14.4.10

माइक्रो पोस्ट - मनुष्य पुरुषार्थ का पुतला है और उसकी सामर्थ्य और शक्ति का अंत नहीं है

माइक्रो पोस्ट - मनुष्य पुरुषार्थ का पुतला है और उसकी सामर्थ्य और शक्ति का अंत नहीं है . वह बड़े से बड़े संकटों से लड़ सकता है और असंभव के बीच संभव की अभिनव किरणें उत्पन्न कर सकता है . शर्त यहीं है की वह अपने को समझे और अपनी सामर्थ्य को मूर्त रूप देने के लिए साहस को कार्यान्वित करें .

9.4.10

मेरे प्यार को तू झूठी तोहमत न लगा

तेरे दिल में जब वफ़ा का नाम नहीं है
फिर तुझे गैरो से वफ़ा क्यों मिलेगी.

मित्र की नादान दोस्ती को ठुकरा कर
तुझे फिर दिलों से भी दुआ न मिलेगी.

क्या खता हुई मुझसे मुंह मोड़ लेते हो
खुशियाँ देने आये बदले में गम मिले.

मेरे प्यार को तू झूठी तोहमत न लगा
मेरे जैसा यार तुझे जन्नत में न मिलेगा.

2.4.10

बचपन की यादे : तुम्हारी बऊ खौं ....

आज सुबह सुबह जब टहलने निकला जैसे ही एम.आर. सड़क पर पहुंचा उसी समय बचपन के चार मित्र का अचानक आमना सामना हो गया . बीच सड़क पर खड़े होकर काफी देर यहाँ वहां की बाते की और एक दूसरे के हाल चाल जाने . फिर हम पांचो मित्र सड़क के किनारे बनी पुलिया पर बैठ गए . फिर इस बात पर चर्चा छिड़ गई की कभी कभी किसी को अधिक मजाक करना पसंद नहीं होता है पहले तो वह निरंतर किये जा रहे मजाक का विरोध करता है फिर धीरे धीरे वह मजाक सहते सहते सहनशील हो जाता है और वही मजाक उसको भी पसंद आने लगता है . इसी बात को लेकर हमने अपने बचपन की यादें तरोताजा की और एन्जॉय किया .

फोटो गूगल से साभार.

बचपन में हम सभी मित्र दीक्षितपुरा बर्तमान में उपरैनगंज वार्ड में रहते थे . वहां मिश्रबंधु भवन के समीप एक मकान के समाने काफी बड़ी पट्टी बनी है जिस पर हम सब मित्र बैठकर खूब गपियाते थे और हास परिहास का दौर चलता था . करीब चालीस पैतालीस साल पहले मंजू तेली की गली में एक बड़े सर वाले पंडित जी रहा करते थे वे उस समय नियमित पैदल जाकर एक मंदिर में पूजा पाठ करने जाया करते थे .

उनका सिर (Big Head) असामान्य रूप से एक सामान्य व्यक्ति के सिर से काफी बड़ा था और उन्हें हम सभी मित्र बड़ी मूंड कहकर चिढाते थे और यह बात उन पंडित जी को बहुत अखरती थी और वे बीच सड़क पर खड़े होकर पुरजोर विरोध करते हुए चिल्ला कर यह कहते हुए " तुम्हारी माँ खौं ..... बच्चो को खदेड़ते थे और इसी भागम भाग में कोई लड़का पीछे जाकर उनकी परदानियाँ (कान्छ लगी धोती) खोल देता था फिर सड़क पर राहगीर खड़े होकर खूब हंगामा देखते थे . पंडितजी का नियमित रूप से निकलना और लड़कों की शरारते बढ़ जाती थी यह प्रतिदिन का क्रम बन गया था .

एक दिन मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो ने हम सभी मित्रो को समझाया की इन महाराज से छेड़ छाड़ करना बंद करो इन्हें मत छेड़ो . अपने बुजुर्गो की बातो का हम सभी मित्रो ने पालन करना शुरू कर दिया . अगले दिन महाराज जी फिर वहां से सड़क से निकले और हम सभी मित्र वहां पट्टी पर बैठे थे उन्हें देखकर हम सभी चुपचाप रहे .

उस दिन हां मित्रो ने महाराज से पंगा नहीं लिया बल्कि हम मित्रो को शांत बैठे देखकर महाराज ने उलटे हम मित्रो से पंगा लेते हुए जोर से कहा - आज क्या बात है आज क्या सब माद र..चो.. मर गए हैं . उस दिन हम मित्रो के दिलो पर महाराज के शब्द सुनकर सांप लोट गया . उस दिन हम लोगो ने उनसे छेड़ छाड़ नहीं की तो उन्होंने अंदाज में गाली देकर कहा की आज क्या सब मर गए है .... इससे ये भी लगा की महाराज जी से हम लोगो द्वारा जो छेड़ छाड़ की जाती है वो उन्हें रास आने लगी है जैसे कह रहे हों की छेड़ो और मुझे छेड़ो .. मरो नहीं जिन्दा होकर मुझसे छेड़ छाड़ करो ..... आज वो पंडित जी इस दुनिया में नहीं है नहीं तो उनकी फोटो इस ब्लॉग में जरुर देता . बचपन की यादें तरोताजा कर ऐसा प्रतीत हुआ की हम फिर से बचपने की और लौट गए है .

रिमार्क - पोस्ट में मुझे अपने भावों को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने के लिए कुछ लोकल असंसदीय शब्दों का प्रयोग करना पड़ा है जिसके लिए मै आप सभी से क्षमाप्राथी हूँ . यदि मै इस पोस्ट में स्थानीय शब्दों का प्रयोग नहीं करता हूँ तो मेरे नजरिये से पोस्ट की रोचकता नहीं रहेगी.

महेंद्र मिश्र
जबलपुर.