग अब एक साथ बैठकर टी.वी.चैनल के कार्यक्रम नही देख सकते है जिनमे हिंसा और अश्लीलता आजकल जमकर दर्शको के लिए परोसी जा रही है .

विगत दिनों न्यायालय के समक्ष एक समाजसेवी द्वारा टी.वी चैनलों पर जमकर दिखाई जा रही हिंसा और अश्लीलता के ख़िलाफ़ एक जनहित याचिका प्रस्तुत की गई थी जिस पर विचार करते हुए माननीय न्यायालय द्वारा उपरोक्त विचार व्यक्त किए गए और इस दौरान माननीय न्यायाधीशों द्वारा सुनवाई के दौरान टी.वी. चैनलों के कुछ एपीसोड के बारे में विस्तार से जिक्र किया और चिंता व्यक्त की और कहा कि कई ऐसे द्रश्यो को बार बार चैनलों में दिखाया जा रहा है . माननीय न्यायाधीशों द्वारा चिंता करते हुए कहा गया है यह मसला संवेदनशील है और सीधे जनसामान्य से जुड़ा है . इस पर सरकार द्वारा अभी तक कठोर अधिनियम न बनाये जाने पर भी चिंता व्यक्त की गई .

जनहित और समाज से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले पर माननीय न्यायाधीशों की चिंता सच और जायज और सराहनीय है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है . इस मामले मे माननीय न्यायाधीशों की चिंता देखकर लग रहा है कि न्याय ख़ुद देख रहा है और महसूस कर रहा कि वास्तव मे टी.वी.चैनलों द्वारा हिंसा और अश्लीलता जमकर समाज के सामने परोसी जा रही है जिसका दुष्परिणाम सीधे सीधे जनमानस पर पड़ रहा है . जल्दी ही सरकार को जनभावनाओ की मंशा के अनुरूप जनहित मे कठोर कानून बनाना चाहिए और समाज हित मे भारतीय संस्कृति के अनुरूप ऐसे चैनलों के प्रसारण मे रोक लगना चाहिए.

Nirantar........

14.10.08

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल

आचार्य श्रीराम गुरुदेव की पुस्तक युग निर्माण शांतिकुंज हरिद्वार पढ़ रहा था जिसमे एक बहुत ही सुंदर रचना पढ़ी जो प्रेरक संदेश देती है . मानसिक संबल आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए ऐसी कविताये प्रेरक दवा का काम करती है . प्रस्तुत कर रहा हूँ.

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल
आगे कदम बढाता चल बढाता चल बढ़ाता चल

अन्धकार का वक्ष चीरकर फूटे नव प्रकाश निर्झर
प्राण प्राण में गूंजे शाश्वत सामगान का नूतन स्वर
तुम्हे शपथ है ह्रदय ह्रदय में स्वर्णिम दीप सजाता चल
स्नेह सुमन बिखरता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

पूर्व दिशा में नूतन युग का हुआ प्रभामय सूर्य उदय
देवदूत आया धरती पर लेकर सुधा पात्र अक्षय
भर ले सुधापात्र तू अपना सबको सुधा पिलाता चल
शत शत कमल खिलाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल.

ओ नवयुग के सूत्रधार अविराम सतत बढ़ते जाओ
हिमगिरी के ऊँचे शिखरों पर स्वर्णिम केतन फहराओ
मंजिल तुझे अवश्य मिलेगी गीत विजय के गता चल
नवचेतना जगाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

रचना - आचार्य गुरुदेव.
युग निर्माण शांतिकुंज हरिद्वार.

ब्रम्हकमल जो सिर्फ़ शरद पूर्णिमा को खिलते है .

ब्रम्हकमल एक ऐसा पुष्प है जो सभी देवी देवताओं को अत्यन्त प्रिय है इसीलिए इसका बैदिक महत्त्व है . वर्ष में केवल एक रात को ही खिलने वाला यह पुष्प शायद इन्ही गुणों के कारण दुर्लभ है . शरद पूर्णिमा को ब्रम्हकमल के पुष्प से लक्ष्मी जी की पूजा करने से श्री लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है . कहा जाता है कि जब राम रावण का युद्ध चल रहा था और युद्ध काफी लंबा खिचने से श्री राम काफी दुखी हो गए . रीछ जामबंत ने श्री राम को जगतजननी का अनुष्ठान करने की सलाह दी . भगवान प्रभु श्री राम ने प्रत्येक आहुति में समिधा के रूप में एक ब्रम्हकमल पुष्प अर्पित किया . जब अन्तिम ब्रम्हकमल बचता है तो जगतजननी उसे स्वयं उठा लेती है .





प्रभु श्रीराम जब अन्तिम पुष्प नही पाते है तो अनुष्ठान भंग होने की आशंका से उनका मन खिन्न हो जाता है . तभी भगवान श्रीराम को याद आता है कि उन्हें उनकी माँ राजीवलोचन कहकर संबोधित करती है . भगवान श्री राम ने ब्रम्हकमल के स्थान पर अपने नेत्र अर्पित करने के लिए जब कटार उठाते है तभी माँ जगतजननी वहां प्रगट हो जाती है और श्री राम को विजयी भावः का आशीर्वाद देती है . शरद पूर्णिमा के रात्रि को इस दुर्लभ पुष्प को देखकर कई लोग सारी रात काट देते है .

...............

12.10.08

कटीले चुटकुले

कटीले चुटकुले

एक जहाज़ी पुराने युध्ध क़ी बात अपने साथियो को चहक कर सुना रहा था
वह सुना रहा था कि बार एक तारपीडो बड़ी तेज़ी के साथ हमारे जहाज़
की तरफ़ आ रहा था.
दूसरा साथी बोला फिर क्या हुआ ?
वह बोला फिर क्या हुआ खुदा का शुक्र है कि वह हमारा निकला..
........

एक बीबी ने थर्मा मीटर से अपने पति का ग़लत टेँपरेचर नाप लिया
फिर डाक्टर को फ़ोन कर बोली जल्दी आओ मेरे पति का टेँपरेचर
120 से अधिक हो रहा है
डाक्टर बोला फिर मेरा कोई क़ाम नही रह गया है फ़ायर बिग्रेड को
बुलवा लो .

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11.10.08

डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" की एक सुंदर रचना "लहू की लाज"

डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" जबलपुर संस्कारधानी के युवा कवि है और मेरे अच्छे मित्र है . समय समय पर इनकी काव्य रचना प्रकाशित होती रहती है . पुस्तक " किसलय के काव्य सुमन " डाक्टर तिवारी द्वारा रचित है . इनकी पुस्तक मरुस्थल में हरित भूमि के मानिंद है और द्विवेदी युगीन काव्य धारा का स्मरण कराने वाली गंभीर द्रष्टि की परिचायक कृति है. बर्तमान में विजय तिवारी जी एम.पी.लेखक संघ,कहानी मंच, मिलन.पाथेय मंच, मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मंडल हिन्दी परिषद् आदि से सम्बद्ध है . आज मै अपने कवि मित्र भाई विजय तिवारी जी की एक सुंदर रचना "लहू की लाज" आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ .

लहू की लाज

राह श्रेष्ट है मानवता की
इसको तुम अपना लेना
जेब किसी की खाली हो
उसको निज संबल देना.

न्याय धर्म की पतवारो से
जीवन नैया पार लगना
द्रव्यमान होने पर भी तुम
नम्र भाव को नही भुलाना.

अहित न हो दुर्बल दलितों का
उनके हित में हाथ बँटाना
ग्रहण किए निज कर्म ज्ञान से
प्रगति राह से आगे बढ़ते जाना.

वाकशक्ति के पावन श्रम का
सही अर्थ सबको समझाना
लज्जित न हो लहू तुम्हारा
ऐसा बल वैभव दिखलाना.

लेखक - डाक्टर विजय तिवारी "किसलय"
पुस्तक किसलय के काव्य सुमन से रचना साभार
जबलपुर.
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9.10.08

जबलपुर के राइट टाऊन स्टेडियम में इस दशहरा जुलूस में दिल्ली और पंजाब की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है .

भारतीय संस्कृति की उत्सवप्रियता विश्व प्रसिद्द है . इन्द्रधनुषी समारोह सालभर उल्लासित करते रहते है और इनका रंग भारतीयो को अनादित करते करके तनावरहित बनता है . जबलपुर संस्कारधानी का पंजाबी दशहरा आधी शताब्दी की यात्रा तय कर सुनहरे अक्षरो में दर्ज हो चुका है . भारत में यह दशहरा इस समय दिल्ली के बाद दूसरे नंबर पर है इसकी भव्यता और रौनक देखते ही बनती है . जबलपुर के राइट टाऊन स्टेडियम में इस दशहरा जुलूस में दिल्ली और पंजाब की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है .

५८ सालो पूर्व इस दशहरे की शुरुआत हुई जबलपुर शहर में .

आजादी के बाद पकिस्तान और भारत के बटवारे के साथ पंजाबी समाज के लोग जबलपुर आये और ओमती क्षेत्र में एक कुटुंब के रूप में रच बस गए. १९५० से यह दशहरा शुरू किया गया . पहले पंजाबी दशहरा का जुलूस वशीर के बाड़े ओमती से प्रारम्भ होता था . रावण मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतलो का दहन बर्तमान पुलिस कंट्रोल रूम है वहां किया जाता था .
विगत दिवस जबलपुर में राइट टाऊन स्टेडियम में पंजाबी दशहरा कार्यक्रम आयोजित किया गया . बुराई के प्रतीक ५५ फुट ऊँचे रावण मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतलो का दहन किया गया . बमों के धमाको और रंगीन आतिशबाजी के बीच भगवान राम और लक्ष्मण हनुमान सहित रथ पर सवार होकर स्टेडियम पहुंचे . स्टेडियम में जनसैलाब उमड़ रहा था . चाइना की रंगीन आतिशबाजी के नज़ारे बस देखते ही बनते थे . पहलवानों ने उत्कृष्ट कोटि की चुस्ती फुरती का प्रदर्शन कर जनसमुदाय का मन मोह लिया . बच्चो ने " तारे जमीन पर" की धुन पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किए . पंजाबी भांगडा और गिद्दा विशेष आकर्षण के केन्द्र रहे .

पंजाबी दशहरा जबलपुर शहर में साम्प्रदायिकता और सदभाव के अप्रतिम कीर्तिमान स्थापित कर रहा है जिसकी जीतनी सराहना की जावे कम है .


रात्रि में स्टेडियम का विहंगम द्र्श्य








गिद्दा नृत्य करती एक कलाकार .



ओ पापे भांगडा करती मंडली .


चाइनीज रंगीन आतिशबाजी .


बुराई के प्रतीक रावण पर निशाना साधते हुए श्री राम और लक्ष्मण







रावण के वध के पश्चात हर्षित मुद्रा में श्री हनुमान.



जब रावण धू धू कर जल उठा.




पंजाबी भांगडा और गिद्दा विशेष आकर्षण के केन्द्र रहे.


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8.10.08

कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर

कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर

गम की दास्ताँ हमसे न पूछो दिले दर्द सुनाकर हम फ़िर तडफेगे
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर

कभी कभी दिए जलाकर ख़ुद प्यार के अपने हाथो बुझाने पड़ते है
कभी कभी ख़ुद को मिटाकर वादे कस्मे फ़िर भी निभाने पड़ते है.

तमाम कोशिशे की बहुत चाहा मैंने उनको भुला कर कि हम जिए
कोशिशे तमाम मेरी नाकाम रही है पर भुलाकर हम जी न सके.

दिलशाद कभी न हो पाया मेरा ,मैंने माँ से भी ज्यादा जिसे चाहा
अपना दामन छुडा कर चले गये फ़िर भी न अब न लगे दिल मेरा

मयकदे में जाकर देखा है बज्म उनकी तलाश इन आँखों को है
जो नजरो से गिराकर गए है मुझे न करार न सुकून मिल सका है

दिल लगाकर ये एहसास हुआ है जो चले गए ठोकरों में उड़ाकर
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर.

7.10.08

अब मिलिए जबलपुर रामलीला में भरत शत्रुधन बनने वाले पात्रो से

जबलपुर शहर में इन दिनों रामलीला की धूम मची हुई है बर्तमान में इस शहर में नौ रामलीला समितियां सक्रिय है . इन रामलीला समितियों में एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी अभिनय प्रतिभा की दम पर जनमानस का मन मोह लेते है . पिछली पोस्टो में इन रामलीलाओ में रावण पात्र के रूप में अभिनय करने वाले कलाकारों के बारे में और हनुमान पात्र का अभिनय करने वाले कलाकारों के बारे सचित्र जानकारी दी थी . विविध भारती मुंबई के ब्लॉगर युनूस खान जी की फरमाईस पर गोविन्दगंज रामलीला समिति में भरत और शत्रुधन के पात्रो का अभिनय करने वाले कलाकारों के बारे में फोटो सहित जानकारी दे रहा हूँ . गोविन्दगंज जबलपुर शहर की रामलीला १६५ वर्ष पुरानी है और इसका एतिहासिक महत्त्व है .

भरतहि धरम धुरंधर ज्ञानी
निज सेवक तन मानस बानी
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सुधि पाठको आज इन कलाकारों के पारंगत अभिनय के क्षेत्र धुरंधर कलाकारों के बारे में जानकारी दे रहा हूँ . अवधपुरी के चारो भाइओ में से राम लखन सीता के साथ वनागम करने गए . श्री राम के वनवास पर जाने से अयोध्या नगरी विचलित हो गई . भरत और शत्रुधन दोनों भाई प्राणों से प्रिय अपने भाई राम लक्ष्मण और जानकी सीता के वनवास पर जाने के साथ राजपाट संभालने का कार्य कैकयी सुत भरत के कंधे पर आ पड़ा. भरत ने श्री राम की पादुकाओं कों सिंघासन पर रखकर राजसुख होने के बाबजूद १४ वर्षो तक रघुवंश के सिंघासन पर रखा और तपस्वी सा जीवन जिया .
चित्रकूट में भरत श्रीराम से मिलाप मुलाकात करने के लिए दौड़ पड़े थे . भरत मिलाप का अदभुत प्रसंग है . चलिए मिलते है कलाकारों से.

श्री गोविन्द गंज रामलीला जबलपुर





भरत का रोल १३ वर्षीय आदित्य दुबे कर रहे है . वे कक्षा आठवीं के छात्र है . वे कहते है की इस पात्र कों निभा कर उन्होंने बडो का आदर करना सीखा .







शत्रुघ्न का अभिनय कक्षा सातवीं के छात्र अंकित मिश्रा कर रहे है . उनका कहना है कि वे अपने भाई की प्रेरणा से अभिनय के क्षेत्र में आए है .


गोकलपुर रामलीला समिति ९९ वर्षो से है इसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व है .


१६ वर्ष के राहुल शर्मा भरत के पात्र का अभिनय कर रहे है . यह रामलीला सफल मंचन और सशक्त अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है . राहुल कों बचपन से ही अभिनय का शौक है .



१२ वी कक्षा के छात्र अनुराग पांडे शत्रुधन का अभिनय कर रहे है और बताते है कि उन्होंने अभिनय कला अपने पिता और ताऊ से सीखी है . वे रामलीला समिति में सभी पात्रो का अभिनय कर चुके है .


सत्य पर विजय का प्रतीक है दशहरा









शहर जबलपुर संत बिनोबा द्वारा संबोधित " संस्कारधानी " के नन्हे मुन्नों ने असत्य के प्रतीक रावण का दहन किया और विजयौल्लास मनाया . इस समय शहर कि धार्मिक फिजां एक श्रद्धा की लहर बस देखते ही बनती है . यह सब देखकर बस कहते ही बनता है कि जबलपुर संस्कारो और कलाकारों का गढ़ है जहाँ एक से एक बढ़कर नए कलाकार पनपते है .


जय श्री राम
जय अम्बे माँ रानी भवानी जगदम्बे
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यह कड़ी दशहरा तक जारी रहेगी ......

6.10.08

हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.

एक आशियाना सजाने में मेरी हस्ती मिट गई
उन्हें हालेगम सुनाने में तमाम उम्र गुजर गई
देखिये वो..एक पल में फ़िर से बेगाने हो गए
कई कई बरस लग गए उन्हें अपना बनाने में.

मेरे दिले गम पर कहकहे लगाए थे सभी ने
हमें सारे ज़माने में मुझे एक भी हमदर्द न मिला
गीत गजल.. जब मेरे अश्को पर ढल गए यारा
हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.

कोई तो अपनी है जो मुझे अपने पास बुलाती है
यूँ बुलाती है मुझे वो मेरी प्यारी अपनी तो है
यारब उनका रहमो करम कैसे दिल से भुला दूँ
जो मुझे अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है.

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5.10.08

आइये अब मिलिए इन जबलपुरिया हनुमानों से जो अपनी अभिनय कला से जनमानस का मन मोह लेते है .

सप्त चिरजीवितो में से एक हनुमान जी रामलीला के मुख्यनायक श्री राम के अनन्य प्रिय पात्र है . श्री हनुमान स्वामी भक्ति की अप्रतिम मिसाल है . केसरीनंदन की क्रपा से बढ़कर कलयुग में दूसरा कोई आधार नही है . हनुमान के वगैर रामायण अधूरी रहती पर रामायण में केसरीनंदन की उपस्थिति रामायण कथा को और भी रोचक बना देती है . पिचले अंक में मैंने जबलपुर संस्कारधानी में चल रही रामलीलाओं में रावण की भूमिका निभाने वाले पत्रों के सम्बन्ध में जानकारी दी थी आज मै संस्कारधानी में रामलीलाओं में हनुमान के पात्र का दायित्व निभाने वाले कलाकारों की फोटो सहित जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ . आइये अब मिलिए इन जबलपुरिया हनुमानों से जो अपनी अभिनय कला से जनमानस का मन मोह लेते है .


श्री राम और वानर सेना लक्ष्मण सहित



राजेश तिवारी श्री गोविन्दगंज रामलीला में हनुमान के पात्र का अभिनय निभा रहे है.



श्री गोविन्दगंज रामलीला समिति जबलपुर

राजेश तिवारी चार वर्षो से इस समिति में हनुमान का अभिनय कर रहे है. उनका कहना है की हनुमान भक्ति से सब कुछ आसान हो जाता है . आप बी.सी.ए. द्वतीय वर्ष के छात्र है . गत वर्ष उनके पिता पैरालाइसिस से पीड़ित हो गए थे तो उन्होंने हनुमान जी से प्राथना की तो उनके पिता अच्छे हो गए. . पढ़ाई के साथ मंचन करना पड़ता है जो श्री राम की कृपा से पूरी हो जाती है . इस रामलीला समिति की स्थापना १६५ वर्षो पूर्व की गई थी . संस्कार धानी की सबसे एतिहासिक पुरानी रामलीला समिति मणि जाती है .



श्री धनुष यज्ञ रामलीला समिति सदर जबलपुर हनुमान का अभिनय श्री अग्निहोत्री जी
श्री रामलीला समिति सदर जबलपुरयहाँ का अग्निहोत्री परिवार के सदस्य दो पीढियो से हनुमान के पात्र का निर्वहन कर रहे है . यह परिवार इसीलिए भी प्रसिद्द है कि पिता हनुमान का और बेटा राम की भूमिका निभा रहे है .



श्री रामलीला समिति अधारताल जबलपुर




हे रावण तू राम का दास बनेगा तो अप्सराएँ निरखेगी...अन्यथा मरेगा मधांत तेरी लाश पर मख्खियाँ भिनकेगी .
रावण को समझाईश के लिए बोले गए हनुमान के इस संवाद से मंच पर सन्नाटा खिच जाता है . हनुमान का रोल श्री मनमोहन पांडे निभा रहे है वे पिछले २० वर्षो से इस रामलीला समिति में परसुराम सहित कई पत्रों का अभिनय कर चुके है . आप पेशे से उच्च न्यायलय में अधिवक्ता है .



श्री गिरिजाशंकर रामलीला समिति धमापुर में हनुमान के पात्र के रूप में श्री शिवमणि मिश्रा जी
श्री गिरिजाशंकर मन्दिर रामलीला समिति धमापुर जबलपुर

इस समिति में हनुमान की भूमिका श्री शिवमणि मिश्रा निभाते है . आप पेशे से शिक्षक है . श्री मिश्रा दस वर्षो से परसुराम और श्री हनुमान के पात्र का अभिनय कर रहे है . आपकी भगवान में आस्था है . व्यस्तता के बावजूद वे इस काम को भगवान का काम समझकर समय निकाल लेते है . आपकी बचपन से रामलीला में रूचि है. प्रभु श्री राम का गुणगान करते हुए कहते है " प्रभु रघुनाथ है दयानिधि वे अपनों को अपनाते है जो उनके शरणागत हो उसे गले लगाते है . उनसे मिलने की राह यही विश्वासी हो जाओ भइया . मंत्रो से जैसे सिन्धु आ जाते है कलश में है . भावना जो निर्मल हो तो भगवान भी भक्त के वश में आ जाते है "


श्री रामलीला समिति गोकलपुर जबलपुर हनुमान के पात्र का अभिनय करते भाई मगन लाल
श्री हरिहर रामलीला समाज गोकलपुर जबलपुर
श्री मगन लाल यादव इस समिति में अच्छी कद काठी के कारण हनुमान के पात्र का अभिनय कर रहे है वे बीस वर्ष से रामलीला समिति से जुड़े है . यह रामलीला समिति ९९ वर्षो पूर्व से स्थापित है .







श्री रामलीला समिति जबलिपुरम में हनुमान की भूमिका में श्री अभिषेक
श्री रामलीला समिति गढा जाबलिपुरम जबलपुर
पंडित अभिषेक शर्मा दरअसल पांडित्य के जरिये अपनी जीविका चलाते है . हनुमान के रूप में वे सातवी बार अपनी कला का प्रदर्शन करने जा रहे है . बताते है कि वे चार साल की उम्र में बजरंग बलि बने थे. उछलने कूदने के कारण उनके पैर में फैक्चर हो गया था . डाक्टरों ने बेडरेस्ट कि सलाह दी थी . पर उन्होंने श्री हनुमान जी के सामने एक नारियल रखकर प्राथना कि थी तो चमत्कारिक रूप से तत्काल उनके पैर से दर्द गायब हो गया फ़िर वे हनुमान बनकर मंच पर जमकर उछले कूदे . उनकी कद काठी हनुमान के पात्र के अनुरूप है . चाहे संजीवनी बूटी का प्रसंग हो या अहिरावन की कैद से राम लक्ष्मण को छुडाने का द्रश्य हो वे राम और लक्ष्मण इन दोनों पात्रो को अपने कंधे पर बैठाकर मंच पर अदभुत सम्मोहन पैदा कर देते है .

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