31.10.08

जातक कथाये : कपटी सियार

बोधिसत्व ने एक चूहे के रूप में जन्म लिया वे बड़े बुद्धिमान थे और हजारो चूहों के साथ जंगल में रहते थे . वे इतने बड़े थे कि छोटे सुआर के जैसे लगते थे . जंगल में एक धूर्त सियार रहता था वह बड़ा ही धूर्त था और उसकी निगाहे सदैव जंगल के चूहों पर रहती थी . वह इन चूहों को कई दिनों से खाने की योजना बना रहा था और अंत में एक योजना उसने सोची और वह चूहों की बस्ती के पास गया और सूर्य की ओर मुँह करके एक टांग के बल खड़ा हो गया.

एक समय बोधिसत्व भोजन की तलाश में निकले ओर उन्होंने इस सियार को सूर्य की ओर मुँह किए इस सियार को देखा जोकि एक टांग के बल खड़ा था. बोधिसत्व ने सोचा वह शायद एक संत है जो एक टांग के बल खड़ा होकर ध्यानमग्न है .बोधिसत्व उसके पास ओर नमस्कार कर उससे उसका नाम पूछा.

सियार ने उत्तर दिया - मेरा नाम भगत है

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - तुम एक टांग के बल क्यो खड़े हो ?

सियार ने कहा - यदि मै चारो टांगो के बल पर खड़ा हो जाऊँगा तो प्रथ्वी मेरा भार सहन नही कर पाएगी.

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - किंतु तुमने अपना मुँह क्यो खुला रखा है ?

सियार ने कहा - मै सिर्फ़ हवा खाता हूँ हवा में साँस लेने के लिए ओर हवा ही मेरा भोजन है.

चूहे बोधिसत्व ने प्रश्न किया - तुम सूर्य की ओर मुँह करके क्यो खड़े हो ?

सियार - मै इस तरह से सूर्य की आराधना करता हूँ.

बोधिसत्व सियार की बाते सुनकर बड़े प्रभावित हुए.

अब क्या था सुबह शाम चूहे सियार को प्रणाम करने आने लगे . सियार भी बड़ा खुश था क्योकि उसे ऐसा अभाष हो रहा था की अब उसकी योजना सफल होने लगी है . चूहे लाइन लगाकर सियार को प्रणाम करते थे और चूहे जब में वापिस जाने लगते थे तो लाइन के अन्तिम चूहे को सियार पकड़ कर खा जाता था और इस तरह से किसी को पता भी नही चलता था कि लाइन के आखिरी चूहे को पकड़कर खा गया है . धीरे धीरे चूओ की संख्या कम होती गई और चूहे जाति का मुखिया भी बेहद परेशान था कि आखिर क्या बात है कि उसके समाज के चूहों कि संख्या में लगातार कमी आ रही है .

उसने बोधिसत्व से इस बात की चर्चा की. उन्हें सियार पर शक हुआ कही यह सियार की घपलेबाजी तो नही है . एक दिन बोधिसत्व ने सियार की परीक्षा लेने की सोची . बोधिसत्व ने अगले दिन सारे चूहों को आगे जाने दिया और अंत में बोधिसत्व गए . हमेशा की तरह सियार ने लाइन के आखिरी चूहे बोधिसत्व को दबोचने की कोशिश की

पर बोधिसत्व बहुत तेज गति से निकल गए और जाते जाते पलटकर सियार की ओर मुड़े ओर कहा - धूर्त सियार तुम साधू के रूप में मक्कार हो . तुमने संत बनने का नाटक किया तुम ढोंगी पाखंडी ओर बहुत बड़े धूर्त हो . सब चूहे यह सब सुन रहे थे तो असल सच उनके सामने आ गया ओर वे क्रोधित हो गए ओर समूह में एकत्रित होकर धूर्त सियार पर हमला कर दिया ओर उसे जंगल से खदेड़ दिया . धूर्त सियार अपने प्राण बचाकार जंगल से भाग गया .

रिमार्क - हमें ऐसे ढोंगी पाखंडी ओर धूर्त साधुओ से बचना चाहिए ओर इनका बहिष्कार करना चाहिए . हमारे देश में ऐसे ढोंगी पाखंडी साधुओ की कमी नही है जो देश की भोली भली जनता को अपने मायाजाल में फंसाकर लूट लेते है . आए दिन अखबारों में मीडिया चैनलों में ऐसे ढोंगी साधुओ के खुलासे होते रहते है जो बलात्कार करने से लेकर धन संपत्ति तक लूट लेते है.

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28.10.08

दिवाली के अवसर पर हँस ले : दिवाली पर फुलझडी और बम

एक मछियारे ने अपने साथी मछियारे से कहा - भाई मैंने इतनी बड़ी मछली पकडी की वह नाव में नही समां रही थी और उसे तौलने के लिए कोई तराजू भी नही मिल रही थी तो मैंने उस मछली की फोटो ले ली और फ़िर रुक मुस्कुराया और रुक कर बोला तुम्हे मालूम हो कि उस मछली कि फोटो का वजन ११ किलो था तो उस मछली का वजन कितना रहा होगा.

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एक सेठ ने एक पंडित जी को दिवाली के दिन अपने घर निमंत्रण पर बुलाया और उन्होंने पेट भरकर खाया और अपनी तौंद पर हाथ फेरकर एक लम्बी डकार ली और कहा बस भर गई है . उसके बाद पंडित जी के सामने दो मलाई कि दो प्लेट राखी गई और पंडित ने वे प्लेट भी साफ़ कर दी . सेठ का लड़का पास में खड़ा था बोला पंडित जी आपकी बस भर गई फ़िर भी अपने दो प्लेट मलाई भी खा ली .
लडके से पंडित जी बोले- बेटा बस तो भर गई थी परन्तु कंडेक्टर की सीट खाली थी.

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अरे भाई दिवाली के दिन तुम चम्मच धोने क्यो बैठ गए हो ?
अगले ने उत्तर दिया - धोने दे यार वरना जेब ख़राब हो जावेगी.

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दिवाली के दिन एक पहलवान एक जूते की दूकान पर जूते लेने गया . दुकानदार ने उसे कई जूते दिखाए पर पहलवान को कोई जूता फिट नही हो रहा था .
आखिर में पहलवान ने एक में पैर डालते हुए कहा भाई इसे पैक कर दो यह ठीक रहेगा .
दूकानदार बोला - हुजूर माफ़ कीजिए यह जूता नही है यह जूते का डिब्बा है.

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प्रोफेसर - क्या तुम मुझे सोलहवी शताब्दी के वैज्ञानिको के बारे में कुछ बता सकते हो ?
छात्र - सर वे सब मर गए है.

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कबाडी बाजार में एक आदमी एक कबाडी से पुरानी पुस्तके खरीद रहा था . ग्राहक को दूकान में एक पुरानी किताब दिखी जिसका नाम था " करोड़पति कैसे बने" पर उस पुस्तक में आधे पन्ने थे .
ग्राहक दूकानदार से बोला - भाई दुकानदार जी इस किताब में आधे पन्ने गायब है.
दूकानदार ने कहा - आधे पन्नो में भी तो आधा करोड़पति बना जा सकता है.

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दिवाली के दिन एक दूकान पर एक ग्राहक संतरे खरीदने गया .
ग्राहक को देखकर दूकानदार तपाक से ग्राहक से बोला - सब पिछले सप्ताह जो आप संतरे ले गए थे वो कैसे रहे ?
ग्राहक - संतरे बड़े ताजे रहे.
दूकानदार ने फौरन कुछ संतरे ग्राहक की और बढ़ते हुए कहा साब इन्हे ले जाओ पिछले हफ्ते के उन्ही में से बचे है.

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दिवाली धमाका
एक आदमी थाने पहुँचा और थानेदार से बोला आप मेरे घर की चाबी रख लीजिये .
थानेदार सकपका गया और बोला क्यो ? वह आदमी बोला आज दिवाली के अवसर पर एक ड्रिंक पार्टी है और जाहिर है कि मै पार्टी में छककर व्हिस्की और वोदका पिऊंगा और ऐसी हालत में मेरी चंबियाँ गिर सकती है और मै यह सोच रहा हूँ कि नशे में धुत सड़क से मुझे पकड़कर कोई पुलिसवाला थाने लायेगा तो मै आपसे घर की चाबी ले लूँगा.

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मालकिन नौकर से तुमने फ्रिज साफ़ कर दिया .
नौकर बोला - हाँ मालकिन
मैंने फ्रिज अच्छी तरह से पूरी तरह से साफ़ कर दिया है हर चीज स्वादिष्ट और लाजबाब थी.

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खानसामा रोने लगा कि हाय साहब का कुत्ता मर गया बड़ा प्यारा था दुलारा था हर काम अच्छी तरह से कर देता था.
साहब - लगता है तुम्हे मेरे कुत्ते से बड़ा लगाव और प्यार था .
खानसामा - हुजूर पूछिए मत वह बड़े प्यार से जूठी प्लेट अपनी जीभ से साफ कर देता था . हुजूर मै प्लेट धोने धुलने धुलाने के चक्कर से बच जाता था हाय अल्लाह अब प्लेट कौन साफ़ करेगा और यह कहकर बेहोश हो गया.

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शिक्षक छात्र - इसे दो प्राणियो के नाम
बताओ जिनके दाँत नही होते है ?
छात्र - हाथ उठाकर कहा सर दादा और दादी.

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26.10.08

दीवाली की शुभकामना के साथ रचना - घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले और मै एक नन्हा छोटा सा दिया.

घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
सुख शान्ति का संकल्प ले अखंड पावन दीप जलाये.

घर घर में उपजे देवीय गुण बने सभी आचार परायण
आधि व्याधि हर लेने वाली सबके मन में ज्योति जले.




घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
स्वार्थ नही परमार्थ संवारे , मानस के कल्मष धो डाले.

हर जगह हो नंदन सी हरियाली, नील गगन के तले
घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले.

जाने सब जप तप की गरिमा जाने प्रभु की महिमा
जिस बगिया से हम निकले बने उसी बगिया के माली.

मै एक नन्हा छोटा सा दिया




धरती की मिट्टी को
अनेको पैरो से रौंदकर
भट्टी में जलते अंगारों के बीच
मुझे खूब तपाकर
जन्मदाता ने मुझे जन्म दिया है.
मै एक नन्हा छोटा सा दिया

मै अपने संकल्पों का निर्वहन
भली भांति कर रहा हूँ
मुझे अपने दायित्वों का बोध है
जाति पाती का भेद नही है मुझमे
मै एक नन्हा छोटा सा दिया

अंधियारों और हवाओ से लड़कर
गरीबो की कुटिया से लेकर सभी को
उजाला देकर ही बुझता हूँ
सबको मै प्रकाश देता हूँ
मै एक नन्हा छोटा सा दिया,

यह रचना दीवाली के पावन अवसर पर आप सभी हिन्दी ब्लॉगर बहिनों और भाइओ को समर्पित कर रहा हूँ . दीपावली के पावन पर्व पर आप सभी को मेरी और से हार्दिक ढेरो शुभकामनाये . आप सभी का आगामी वर्ष उज्जवल हो आपका भविष्य मंगलमय हो और सुख सम्रद्धि वैभव से परिपूर्ण हो .

22.10.08

आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए.

देश में चल रहे जाति पति और भाषावाद और क्षेत्रवाद के आधार पर बड़ी दुखद स्थितियां चल रही है इन पर कुछ पंक्तियाँ लिखी जो आपकी नजर प्रस्तुत कर रहा हूँ.

जिंदगी में आदमी को प्यार की पहचान आना चाहिए
आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए
देश क्या परदेश क्या सारा संसार अपना हमारा यार हो
रहे चाहे न रहे कुछ भी हमारा बस बांटने को प्यार हो
दूर से बस प्यार मौहब्बत का एक पैगाम आना चाहिए
गर रहे हम या न रहे हमारे देश की आन रहना चाहिए
राम क्या रहीम क्या अजान हम सबकी उसकी जान है
जो प्रभु और आदमी में भेद समझे वह पागल नादान है
प्यार शान से इंसान को सबको सिखाना बढ़ाना चाहिए

रचना - महेंद्र मिश्रा,जबलपुर.

20.10.08

तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही.

मेरी जुबान से पूछ लो या चाँद से तुम पूछ लो
किस्सा अपना मेरा हर तरफ़ जहाँ से पूछ लो.

बिगड़ी हुई तदवीर से अपनी फ़िर तकदीर बना ले
एक दांव तू भी लगा ले गर अपनों पर भरोसा है.

तेरे जिस्म की खुशबू में मेरा हर लब्ज ढला है
तेरे जिस्म से हर रंग उजला निखरा निकला है.

मोहब्बत करने की उनको रियायत बहुत ही खूब थी
अहसास नही हुआ कि दिल उन्होंने मेरा चुराया था.

तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही
मेरे दिल में जो प्यार है इस सारे जहाँ में नही .

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19.10.08

टी.वी.चैनलों में अश्लीलता और हिंसा के द्रश्यो पर सुप्रीम कोर्ट की चिता जायज ?

इस समय देश में दर्जनों टी.वी.चैनलों की भरमार है जो लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए निरंतर हिंसा और अश्लीलता से लबरेज द्रश्य परोस रहे है जिसका दुष्प्रभाव युवा पीढी पर अधिकाधिक पड़ रहा है . जिस पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और टी. वी. चैनलों को कड़ी फटकार लगाई है और प्रसारण स्थिति पर सरकार से प्रतिवेदन माँगा है . इस मामले में कोर्ट ने कहा कि परिवार के लोग अब एक साथ बैठकर टी.वी.चैनल के कार्यक्रम नही देख सकते है जिनमे हिंसा और अश्लीलता आजकल जमकर दर्शको के लिए परोसी जा रही है .

विगत दिनों न्यायालय के समक्ष एक समाजसेवी द्वारा टी.वी चैनलों पर जमकर दिखाई जा रही हिंसा और अश्लीलता के ख़िलाफ़ एक जनहित याचिका प्रस्तुत की गई थी जिस पर विचार करते हुए माननीय न्यायालय द्वारा उपरोक्त विचार व्यक्त किए गए और इस दौरान माननीय न्यायाधीशों द्वारा सुनवाई के दौरान टी.वी. चैनलों के कुछ एपीसोड के बारे में विस्तार से जिक्र किया और चिंता व्यक्त की और कहा कि कई ऐसे द्रश्यो को बार बार चैनलों में दिखाया जा रहा है . माननीय न्यायाधीशों द्वारा चिंता करते हुए कहा गया है यह मसला संवेदनशील है और सीधे जनसामान्य से जुड़ा है . इस पर सरकार द्वारा अभी तक कठोर अधिनियम न बनाये जाने पर भी चिंता व्यक्त की गई .

जनहित और समाज से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले पर माननीय न्यायाधीशों की चिंता सच और जायज और सराहनीय है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है . इस मामले मे माननीय न्यायाधीशों की चिंता देखकर लग रहा है कि न्याय ख़ुद देख रहा है और महसूस कर रहा कि वास्तव मे टी.वी.चैनलों द्वारा हिंसा और अश्लीलता जमकर समाज के सामने परोसी जा रही है जिसका दुष्परिणाम सीधे सीधे जनमानस पर पड़ रहा है . जल्दी ही सरकार को जनभावनाओ की मंशा के अनुरूप जनहित मे कठोर कानून बनाना चाहिए और समाज हित मे भारतीय संस्कृति के अनुरूप ऐसे चैनलों के प्रसारण मे रोक लगना चाहिए.

Nirantar........

14.10.08

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल

आचार्य श्रीराम गुरुदेव की पुस्तक युग निर्माण शांतिकुंज हरिद्वार पढ़ रहा था जिसमे एक बहुत ही सुंदर रचना पढ़ी जो प्रेरक संदेश देती है . मानसिक संबल आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए ऐसी कविताये प्रेरक दवा का काम करती है . प्रस्तुत कर रहा हूँ.

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल
आगे कदम बढाता चल बढाता चल बढ़ाता चल

अन्धकार का वक्ष चीरकर फूटे नव प्रकाश निर्झर
प्राण प्राण में गूंजे शाश्वत सामगान का नूतन स्वर
तुम्हे शपथ है ह्रदय ह्रदय में स्वर्णिम दीप सजाता चल
स्नेह सुमन बिखरता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

पूर्व दिशा में नूतन युग का हुआ प्रभामय सूर्य उदय
देवदूत आया धरती पर लेकर सुधा पात्र अक्षय
भर ले सुधापात्र तू अपना सबको सुधा पिलाता चल
शत शत कमल खिलाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल.

ओ नवयुग के सूत्रधार अविराम सतत बढ़ते जाओ
हिमगिरी के ऊँचे शिखरों पर स्वर्णिम केतन फहराओ
मंजिल तुझे अवश्य मिलेगी गीत विजय के गता चल
नवचेतना जगाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

रचना - आचार्य गुरुदेव.
युग निर्माण शांतिकुंज हरिद्वार.

ब्रम्हकमल जो सिर्फ़ शरद पूर्णिमा को खिलते है .

ब्रम्हकमल एक ऐसा पुष्प है जो सभी देवी देवताओं को अत्यन्त प्रिय है इसीलिए इसका बैदिक महत्त्व है . वर्ष में केवल एक रात को ही खिलने वाला यह पुष्प शायद इन्ही गुणों के कारण दुर्लभ है . शरद पूर्णिमा को ब्रम्हकमल के पुष्प से लक्ष्मी जी की पूजा करने से श्री लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है . कहा जाता है कि जब राम रावण का युद्ध चल रहा था और युद्ध काफी लंबा खिचने से श्री राम काफी दुखी हो गए . रीछ जामबंत ने श्री राम को जगतजननी का अनुष्ठान करने की सलाह दी . भगवान प्रभु श्री राम ने प्रत्येक आहुति में समिधा के रूप में एक ब्रम्हकमल पुष्प अर्पित किया . जब अन्तिम ब्रम्हकमल बचता है तो जगतजननी उसे स्वयं उठा लेती है .





प्रभु श्रीराम जब अन्तिम पुष्प नही पाते है तो अनुष्ठान भंग होने की आशंका से उनका मन खिन्न हो जाता है . तभी भगवान श्रीराम को याद आता है कि उन्हें उनकी माँ राजीवलोचन कहकर संबोधित करती है . भगवान श्री राम ने ब्रम्हकमल के स्थान पर अपने नेत्र अर्पित करने के लिए जब कटार उठाते है तभी माँ जगतजननी वहां प्रगट हो जाती है और श्री राम को विजयी भावः का आशीर्वाद देती है . शरद पूर्णिमा के रात्रि को इस दुर्लभ पुष्प को देखकर कई लोग सारी रात काट देते है .

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12.10.08

कटीले चुटकुले

कटीले चुटकुले

एक जहाज़ी पुराने युध्ध क़ी बात अपने साथियो को चहक कर सुना रहा था
वह सुना रहा था कि बार एक तारपीडो बड़ी तेज़ी के साथ हमारे जहाज़
की तरफ़ आ रहा था.
दूसरा साथी बोला फिर क्या हुआ ?
वह बोला फिर क्या हुआ खुदा का शुक्र है कि वह हमारा निकला..
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एक बीबी ने थर्मा मीटर से अपने पति का ग़लत टेँपरेचर नाप लिया
फिर डाक्टर को फ़ोन कर बोली जल्दी आओ मेरे पति का टेँपरेचर
120 से अधिक हो रहा है
डाक्टर बोला फिर मेरा कोई क़ाम नही रह गया है फ़ायर बिग्रेड को
बुलवा लो .

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11.10.08

डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" की एक सुंदर रचना "लहू की लाज"

डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" जबलपुर संस्कारधानी के युवा कवि है और मेरे अच्छे मित्र है . समय समय पर इनकी काव्य रचना प्रकाशित होती रहती है . पुस्तक " किसलय के काव्य सुमन " डाक्टर तिवारी द्वारा रचित है . इनकी पुस्तक मरुस्थल में हरित भूमि के मानिंद है और द्विवेदी युगीन काव्य धारा का स्मरण कराने वाली गंभीर द्रष्टि की परिचायक कृति है. बर्तमान में विजय तिवारी जी एम.पी.लेखक संघ,कहानी मंच, मिलन.पाथेय मंच, मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मंडल हिन्दी परिषद् आदि से सम्बद्ध है . आज मै अपने कवि मित्र भाई विजय तिवारी जी की एक सुंदर रचना "लहू की लाज" आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ .

लहू की लाज

राह श्रेष्ट है मानवता की
इसको तुम अपना लेना
जेब किसी की खाली हो
उसको निज संबल देना.

न्याय धर्म की पतवारो से
जीवन नैया पार लगना
द्रव्यमान होने पर भी तुम
नम्र भाव को नही भुलाना.

अहित न हो दुर्बल दलितों का
उनके हित में हाथ बँटाना
ग्रहण किए निज कर्म ज्ञान से
प्रगति राह से आगे बढ़ते जाना.

वाकशक्ति के पावन श्रम का
सही अर्थ सबको समझाना
लज्जित न हो लहू तुम्हारा
ऐसा बल वैभव दिखलाना.

लेखक - डाक्टर विजय तिवारी "किसलय"
पुस्तक किसलय के काव्य सुमन से रचना साभार
जबलपुर.
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9.10.08

जबलपुर के राइट टाऊन स्टेडियम में इस दशहरा जुलूस में दिल्ली और पंजाब की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है .

भारतीय संस्कृति की उत्सवप्रियता विश्व प्रसिद्द है . इन्द्रधनुषी समारोह सालभर उल्लासित करते रहते है और इनका रंग भारतीयो को अनादित करते करके तनावरहित बनता है . जबलपुर संस्कारधानी का पंजाबी दशहरा आधी शताब्दी की यात्रा तय कर सुनहरे अक्षरो में दर्ज हो चुका है . भारत में यह दशहरा इस समय दिल्ली के बाद दूसरे नंबर पर है इसकी भव्यता और रौनक देखते ही बनती है . जबलपुर के राइट टाऊन स्टेडियम में इस दशहरा जुलूस में दिल्ली और पंजाब की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है .

५८ सालो पूर्व इस दशहरे की शुरुआत हुई जबलपुर शहर में .

आजादी के बाद पकिस्तान और भारत के बटवारे के साथ पंजाबी समाज के लोग जबलपुर आये और ओमती क्षेत्र में एक कुटुंब के रूप में रच बस गए. १९५० से यह दशहरा शुरू किया गया . पहले पंजाबी दशहरा का जुलूस वशीर के बाड़े ओमती से प्रारम्भ होता था . रावण मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतलो का दहन बर्तमान पुलिस कंट्रोल रूम है वहां किया जाता था .
विगत दिवस जबलपुर में राइट टाऊन स्टेडियम में पंजाबी दशहरा कार्यक्रम आयोजित किया गया . बुराई के प्रतीक ५५ फुट ऊँचे रावण मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतलो का दहन किया गया . बमों के धमाको और रंगीन आतिशबाजी के बीच भगवान राम और लक्ष्मण हनुमान सहित रथ पर सवार होकर स्टेडियम पहुंचे . स्टेडियम में जनसैलाब उमड़ रहा था . चाइना की रंगीन आतिशबाजी के नज़ारे बस देखते ही बनते थे . पहलवानों ने उत्कृष्ट कोटि की चुस्ती फुरती का प्रदर्शन कर जनसमुदाय का मन मोह लिया . बच्चो ने " तारे जमीन पर" की धुन पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किए . पंजाबी भांगडा और गिद्दा विशेष आकर्षण के केन्द्र रहे .

पंजाबी दशहरा जबलपुर शहर में साम्प्रदायिकता और सदभाव के अप्रतिम कीर्तिमान स्थापित कर रहा है जिसकी जीतनी सराहना की जावे कम है .


रात्रि में स्टेडियम का विहंगम द्र्श्य








गिद्दा नृत्य करती एक कलाकार .



ओ पापे भांगडा करती मंडली .


चाइनीज रंगीन आतिशबाजी .


बुराई के प्रतीक रावण पर निशाना साधते हुए श्री राम और लक्ष्मण







रावण के वध के पश्चात हर्षित मुद्रा में श्री हनुमान.



जब रावण धू धू कर जल उठा.




पंजाबी भांगडा और गिद्दा विशेष आकर्षण के केन्द्र रहे.


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8.10.08

कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर

कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर

गम की दास्ताँ हमसे न पूछो दिले दर्द सुनाकर हम फ़िर तडफेगे
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर

कभी कभी दिए जलाकर ख़ुद प्यार के अपने हाथो बुझाने पड़ते है
कभी कभी ख़ुद को मिटाकर वादे कस्मे फ़िर भी निभाने पड़ते है.

तमाम कोशिशे की बहुत चाहा मैंने उनको भुला कर कि हम जिए
कोशिशे तमाम मेरी नाकाम रही है पर भुलाकर हम जी न सके.

दिलशाद कभी न हो पाया मेरा ,मैंने माँ से भी ज्यादा जिसे चाहा
अपना दामन छुडा कर चले गये फ़िर भी न अब न लगे दिल मेरा

मयकदे में जाकर देखा है बज्म उनकी तलाश इन आँखों को है
जो नजरो से गिराकर गए है मुझे न करार न सुकून मिल सका है

दिल लगाकर ये एहसास हुआ है जो चले गए ठोकरों में उड़ाकर
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर.

7.10.08

अब मिलिए जबलपुर रामलीला में भरत शत्रुधन बनने वाले पात्रो से

जबलपुर शहर में इन दिनों रामलीला की धूम मची हुई है बर्तमान में इस शहर में नौ रामलीला समितियां सक्रिय है . इन रामलीला समितियों में एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी अभिनय प्रतिभा की दम पर जनमानस का मन मोह लेते है . पिछली पोस्टो में इन रामलीलाओ में रावण पात्र के रूप में अभिनय करने वाले कलाकारों के बारे में और हनुमान पात्र का अभिनय करने वाले कलाकारों के बारे सचित्र जानकारी दी थी . विविध भारती मुंबई के ब्लॉगर युनूस खान जी की फरमाईस पर गोविन्दगंज रामलीला समिति में भरत और शत्रुधन के पात्रो का अभिनय करने वाले कलाकारों के बारे में फोटो सहित जानकारी दे रहा हूँ . गोविन्दगंज जबलपुर शहर की रामलीला १६५ वर्ष पुरानी है और इसका एतिहासिक महत्त्व है .

भरतहि धरम धुरंधर ज्ञानी
निज सेवक तन मानस बानी
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सुधि पाठको आज इन कलाकारों के पारंगत अभिनय के क्षेत्र धुरंधर कलाकारों के बारे में जानकारी दे रहा हूँ . अवधपुरी के चारो भाइओ में से राम लखन सीता के साथ वनागम करने गए . श्री राम के वनवास पर जाने से अयोध्या नगरी विचलित हो गई . भरत और शत्रुधन दोनों भाई प्राणों से प्रिय अपने भाई राम लक्ष्मण और जानकी सीता के वनवास पर जाने के साथ राजपाट संभालने का कार्य कैकयी सुत भरत के कंधे पर आ पड़ा. भरत ने श्री राम की पादुकाओं कों सिंघासन पर रखकर राजसुख होने के बाबजूद १४ वर्षो तक रघुवंश के सिंघासन पर रखा और तपस्वी सा जीवन जिया .
चित्रकूट में भरत श्रीराम से मिलाप मुलाकात करने के लिए दौड़ पड़े थे . भरत मिलाप का अदभुत प्रसंग है . चलिए मिलते है कलाकारों से.

श्री गोविन्द गंज रामलीला जबलपुर





भरत का रोल १३ वर्षीय आदित्य दुबे कर रहे है . वे कक्षा आठवीं के छात्र है . वे कहते है की इस पात्र कों निभा कर उन्होंने बडो का आदर करना सीखा .







शत्रुघ्न का अभिनय कक्षा सातवीं के छात्र अंकित मिश्रा कर रहे है . उनका कहना है कि वे अपने भाई की प्रेरणा से अभिनय के क्षेत्र में आए है .


गोकलपुर रामलीला समिति ९९ वर्षो से है इसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व है .


१६ वर्ष के राहुल शर्मा भरत के पात्र का अभिनय कर रहे है . यह रामलीला सफल मंचन और सशक्त अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है . राहुल कों बचपन से ही अभिनय का शौक है .



१२ वी कक्षा के छात्र अनुराग पांडे शत्रुधन का अभिनय कर रहे है और बताते है कि उन्होंने अभिनय कला अपने पिता और ताऊ से सीखी है . वे रामलीला समिति में सभी पात्रो का अभिनय कर चुके है .


सत्य पर विजय का प्रतीक है दशहरा









शहर जबलपुर संत बिनोबा द्वारा संबोधित " संस्कारधानी " के नन्हे मुन्नों ने असत्य के प्रतीक रावण का दहन किया और विजयौल्लास मनाया . इस समय शहर कि धार्मिक फिजां एक श्रद्धा की लहर बस देखते ही बनती है . यह सब देखकर बस कहते ही बनता है कि जबलपुर संस्कारो और कलाकारों का गढ़ है जहाँ एक से एक बढ़कर नए कलाकार पनपते है .


जय श्री राम
जय अम्बे माँ रानी भवानी जगदम्बे
.

यह कड़ी दशहरा तक जारी रहेगी ......

6.10.08

हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.

एक आशियाना सजाने में मेरी हस्ती मिट गई
उन्हें हालेगम सुनाने में तमाम उम्र गुजर गई
देखिये वो..एक पल में फ़िर से बेगाने हो गए
कई कई बरस लग गए उन्हें अपना बनाने में.

मेरे दिले गम पर कहकहे लगाए थे सभी ने
हमें सारे ज़माने में मुझे एक भी हमदर्द न मिला
गीत गजल.. जब मेरे अश्को पर ढल गए यारा
हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.

कोई तो अपनी है जो मुझे अपने पास बुलाती है
यूँ बुलाती है मुझे वो मेरी प्यारी अपनी तो है
यारब उनका रहमो करम कैसे दिल से भुला दूँ
जो मुझे अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है.

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5.10.08

आइये अब मिलिए इन जबलपुरिया हनुमानों से जो अपनी अभिनय कला से जनमानस का मन मोह लेते है .

सप्त चिरजीवितो में से एक हनुमान जी रामलीला के मुख्यनायक श्री राम के अनन्य प्रिय पात्र है . श्री हनुमान स्वामी भक्ति की अप्रतिम मिसाल है . केसरीनंदन की क्रपा से बढ़कर कलयुग में दूसरा कोई आधार नही है . हनुमान के वगैर रामायण अधूरी रहती पर रामायण में केसरीनंदन की उपस्थिति रामायण कथा को और भी रोचक बना देती है . पिचले अंक में मैंने जबलपुर संस्कारधानी में चल रही रामलीलाओं में रावण की भूमिका निभाने वाले पत्रों के सम्बन्ध में जानकारी दी थी आज मै संस्कारधानी में रामलीलाओं में हनुमान के पात्र का दायित्व निभाने वाले कलाकारों की फोटो सहित जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ . आइये अब मिलिए इन जबलपुरिया हनुमानों से जो अपनी अभिनय कला से जनमानस का मन मोह लेते है .


श्री राम और वानर सेना लक्ष्मण सहित



राजेश तिवारी श्री गोविन्दगंज रामलीला में हनुमान के पात्र का अभिनय निभा रहे है.



श्री गोविन्दगंज रामलीला समिति जबलपुर

राजेश तिवारी चार वर्षो से इस समिति में हनुमान का अभिनय कर रहे है. उनका कहना है की हनुमान भक्ति से सब कुछ आसान हो जाता है . आप बी.सी.ए. द्वतीय वर्ष के छात्र है . गत वर्ष उनके पिता पैरालाइसिस से पीड़ित हो गए थे तो उन्होंने हनुमान जी से प्राथना की तो उनके पिता अच्छे हो गए. . पढ़ाई के साथ मंचन करना पड़ता है जो श्री राम की कृपा से पूरी हो जाती है . इस रामलीला समिति की स्थापना १६५ वर्षो पूर्व की गई थी . संस्कार धानी की सबसे एतिहासिक पुरानी रामलीला समिति मणि जाती है .



श्री धनुष यज्ञ रामलीला समिति सदर जबलपुर हनुमान का अभिनय श्री अग्निहोत्री जी
श्री रामलीला समिति सदर जबलपुरयहाँ का अग्निहोत्री परिवार के सदस्य दो पीढियो से हनुमान के पात्र का निर्वहन कर रहे है . यह परिवार इसीलिए भी प्रसिद्द है कि पिता हनुमान का और बेटा राम की भूमिका निभा रहे है .



श्री रामलीला समिति अधारताल जबलपुर




हे रावण तू राम का दास बनेगा तो अप्सराएँ निरखेगी...अन्यथा मरेगा मधांत तेरी लाश पर मख्खियाँ भिनकेगी .
रावण को समझाईश के लिए बोले गए हनुमान के इस संवाद से मंच पर सन्नाटा खिच जाता है . हनुमान का रोल श्री मनमोहन पांडे निभा रहे है वे पिछले २० वर्षो से इस रामलीला समिति में परसुराम सहित कई पत्रों का अभिनय कर चुके है . आप पेशे से उच्च न्यायलय में अधिवक्ता है .



श्री गिरिजाशंकर रामलीला समिति धमापुर में हनुमान के पात्र के रूप में श्री शिवमणि मिश्रा जी
श्री गिरिजाशंकर मन्दिर रामलीला समिति धमापुर जबलपुर

इस समिति में हनुमान की भूमिका श्री शिवमणि मिश्रा निभाते है . आप पेशे से शिक्षक है . श्री मिश्रा दस वर्षो से परसुराम और श्री हनुमान के पात्र का अभिनय कर रहे है . आपकी भगवान में आस्था है . व्यस्तता के बावजूद वे इस काम को भगवान का काम समझकर समय निकाल लेते है . आपकी बचपन से रामलीला में रूचि है. प्रभु श्री राम का गुणगान करते हुए कहते है " प्रभु रघुनाथ है दयानिधि वे अपनों को अपनाते है जो उनके शरणागत हो उसे गले लगाते है . उनसे मिलने की राह यही विश्वासी हो जाओ भइया . मंत्रो से जैसे सिन्धु आ जाते है कलश में है . भावना जो निर्मल हो तो भगवान भी भक्त के वश में आ जाते है "


श्री रामलीला समिति गोकलपुर जबलपुर हनुमान के पात्र का अभिनय करते भाई मगन लाल
श्री हरिहर रामलीला समाज गोकलपुर जबलपुर
श्री मगन लाल यादव इस समिति में अच्छी कद काठी के कारण हनुमान के पात्र का अभिनय कर रहे है वे बीस वर्ष से रामलीला समिति से जुड़े है . यह रामलीला समिति ९९ वर्षो पूर्व से स्थापित है .







श्री रामलीला समिति जबलिपुरम में हनुमान की भूमिका में श्री अभिषेक
श्री रामलीला समिति गढा जाबलिपुरम जबलपुर
पंडित अभिषेक शर्मा दरअसल पांडित्य के जरिये अपनी जीविका चलाते है . हनुमान के रूप में वे सातवी बार अपनी कला का प्रदर्शन करने जा रहे है . बताते है कि वे चार साल की उम्र में बजरंग बलि बने थे. उछलने कूदने के कारण उनके पैर में फैक्चर हो गया था . डाक्टरों ने बेडरेस्ट कि सलाह दी थी . पर उन्होंने श्री हनुमान जी के सामने एक नारियल रखकर प्राथना कि थी तो चमत्कारिक रूप से तत्काल उनके पैर से दर्द गायब हो गया फ़िर वे हनुमान बनकर मंच पर जमकर उछले कूदे . उनकी कद काठी हनुमान के पात्र के अनुरूप है . चाहे संजीवनी बूटी का प्रसंग हो या अहिरावन की कैद से राम लक्ष्मण को छुडाने का द्रश्य हो वे राम और लक्ष्मण इन दोनों पात्रो को अपने कंधे पर बैठाकर मंच पर अदभुत सम्मोहन पैदा कर देते है .

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4.10.08

तेरे चेहरे पर मेरी झलक कोई न देख ले, कसम है तेरे अश्को को शंकर बन पी लूँगा.

मेरा शहर है पत्थरो का फरियाद न कर
यार मेरे समय को तू बरबाद न कर.

यार बहुत बेहतर तन्हा दिल है.. मेरा
नाशाद हो जाएगा प्यार में दिल..मेरा.

मै मर जाऊंगा अपनी निगाहें न फेरो
किधर जायेंगे गर तुम साथ छोड़ दोगे.

तेरी जुल्फों का साया रहे मेरे चेहरे पर
गर जिंदगी मेरी फ़िर से संवर जायेगी.

गर किनारा न मिले भटकती कश्ती को
सब कुछ मिला पर तेरा साथ नही मिला.

मेरे कदम अब शोहरत की बुलंदी पर है
पर मेरी बांहों को तेरा सहारा न मिला.

तुम हमेशा खुश नसीब रहो दुआ है मेरी
यार जी लूँगा मै हंसकर तेरी जुदाई में.

तेरे चेहरे पर मेरी झलक कोई न देख ले
कसम है तेरे अश्को को शंकर बन पी लूँगा.

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3.10.08

रामलीला : अब मिलिए संस्कारधानी जबलपुर शहर के रावणों से

अब मिलिए संस्कारधानी जबलपुर शहर के रावणों से दशकंधर की लोकप्रियता निर्विवाद है . दक्षिण में उसे शिव आराधक व पांडित्यगत विशिष्ट गुणों की वजह से विशिष्ट पूज्य स्थान प्राप्त है . उत्तरभारत में वह अच्छा पात्र नही माना जाता है . इन सबके बावजूद जहाँ तक रामलीला का प्रश्न है आसुरी प्रवृति अंहकार और क्रोध के प्रतीक रावण के बिना दैवीय सदगुणों का महत्त्व स्थापित करना संम्भव नही है . किसी भी कहानी में या कथा में जबतक नकारात्मक चरित्र न हो तो दर्शक रोमांचित नही होते है .



मुझसा योद्धा मुझसा पंडित त्रिलोक में न कोई दूजा है
अपने शीशो को काट - काट मैंने शंकर को पूजा है


अब मिलिए संस्कारधानी जबलपुर शहर के रावणों से


हिन्दी नेट पर आप बहुत कुछ पढ़ते देखते है पर आस्था से जुड़े किस्से प्रसंग बहुत कम देख पढ़ पाते होंगे. नवरात्र के पर्व के साथ देश में रामलीला मंचन की धूम शुरू हो गई है . हर कथा कहानी या अन्य नाटको के मंचन को जनसमुदाय काफी पसंद करता है . मैंने भी सोचा कि मै अपने ब्लॉगर भाई बहिनों को जबलपुर रामलीला के रावणों और उनके पात्रो से परिचित करा दूँ . इस समय इन रावणों की बड़ी धूम चल रही है देखिये



श्री रामलीला समिति गोविन्दगंज - रावण के किरदार का रोल निभा रहे है श्री प्रमोद बाजपेयी

भगवान ने बचाया ब्रेन हेमरेज से

संस्कारधनि जबलपुर में गोविन्द गंज रामलीला का मंचन सन १८६५ से किया जा रहा है . इस समिति में रावण का किरदार निभा रहे खमरिया फेक्टरी में नौकरी करते है . सन २००६ में उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था और उनका कहना है कि ईश्वर के आशीर्वाद से वे अच्छे हो गए . जबलपुर त्रिमूर्ति नगर निवासी श्री बाजपेई २३ वर्षो से इस रामलीला समिति से जुड़े है . राम का मंच पर असल विरोधी होने पर भी श्री बाजपेई असल जिंदगी में राम के अनन्य भक्त है . रामलीला की सम्रद्ध परम्परा में रावण का किरदार सबसे सशक्त माना जाता है .

श्री रामलीला समिति गढा जबलिपुरम - रावण के चरित्र को निभाते है श्रीकृष्ण शुक्ला
इस समिति से श्री शुक्ला जी २० वर्षो से जुड़े है . गढा निवासी श्री शुक्ला जी रोअगार कार्यालय में कार्यरत है . उनकी कद काठी दशानन के पात्र के लिए उपयुक्त है . रंगमंच जबलपुर के माध्यम से अपनी अभिनय कला के जलवे बिखेर रहे है . आप एक अच्छे रंगमंच कलाकार है .





श्री राघवेन्द्र रामलीला समिति झंडा चौक पुरवा - रावण के पात्र का निर्वहन कर रहे है श्री देवशंकर अवस्थी
श्री अवस्थी इस रामलीला समिति से गत ३२ सालो से जुड़े है और रावण के किरदार का रोल पिछले २४ सालो से बखूबी निभा रहे है . जव वे मंच पर जाते है उनकी रौबोली आवाज के मध्य दर्शको में श्वशारोधक वातावरण स्पष्ट देखा जा सकता है . उनके संवाद की एक झलक ........
अब अच्छा अवसर मिला है मै उनकी सारी नारियां चुराऊंगा और नर है तो उनसे अपना बदला ले लूँगा .
दमदार आवाज के कारण वे इस रोल को बखूबी से निभा रहे है .


श्री झंडा चौक रामलीला समिति पुरवा जबलपुर में रावण के पात्र का निभाने वाले श्री देवशंकर अवस्थी ने विगत वर्ष मानवहित में नेत्रदान करने का सराहनीय संकल्प लिया .







श्री गिरिजाशंकर मन्दिर रामलीला धमापुर - रावण का किरदार श्री महेंद्र शुक्ला निभाते है
रावण बनने वाले श्री शुक्ला जी कहते है कि बार वे रामलीला में सीता का हरण कर ले जा रहा था कि मंचन के दौरान उनकी नकली दाढी सीता की साडी के पल्लू में फंसकर फौरन निकल गई थी . दर्शको ने भी खूब ठहाके लगाये थे . उसके बाद से रामलीला का मंचन शुरू होने के छह माह पहले से शुक्ला जी अपनी असली दाढ़ी बढ़ाना शुरू कर देते है . वे बाई के बगीचा घमापुर रामलीला में गत पन्द्रह सालो से रावण के पात्र का अभिनय कर रहे है .



श्री धनुष यज्ञ रामलीला समिति सदर - रावण के पात्र का अभिनय करते है श्री सीता राम कुरचानिया
श्री कुरचानियाँ मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मंडल के सेवानिवृत कर्मचारी है . वे अपनी बुलंद आवाज के लिए जाने जाते है और प्रदेशस्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुके है . वे सन १९८२ से इस रामलीला समिति से जुड़े है .



जबलपुर अधारताल रामलीला समिति के रावण श्री अजीत केवट.