घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
सुख शान्ति का संकल्प ले अखंड पावन दीप जलाये.
घर घर में उपजे देवीय गुण बने सभी आचार परायण
आधि व्याधि हर लेने वाली सबके मन में ज्योति जले.
घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
स्वार्थ नही परमार्थ संवारे , मानस के कल्मष धो डाले.
हर जगह हो नंदन सी हरियाली, नील गगन के तले
घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले.
जाने सब जप तप की गरिमा जाने प्रभु की महिमा
जिस बगिया से हम निकले बने उसी बगिया के माली.
मै एक नन्हा छोटा सा दिया
धरती की मिट्टी को
अनेको पैरो से रौंदकर
भट्टी में जलते अंगारों के बीच
मुझे खूब तपाकर
जन्मदाता ने मुझे जन्म दिया है.
मै एक नन्हा छोटा सा दिया
मै अपने संकल्पों का निर्वहन
भली भांति कर रहा हूँ
मुझे अपने दायित्वों का बोध है
जाति पाती का भेद नही है मुझमे
मै एक नन्हा छोटा सा दिया
अंधियारों और हवाओ से लड़कर
गरीबो की कुटिया से लेकर सभी को
उजाला देकर ही बुझता हूँ
सबको मै प्रकाश देता हूँ
मै एक नन्हा छोटा सा दिया,
यह रचना दीवाली के पावन अवसर पर आप सभी हिन्दी ब्लॉगर बहिनों और भाइओ को समर्पित कर रहा हूँ . दीपावली के पावन पर्व पर आप सभी को मेरी और से हार्दिक ढेरो शुभकामनाये . आप सभी का आगामी वर्ष उज्जवल हो आपका भविष्य मंगलमय हो और सुख सम्रद्धि वैभव से परिपूर्ण हो .
26.10.08
22.10.08
आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए.
देश में चल रहे जाति पति और भाषावाद और क्षेत्रवाद के आधार पर बड़ी दुखद स्थितियां चल रही है इन पर कुछ पंक्तियाँ लिखी जो आपकी नजर प्रस्तुत कर रहा हूँ.
जिंदगी में आदमी को प्यार की पहचान आना चाहिए
आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए
देश क्या परदेश क्या सारा संसार अपना हमारा यार हो
रहे चाहे न रहे कुछ भी हमारा बस बांटने को प्यार हो
दूर से बस प्यार मौहब्बत का एक पैगाम आना चाहिए
गर रहे हम या न रहे हमारे देश की आन रहना चाहिए
राम क्या रहीम क्या अजान हम सबकी उसकी जान है
जो प्रभु और आदमी में भेद समझे वह पागल नादान है
प्यार शान से इंसान को सबको सिखाना बढ़ाना चाहिए
रचना - महेंद्र मिश्रा,जबलपुर.
जिंदगी में आदमी को प्यार की पहचान आना चाहिए
आदमी को आदमियत के नाते सबके काम आना चाहिए
देश क्या परदेश क्या सारा संसार अपना हमारा यार हो
रहे चाहे न रहे कुछ भी हमारा बस बांटने को प्यार हो
दूर से बस प्यार मौहब्बत का एक पैगाम आना चाहिए
गर रहे हम या न रहे हमारे देश की आन रहना चाहिए
राम क्या रहीम क्या अजान हम सबकी उसकी जान है
जो प्रभु और आदमी में भेद समझे वह पागल नादान है
प्यार शान से इंसान को सबको सिखाना बढ़ाना चाहिए
रचना - महेंद्र मिश्रा,जबलपुर.
20.10.08
तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही.
मेरी जुबान से पूछ लो या चाँद से तुम पूछ लो
किस्सा अपना मेरा हर तरफ़ जहाँ से पूछ लो.
बिगड़ी हुई तदवीर से अपनी फ़िर तकदीर बना ले
एक दांव तू भी लगा ले गर अपनों पर भरोसा है.
तेरे जिस्म की खुशबू में मेरा हर लब्ज ढला है
तेरे जिस्म से हर रंग उजला निखरा निकला है.
मोहब्बत करने की उनको रियायत बहुत ही खूब थी
अहसास नही हुआ कि दिल उन्होंने मेरा चुराया था.
तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही
मेरे दिल में जो प्यार है इस सारे जहाँ में नही .
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किस्सा अपना मेरा हर तरफ़ जहाँ से पूछ लो.
बिगड़ी हुई तदवीर से अपनी फ़िर तकदीर बना ले
एक दांव तू भी लगा ले गर अपनों पर भरोसा है.
तेरे जिस्म की खुशबू में मेरा हर लब्ज ढला है
तेरे जिस्म से हर रंग उजला निखरा निकला है.
मोहब्बत करने की उनको रियायत बहुत ही खूब थी
अहसास नही हुआ कि दिल उन्होंने मेरा चुराया था.
तेरी सूरत में जो नशा है वह नशा जाम में नही
मेरे दिल में जो प्यार है इस सारे जहाँ में नही .
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