13.9.08

बुन्देलखंडी भजन : द्विअर्थी शब्दों की भरमार से धार्मिक भावनाए आहत हो रही है ?

श्री गणेश उत्सव के पावन पर्व के साथ दशहरा,दिवाली आदि त्योहारों की झडी लग जाती है . चारो तरफ़ लाउड स्पीकर और बाक्सों से भजन कीर्तन का शोर सुनाई देता है . चारो तरफ़ तरह तरह के भजन सुनाई देते है . हर साल लाखो भजन बनाये जाते है . कोई राष्ट्रिय स्तर पर तो कोई प्रान्त स्तर पर लोकप्रियता हासिल कर लेता है . आजकल द्विअर्थी शब्दों से लबरेज भजन तैयार किए जाते है जो केवल युवा पीढी के लिए मनोरंजन बन कर रह जाते है इन गीतों,भजनों से हमारी धार्मिक भावनाए आहत होती है जैसे ....

कैसी कृपा करी गणराज पप्पू पास हो गया , तुम भंग छोड़ दो स्वामी नही तो मै मइके भाग जाऊ , ओ पप्पू के पापा ओ गणेश की मम्मी , अ र र मेरी जान है राधा इन दिनों शहर के गली कूचो में मुहल्लों में गूंज रहे है .

हर साल जबलपुर शहर में करीब ४० से अधिक एलबम लोकल विडियो लांच होते है जिनमे धार्मिक भावनाओ को आहत करने वाले शब्द फूहड़ नृत्य के काम आते है . लोकभाषा के दुरुपयोग से तैयार ये गीत.भजन भाषा भावः और भक्ति के परखच्चे उडाने में खरे उतरते है . इंसानी दिमाग में मनोरंजन चर्चित होने और व्यवसाय का भूत इसकदर हावी हो गया है कि वह अपने धार्मिक देवी देवताओं को भी भूल गया है जिसके जीते जागते प्रमाण उपरोक्त भजनों में देखे सुने जा सकते है . गणेश जी दुर्गा जी शंकर भगवान राधा-कृष्ण के नाम का उपयोग कर ये भजन गीत धार्मिक भावनाओ को लगातार आहत कर रहे है .

विद्वानों के अनुसार द्विअर्थी संवाद बुन्देली मलावी बधेली छत्तिसगढ़ी और निमाड़ी हर भाषाओ में होते है . लोकगीतों का कोई इतिहास नही है उनका किसने सृजन किया यह किसी को मालूम नही है . हर किसी को लोजगीतो और लोकभाषा का तकनीकी ज्ञान भी नही होता है पर ऐसे लोग फिजूल के शब्दों का प्रयोग कर भाषा को बरबाद कर बुन्देलखंडी भाषा के भजन का नाम देकर खूब कमाई कर रहे है .

एक साहित्यकार ने कहा शब्दों के पर्यायवाची समानार्थी और दो अर्थ होते है. जिनमे एक शब्द शुभ अर्थ वाला और दूसरा शब्द अशुभ अर्थ वाला होता है .जिनका सामाजिक महत्त्व श्लील दूसरा अश्लील होता है . बुन्देली मधुर और अच्छी भाषा है अब कलाकार या रचनाकार अशुभ शब्दों का प्रयोग करने से नही चूक रहे है जिससे लोकमंगल होने की बजाय लोक अहित होने की अधिक संभावना है ..

सुबह सुबह जब ऐसे वाहियात गाने सुनने मिलते है हर ऊंटपटांग शब्द और उल्टी सीधी तुकबंदी के साथ भगवान को जोड़कर लोग धर्म के साथ खिलवाड़ कर रहे है और लोगो की धार्मिक भावनाए आहत हो रही है . ऐसे भजन गाने बंद तो नही हो रहे है निरंतर बढ़ रहे है बस अब जरुरत है कि ऐसे गाने भजनों के मार्केट में आने के पहले कटिंग छटिंग करने के एक संस्था का गठन किया जाना चाहिए और इन गीतों भजनों की सेंसरशिप की जाना बेहद जरुरी हो गया है . ऐसे गीत भजन युवा वर्ग के संस्कारो पर विपरीत असर डाल रहे है .

जय श्री गणेश बब्बा की .

12.9.08

यारो हसरते बुलंद जीवन जीने का हौसला देती है-

तेरी चाहत के सिवा अब कोई मुझे चाहत नही
हमें तेरी मोहब्बत के आगे फ़िर कोई आरजू नही.

तुझे पाने के सारे रास्ते बंद हो गए है अपने आप
अब कोई रास्ता बचा नही है सिवाय इबादत के.

अगर दिल मिले या न मिले तड़फ रहना चाहिए
कुछ महक इस दिल की वीराने में रहना चाहिए.

जिंदगी का सफर अब सजाया संवारा जाए यारो
किसी हमसफ़र साथी को दिल से याद किया जाए.

इंतजार के बाद कभी तुम्हारा कोई पैगाम आया
यूँ मुझे लगा मानो कोई खुशियो का सैलाब आया

जब उस चमन से तुम्हारी जुल्फे लहराती निकली
मानो कोई काली घटा बल खाके निकल गई ...

यारो हसरते बुलंद जीवन जीने का हौसला देती है
यारब यदि जुदा हो जाए तो कसक रहना चाहिए.

11.9.08

माँ नर्मदा प्रसंग : संत शिरोमणि गौरीशंकर जी महाराज

संत शिरोमणि गौरीशंकर जी महाराज धूनीवाले बाबा के गुरु थे . अभी तक माँ नर्मदा के जितने भी भक्त हुए है . गौरीशंकर जी महाराज का नाम आदर से लिया जाता है . आप श्री कमल भारती के शिष्य थे जिन्होंने माँ नर्मदा की तीन बार परिक्रमा की थी . अपने गुरु के ब्रम्हलीन होने के पश्चात अपने गुरु के पदचिह्नों पर चलना अपना कर्तव्य समझकर एक बड़ी जमात इकठ्ठा कर माँ नर्मदा की परिक्रमा करने निकल पड़े . भण्डार बनाते समय यदि भंडारी यदि कह दे कि घी की कमी है तो आप तुंरत कह देते कि श्रीमान जी घी माँ नर्मदा से उधार मांग लो और एक बड़े पात्र में नर्मदा जल भरकर लाते और जैसे ही कडाही में डालते वह घी हो जाता था . जब कोई भक्त यदि घी अर्पण करने आता तो स्वामी जी आज्ञा से घी माँ नर्मदा की धार में डलवा दिया जाता था . स्वामी जी माँ नर्मदा पर अत्याधिक विश्वास करते थे और माँ नर्मदा के जल में प्रवेश नही करते थे और दूर से ही जल मंगवाकर स्नान कर लेते थे.

कहा जाता है कि एक बार आपकी जमात होशंगाबाद में भजन कीर्तन कर रही थी तो इस जमात की गतिविधियो को एक अंग्रेज कमिश्नर देख रहा था और उसके मन में संदेह हो गया की आखिर स्वामी जी इतनी बड़ी जमात को चलाते कैसे है और एक समूह को खाना कैसे खिलाते है . वह तुंरत स्वामी जी के पास पहुँचा और पुछा की इतनी बड़ी जमात को चलाने के लिए खर्च कहाँ से लाते हो तो स्वामी जी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि सब माँ नर्मदा जी देती है और उनकी कृपा से हम सभी खाते पीते है . कमिश्नर ने कहा कि ठीक है मै सुबह आकर आपकी परीक्षा लूँगा और देखता हूँ ऐसा कहकर वह चला गया . सुबह वह अधिकारी स्वामी जी को बंधाधान ले गया और तट पर खड़ा होकर स्वामी जी से कहा कि आप अपनी माँ नर्मदा से ग्यारह सौ रुपयों की मांग करे हम देखना चाहते है कि तुम कहाँ तक सत्य कह रहे हो .

स्वामी जी ने माँ नर्मदा को प्रणाम किया और हाथ जोड़कर बोले कि मैंने कभी आपके जल में प्रवेश नही किया है और इन सब के कहने पर आपके जल में प्रवेश कर रहा हूँ और छपाक से माँ नर्मदा के अथाह जल में छलांग लगा दी और जल में डुबकी लगाई और सैकडो लोगो की उपस्थिति में हाथ में ग्यारह सौ रुपयों की थैली लेकर बाहर आये तो उन्होंने साहब को वह थैली थमा दी और कहा गिन लीजिये . सभी की उपस्थिति में उन रुपयों को गिना गया और ग्यारह सौ रुपये पूरे पूरे निकले तो वह अधिकारी काफी शर्मिंदा हुआ और उसने क्षमा याचना की और उसने भविष्य में किसी नर्मदा भक्त को परेशान न करने की शपथ ली और उसने खुश होकर स्वामी जी को सम्मानित किया और अनेको प्रमाण पत्र भी दिए .

एक बार ब्रम्ह मूहर्त में स्वामी जी स्नान करने जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें कांटा लग गया वे दर्द से व्याकुल हो गए और वही बैठ गए . स्वामी जी आश्रम नही पहुंचे तो उनके शिष्य उन्हें खोजते खोजते नर्मदा तट की और गये . रास्ते में उन्हें स्वामी बैठे दिखे . शिष्यों ने स्वामी जी से कांटा निकालने को कहा पर स्वामी जी ने उन्हें मना कर दिया और कहा माँ नर्मदा ही यह कांटा निकालेंगी और उन्होंने अपने शिष्यों को आश्रम लौट जाने का आदेश दिया और वे रास्ते में उसी जगह बैठे रहे.

अपने भक्त का कष्ट माँ नर्मदा जी से देखा नही गया और वे रात्रि १२ बजे मगर पर सवार होकर वहां पहुँची और अपने भक्त गौरीशंकर से कहा कि बेटा मै तुम्हारा कांटा निकालने आ गई हूँ और उन्होंने स्वामी जी के पैर में लगा कांटा निकाल दिया और उन्हें पहले की भांति स्वस्थ कर दिया . स्वामी जी ने माँ नर्मदा से जल समाधी लेने की अनुमति मांगी तो माँ नर्मदा ने उन्हें खोकसर ग्राम में समाधी लेने की आज्ञा प्रदान की और अंतरध्यान हो गई . सुबह सुबह स्वामी जी ने इस सम्बन्ध में अपने भक्तो और शिष्यों को जानकारी दी और समाधी लेने की इच्छा व्यक्त की . एक गहरा गडडा खुदवाया गया और आठ दिनों तक भजन कीर्तन होते रहे और नौबे दिन स्वामी जी अखंड समाधी ले ली जहाँ स्वामी जी ने समाधी ली है वहां माँ नर्मदा का पवित्र मन्दिर बना है .