कभी बचपन में आज से चालीस पैतालीस साल पहले मै पाठ्य पुस्तकों में अंधेर नगरी और चौपट राजा के विषय में कभी खूब चटकारे ले लेकर पढ़ा करता था . अंधेर नगरी के बारे में पुस्तक में यह कहा गया था की अंधेर नगरी चौपट राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा . जो जिसकी मर्जी में आता था सो वह करता था वह राजा हो या प्रजा हो . कभी लोगो ने आजादी का सपना संजोया था और बड़ी मुश्किल से आजादी हासिल हुई . स्वतंत्र देश से लोगो ने कई तरह की अपेक्षा की उन्हें वह सब आजादी के साथ हासिल होगा जो उन्हें पराधीन देश में हासिल नहीं होता था .
समय के साथ देश ने कई क्षेत्रो में विकास किया है पर धीरे धीरे भ्रष्टाचार,रिश्वत खोरी, जमाखोरी की जड़े गहरी होती गई जो आज समाज के लिए नासूर साबित हो रहे है . इन कारणों के चलते दिनोदिन देश में मंहगाई बढ़ती गई जिसका सीधा असर गरीब जनता पर पड़ रहा है . खाने पीने की भोजन सामग्री दाल, चावल और गेहूं के रेट इतने अधिक बढ़ गए हैं की गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले जन के ये चींजे खरीदना मुश्किल होता जा रहा है . सरकार भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है . केंद्र और प्रादेशिक सरकारे एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर अपनी अपनी जबाबदारी से तल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है जिसका खामियाजा आम गरीब जनता को भुगतना पड़ने रहे हैं .
देश के केन्द्रीय मंत्री अब लगता है की वे मार्केट(बाजार) चलाने लगे है . मंत्री जी एक ज्योतिष की तरह पहले से यह घोषणा कर देते हैं की फंलाने चीज के रेट अब बाजार में बढ़ने वाले है . पहले दाल के रेट फिर शक्कर के रेट बढ़ने की घोषणा की . बाजार में इन चीजो के रेट सुनामी लहर की तरह बढ़ें . जनता त्राहि त्राहि कर उठी . फिर मंत्रीजी हाथ ऊपर उठाकार कह देते है की वे कुछ नहीं कर सकते हैं . कभी उत्पादन कम होने की दुहाई देते है तो कभी कुछ और सफाई दे देते हैं .
अब दूध के मूल्यों में बढ़ोतरी होने की बात पवार साहब कर रहे हैं जिसका सीधा यह अर्थ निकाला जा रहा है की दूध के मूल्यों में भी भारी वृद्धि होगी .. उनकी इस बात का अब दुग्ध माफिया नाजायज फायदा उठाएंगे और दूध के मूल्यों में धुँआधार वृद्धि करेंगे . दूध जो बच्चो के लालन पोषण के लिए मुख्य आहार हैं . वह भी छीनने की साजिशें की जा रही है . लोकतंत्र में गरीब जनता का कोई धनीधोरी नहीं है और बढ़ती मंहगाई के कारण आम जन का जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है .
सरकारे अपने अपने दायित्वों का सही निर्वहन नहीं कर रही . लगता है ये सब अंधेर नगरी चौपट राजा की तर्ज पर " अंधेर नगरी चौपट राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा" का खेल चल रहा है . जो जिसकी मर्जी वो वैसा कर रहा हैं . जिसका खामियाजा गरीब भोग रहा हैं . किसी भी मामले में चाहे वह मंहगाई का हो या अथवा और किसी तरह का जो जनता के हित से जुड़ा कोई मुद्दा रहा हो . निर्वाचित सरकार में बैठे इन निर्वाचित जनप्रतिनिधियो की जबाबदारी निश्चित की जाना चाहिए जो जनता के प्रति जबाबदेह नहीं है .
अंधेर नगरी में जबाबदारी निश्चित न रही होगी पर लोकतंत्र में सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियो की जनता के हित में जबाबदारी सुनिश्चित होना बहुत ही जरुरी हो गया है अन्यथा आगे आने वाले समय में इस देश का हाल अंधेर नगरी और चौपट राज्य की तरह होने में देर न लगेगी . कई दलों से मिल कर सरकार बनी . सरकार बचाने चलाने के चक्कर में वे एक दूसरे का विरोध भी खुलकर नहीं कर पाते है जैसा की आजकल इस देश में हो रहा है . पवार साब ज्योतिष बन गए है और वृद्ध मनमोहन सोनिया जी के सामने बांसुरी बजाने के अलावा कर ही क्या सकते हैं जनता जनादर्न के सुख दुःख के पक्ष....बस सरकार चले चाहे जनता मरे इन्हें क्या लेना देना अंधेर नगरी चौपट राजा की तरह .
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.
4 टिप्पणियां:
aapne blkul sahi likha hai.gareeb varg to rashan se fir bhi khreed leta hai aur jitne ghar me log hai sab kmate hai par mdhaym vrg ki halat to aisi hai ki dal khana chode ?sabji khana chode ya chay peena chode ?ak kmane vala char khane vale
"...अंधेर नगरी और चौपट राजा के विषय में कभी खूब चटकारे ले लेकर पढ़ा करता था "
राजा और नगरी होता कैसा था , अब देख भी लिया :)
.......नगरी चौपट राजा,
kya khoob kaha,shee.
अंधेर नगरी चौपट राजा"" भारत का आज यही हाल है,
एक टिप्पणी भेजें