31.10.08

जातक कथाये : कपटी सियार

बोधिसत्व ने एक चूहे के रूप में जन्म लिया वे बड़े बुद्धिमान थे और हजारो चूहों के साथ जंगल में रहते थे . वे इतने बड़े थे कि छोटे सुआर के जैसे लगते थे . जंगल में एक धूर्त सियार रहता था वह बड़ा ही धूर्त था और उसकी निगाहे सदैव जंगल के चूहों पर रहती थी . वह इन चूहों को कई दिनों से खाने की योजना बना रहा था और अंत में एक योजना उसने सोची और वह चूहों की बस्ती के पास गया और सूर्य की ओर मुँह करके एक टांग के बल खड़ा हो गया.

एक समय बोधिसत्व भोजन की तलाश में निकले ओर उन्होंने इस सियार को सूर्य की ओर मुँह किए इस सियार को देखा जोकि एक टांग के बल खड़ा था. बोधिसत्व ने सोचा वह शायद एक संत है जो एक टांग के बल खड़ा होकर ध्यानमग्न है .बोधिसत्व उसके पास ओर नमस्कार कर उससे उसका नाम पूछा.

सियार ने उत्तर दिया - मेरा नाम भगत है

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - तुम एक टांग के बल क्यो खड़े हो ?

सियार ने कहा - यदि मै चारो टांगो के बल पर खड़ा हो जाऊँगा तो प्रथ्वी मेरा भार सहन नही कर पाएगी.

चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा - किंतु तुमने अपना मुँह क्यो खुला रखा है ?

सियार ने कहा - मै सिर्फ़ हवा खाता हूँ हवा में साँस लेने के लिए ओर हवा ही मेरा भोजन है.

चूहे बोधिसत्व ने प्रश्न किया - तुम सूर्य की ओर मुँह करके क्यो खड़े हो ?

सियार - मै इस तरह से सूर्य की आराधना करता हूँ.

बोधिसत्व सियार की बाते सुनकर बड़े प्रभावित हुए.

अब क्या था सुबह शाम चूहे सियार को प्रणाम करने आने लगे . सियार भी बड़ा खुश था क्योकि उसे ऐसा अभाष हो रहा था की अब उसकी योजना सफल होने लगी है . चूहे लाइन लगाकर सियार को प्रणाम करते थे और चूहे जब में वापिस जाने लगते थे तो लाइन के अन्तिम चूहे को सियार पकड़ कर खा जाता था और इस तरह से किसी को पता भी नही चलता था कि लाइन के आखिरी चूहे को पकड़कर खा गया है . धीरे धीरे चूओ की संख्या कम होती गई और चूहे जाति का मुखिया भी बेहद परेशान था कि आखिर क्या बात है कि उसके समाज के चूहों कि संख्या में लगातार कमी आ रही है .

उसने बोधिसत्व से इस बात की चर्चा की. उन्हें सियार पर शक हुआ कही यह सियार की घपलेबाजी तो नही है . एक दिन बोधिसत्व ने सियार की परीक्षा लेने की सोची . बोधिसत्व ने अगले दिन सारे चूहों को आगे जाने दिया और अंत में बोधिसत्व गए . हमेशा की तरह सियार ने लाइन के आखिरी चूहे बोधिसत्व को दबोचने की कोशिश की

पर बोधिसत्व बहुत तेज गति से निकल गए और जाते जाते पलटकर सियार की ओर मुड़े ओर कहा - धूर्त सियार तुम साधू के रूप में मक्कार हो . तुमने संत बनने का नाटक किया तुम ढोंगी पाखंडी ओर बहुत बड़े धूर्त हो . सब चूहे यह सब सुन रहे थे तो असल सच उनके सामने आ गया ओर वे क्रोधित हो गए ओर समूह में एकत्रित होकर धूर्त सियार पर हमला कर दिया ओर उसे जंगल से खदेड़ दिया . धूर्त सियार अपने प्राण बचाकार जंगल से भाग गया .

रिमार्क - हमें ऐसे ढोंगी पाखंडी ओर धूर्त साधुओ से बचना चाहिए ओर इनका बहिष्कार करना चाहिए . हमारे देश में ऐसे ढोंगी पाखंडी साधुओ की कमी नही है जो देश की भोली भली जनता को अपने मायाजाल में फंसाकर लूट लेते है . आए दिन अखबारों में मीडिया चैनलों में ऐसे ढोंगी साधुओ के खुलासे होते रहते है जो बलात्कार करने से लेकर धन संपत्ति तक लूट लेते है.

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28.10.08

दिवाली के अवसर पर हँस ले : दिवाली पर फुलझडी और बम

एक मछियारे ने अपने साथी मछियारे से कहा - भाई मैंने इतनी बड़ी मछली पकडी की वह नाव में नही समां रही थी और उसे तौलने के लिए कोई तराजू भी नही मिल रही थी तो मैंने उस मछली की फोटो ले ली और फ़िर रुक मुस्कुराया और रुक कर बोला तुम्हे मालूम हो कि उस मछली कि फोटो का वजन ११ किलो था तो उस मछली का वजन कितना रहा होगा.

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एक सेठ ने एक पंडित जी को दिवाली के दिन अपने घर निमंत्रण पर बुलाया और उन्होंने पेट भरकर खाया और अपनी तौंद पर हाथ फेरकर एक लम्बी डकार ली और कहा बस भर गई है . उसके बाद पंडित जी के सामने दो मलाई कि दो प्लेट राखी गई और पंडित ने वे प्लेट भी साफ़ कर दी . सेठ का लड़का पास में खड़ा था बोला पंडित जी आपकी बस भर गई फ़िर भी अपने दो प्लेट मलाई भी खा ली .
लडके से पंडित जी बोले- बेटा बस तो भर गई थी परन्तु कंडेक्टर की सीट खाली थी.

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अरे भाई दिवाली के दिन तुम चम्मच धोने क्यो बैठ गए हो ?
अगले ने उत्तर दिया - धोने दे यार वरना जेब ख़राब हो जावेगी.

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दिवाली के दिन एक पहलवान एक जूते की दूकान पर जूते लेने गया . दुकानदार ने उसे कई जूते दिखाए पर पहलवान को कोई जूता फिट नही हो रहा था .
आखिर में पहलवान ने एक में पैर डालते हुए कहा भाई इसे पैक कर दो यह ठीक रहेगा .
दूकानदार बोला - हुजूर माफ़ कीजिए यह जूता नही है यह जूते का डिब्बा है.

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प्रोफेसर - क्या तुम मुझे सोलहवी शताब्दी के वैज्ञानिको के बारे में कुछ बता सकते हो ?
छात्र - सर वे सब मर गए है.

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कबाडी बाजार में एक आदमी एक कबाडी से पुरानी पुस्तके खरीद रहा था . ग्राहक को दूकान में एक पुरानी किताब दिखी जिसका नाम था " करोड़पति कैसे बने" पर उस पुस्तक में आधे पन्ने थे .
ग्राहक दूकानदार से बोला - भाई दुकानदार जी इस किताब में आधे पन्ने गायब है.
दूकानदार ने कहा - आधे पन्नो में भी तो आधा करोड़पति बना जा सकता है.

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दिवाली के दिन एक दूकान पर एक ग्राहक संतरे खरीदने गया .
ग्राहक को देखकर दूकानदार तपाक से ग्राहक से बोला - सब पिछले सप्ताह जो आप संतरे ले गए थे वो कैसे रहे ?
ग्राहक - संतरे बड़े ताजे रहे.
दूकानदार ने फौरन कुछ संतरे ग्राहक की और बढ़ते हुए कहा साब इन्हे ले जाओ पिछले हफ्ते के उन्ही में से बचे है.

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दिवाली धमाका
एक आदमी थाने पहुँचा और थानेदार से बोला आप मेरे घर की चाबी रख लीजिये .
थानेदार सकपका गया और बोला क्यो ? वह आदमी बोला आज दिवाली के अवसर पर एक ड्रिंक पार्टी है और जाहिर है कि मै पार्टी में छककर व्हिस्की और वोदका पिऊंगा और ऐसी हालत में मेरी चंबियाँ गिर सकती है और मै यह सोच रहा हूँ कि नशे में धुत सड़क से मुझे पकड़कर कोई पुलिसवाला थाने लायेगा तो मै आपसे घर की चाबी ले लूँगा.

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मालकिन नौकर से तुमने फ्रिज साफ़ कर दिया .
नौकर बोला - हाँ मालकिन
मैंने फ्रिज अच्छी तरह से पूरी तरह से साफ़ कर दिया है हर चीज स्वादिष्ट और लाजबाब थी.

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खानसामा रोने लगा कि हाय साहब का कुत्ता मर गया बड़ा प्यारा था दुलारा था हर काम अच्छी तरह से कर देता था.
साहब - लगता है तुम्हे मेरे कुत्ते से बड़ा लगाव और प्यार था .
खानसामा - हुजूर पूछिए मत वह बड़े प्यार से जूठी प्लेट अपनी जीभ से साफ कर देता था . हुजूर मै प्लेट धोने धुलने धुलाने के चक्कर से बच जाता था हाय अल्लाह अब प्लेट कौन साफ़ करेगा और यह कहकर बेहोश हो गया.

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शिक्षक छात्र - इसे दो प्राणियो के नाम
बताओ जिनके दाँत नही होते है ?
छात्र - हाथ उठाकर कहा सर दादा और दादी.

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26.10.08

दीवाली की शुभकामना के साथ रचना - घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले और मै एक नन्हा छोटा सा दिया.

घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
सुख शान्ति का संकल्प ले अखंड पावन दीप जलाये.

घर घर में उपजे देवीय गुण बने सभी आचार परायण
आधि व्याधि हर लेने वाली सबके मन में ज्योति जले.




घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले
स्वार्थ नही परमार्थ संवारे , मानस के कल्मष धो डाले.

हर जगह हो नंदन सी हरियाली, नील गगन के तले
घर घर में सुख शान्ति देने वाली प्रकाश ज्योति जले.

जाने सब जप तप की गरिमा जाने प्रभु की महिमा
जिस बगिया से हम निकले बने उसी बगिया के माली.

मै एक नन्हा छोटा सा दिया




धरती की मिट्टी को
अनेको पैरो से रौंदकर
भट्टी में जलते अंगारों के बीच
मुझे खूब तपाकर
जन्मदाता ने मुझे जन्म दिया है.
मै एक नन्हा छोटा सा दिया

मै अपने संकल्पों का निर्वहन
भली भांति कर रहा हूँ
मुझे अपने दायित्वों का बोध है
जाति पाती का भेद नही है मुझमे
मै एक नन्हा छोटा सा दिया

अंधियारों और हवाओ से लड़कर
गरीबो की कुटिया से लेकर सभी को
उजाला देकर ही बुझता हूँ
सबको मै प्रकाश देता हूँ
मै एक नन्हा छोटा सा दिया,

यह रचना दीवाली के पावन अवसर पर आप सभी हिन्दी ब्लॉगर बहिनों और भाइओ को समर्पित कर रहा हूँ . दीपावली के पावन पर्व पर आप सभी को मेरी और से हार्दिक ढेरो शुभकामनाये . आप सभी का आगामी वर्ष उज्जवल हो आपका भविष्य मंगलमय हो और सुख सम्रद्धि वैभव से परिपूर्ण हो .