22.10.08

आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए.

देश में चल रहे जाति पति और भाषावाद और क्षेत्रवाद के आधार पर बड़ी दुखद स्थितियां चल रही है इन पर कुछ पंक्तियाँ लिखी जो आपकी नजर प्रस्तुत कर रहा हूँ.

जिंदगी में आदमी को प्यार की पहचान आना चाहिए
आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए
देश क्या परदेश क्या सारा संसार अपना हमारा यार हो
रहे चाहे न रहे कुछ भी हमारा बस बांटने को प्यार हो
दूर से बस प्यार मौहब्बत का एक पैगाम आना चाहिए
गर रहे हम या न रहे हमारे देश की आन रहना चाहिए
राम क्या रहीम क्या अजान हम सबकी उसकी जान है
जो प्रभु और आदमी में भेद समझे वह पागल नादान है
प्यार शान से इंसान को सबको सिखाना बढ़ाना चाहिए

रचना - महेंद्र मिश्रा,जबलपुर.

20.10.08

तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही.

मेरी जुबान से पूछ लो या चाँद से तुम पूछ लो
किस्सा अपना मेरा हर तरफ़ जहाँ से पूछ लो.

बिगड़ी हुई तदवीर से अपनी फ़िर तकदीर बना ले
एक दांव तू भी लगा ले गर अपनों पर भरोसा है.

तेरे जिस्म की खुशबू में मेरा हर लब्ज ढला है
तेरे जिस्म से हर रंग उजला निखरा निकला है.

मोहब्बत करने की उनको रियायत बहुत ही खूब थी
अहसास नही हुआ कि दिल उन्होंने मेरा चुराया था.

तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही
मेरे दिल में जो प्यार है इस सारे जहाँ में नही .

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19.10.08

टी.वी.चैनलों में अश्लीलता और हिंसा के द्रश्यो पर सुप्रीम कोर्ट की चिता जायज ?

इस समय देश में दर्जनों टी.वी.चैनलों की भरमार है जो लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए निरंतर हिंसा और अश्लीलता से लबरेज द्रश्य परोस रहे है जिसका दुष्प्रभाव युवा पीढी पर अधिकाधिक पड़ रहा है . जिस पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और टी. वी. चैनलों को कड़ी फटकार लगाई है और प्रसारण स्थिति पर सरकार से प्रतिवेदन माँगा है . इस मामले में कोर्ट ने कहा कि परिवार के लोग अब एक साथ बैठकर टी.वी.चैनल के कार्यक्रम नही देख सकते है जिनमे हिंसा और अश्लीलता आजकल जमकर दर्शको के लिए परोसी जा रही है .

विगत दिनों न्यायालय के समक्ष एक समाजसेवी द्वारा टी.वी चैनलों पर जमकर दिखाई जा रही हिंसा और अश्लीलता के ख़िलाफ़ एक जनहित याचिका प्रस्तुत की गई थी जिस पर विचार करते हुए माननीय न्यायालय द्वारा उपरोक्त विचार व्यक्त किए गए और इस दौरान माननीय न्यायाधीशों द्वारा सुनवाई के दौरान टी.वी. चैनलों के कुछ एपीसोड के बारे में विस्तार से जिक्र किया और चिंता व्यक्त की और कहा कि कई ऐसे द्रश्यो को बार बार चैनलों में दिखाया जा रहा है . माननीय न्यायाधीशों द्वारा चिंता करते हुए कहा गया है यह मसला संवेदनशील है और सीधे जनसामान्य से जुड़ा है . इस पर सरकार द्वारा अभी तक कठोर अधिनियम न बनाये जाने पर भी चिंता व्यक्त की गई .

जनहित और समाज से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले पर माननीय न्यायाधीशों की चिंता सच और जायज और सराहनीय है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है . इस मामले मे माननीय न्यायाधीशों की चिंता देखकर लग रहा है कि न्याय ख़ुद देख रहा है और महसूस कर रहा कि वास्तव मे टी.वी.चैनलों द्वारा हिंसा और अश्लीलता जमकर समाज के सामने परोसी जा रही है जिसका दुष्परिणाम सीधे सीधे जनमानस पर पड़ रहा है . जल्दी ही सरकार को जनभावनाओ की मंशा के अनुरूप जनहित मे कठोर कानून बनाना चाहिए और समाज हित मे भारतीय संस्कृति के अनुरूप ऐसे चैनलों के प्रसारण मे रोक लगना चाहिए.

Nirantar........