4.6.09

पहेलीमय दौर में पहेलियाँ बूझिये ?

एक बार ज्ञानदत्त जी पाण्डेय जी ने अपनी टीप में कहा कि हिन्दी ब्लॉगजगत पहले नारदमय था, फिर जूतमपैजारमय, उसके बाद कवितामय और अब पहेलीमय हो गया है. विगत दो माहो से हिंदी ब्लागजगत में पहेलियों की खूब धूम है. अपने ताउजी लगातार अपने ब्लॉग में पहेली पे पहेली चेंप रहे है. अपने उड़नतश्तरी जी भी कहाँ पीछे रहने वाले थे तो उन्होंने अपनी पोस्ट में त्रिमूर्ति ब्लागरो की ज्वाइंट फोटो लगाकर एक पहेली ठोक दी और ज्ञानजी की टीप सही साबित हो रही है हर जगह बस पहेली दर पहेली चल रही है और इसमें पाठको ने काफी रूचि भी दिखाई है. इस मामले में अपने जबलपुरिया ब्लागर्स कहाँ पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी पहेली चेपना शुरू कर दिया है पहेलीमय वातावरण में चलो अपुन भी कुछ पहेली चेंप रहे है जिसका उत्तर कल रात्रि में याने तारीख 5-6-09 को आठ बजे तक उसके बाद विजेता के नामो की घोषणा कर दी जायेगी.

पहेलीमय दौर में पहेलियाँ बूझिये ?

1. काला मुंह और लाल शरीर
कागज को वह खाता
रोज शाम को पेट फाड़कर
कोई उन्हें ले जाता.

2. आंगन में रखा रूपया,
चोर ले न चोर का भैय्या.

3. एक गाँव में आग लगी
दूसरे गाँव में धुँआ ,
चलो मित्र चलकर देखें
उठा भूमि का कुँआ.

4. दो सुन्दर लडके
एक ही रंग के दोनों
एक यदि बिछड़ जाए
तो दूजा काम न आये.

5. न खाता है और न पीता है
फिर भी वह सबके घर की
तन और मन से
ईमानदारी से रखवारी करता है.

6. मै अलबेला कारीगर
राजा रंक और सिपाही की
हरदम काटता काली सफ़ेद घास.

7. चाची के दो कान
चाचा के नहीं है कान
चाची अति सुजान
चाचा को नहीं है ज्ञान.

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