15.11.08

*कुछ मस्ती भरे चुटकुले*

एक जेबकट ने एक आदमी की जेब में हाथ डाला और पकड़ा गया
पकड़ने वाले ने जेबकट से कहा - तुम्हे शर्म नही आती है ?
जेबकट - शर्म तो तुम्हे आना चाहिए अपनी जेब में एक रूपया तक नही रखते हो.
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अध्यापक - बच्चो क्या जानते हो भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह कौन सा है ?
छात्र - जी सर, हमारे घर के पीछे है वहां ढेर बन्दर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते देखे जा सकते है.
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एक गंवार आदमी पहली बार शहर में सिनेमा देखने गया . पिक्चर शुरू होने के पहले सिनेमा हाँल की सारी बत्तियां बुझा दी गई . यह देखकर वह गंवार आदमी चकित रह गया और वह दौडा दौडा सीधे सिनेमा के मैनेजर के पास गया और मैनेजर से वह बोला - क्या हम उल्लू गंवार है जो हम अंधेरे में सिनेमा देखेंगे.
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एक दोस्त दूसरे दोस्त से - क्यो भाई तुम्हारे यहाँ एक नौकरानी है वह तुम्हारे कपडे धोती थी आज क्या बात है यार तुम कपडे धो रहे हो ?
दूसरे दोस्त ने जबाब दिया - यार मैंने उससे शादी कर ली है .
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पहली लड़की - मैंने उससे अपनी सगाई तोड़ दी है मै उससे नफ़रत करती हूँ और मै उससे प्यार नही करती हूँ .
दूसरी लड़की - पर तुमने सगाई की अंगूठी अभी तक पहिन रखी है ऐसा क्यो ?
पहली लड़की - ओह मै इस अंगूठी को अब भी प्यार करती हूँ .
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भिखारी - असल में मै एक राईटर हूँ मैंने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है " पैसे कमाने के ह़जार तरीके "
राहगीर - फ़िर तुम भीख क्यो मांग रहे हो ?
भिखारी - यह भी उनमे से एक तरीका है .
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11.11.08

पंचतंत्र की कहानी : कामचोर

पंकजवन में टीपू नाम का एक बन्दर था जो जानवरों में सबसे चालाक था. एक दिन रीतू जंबो हाथी और बिन्दु भालू एक साथ बैठे थे वे सभी परेशान थे . उनकी परेशानी यह थी कि जब दूरदराज से उनके नाम की कोई चिट्ठी आती थी तो उसे लाने में लम्बू जिराफ लाने में काफी समय लगाता था . वगैर पैसे दिए कोई भी चिट्ठी उन्हें नही मिलती थी.

एक दिन सबने बैठकर एकमत से सहमत होकर यह निश्चय किया कि पंकजवन का डाकिया टीपू बन्दर को बनाया जाए क्योकि वह चुस्त और चालाक भी है . उसी दिन से टीपू बन्दर को पंकजवन का डाकिया बना दिया गया . टीपू बन्दर समय पर सभी को डाक लाकर दे देता था . टीपू बन्दर ने देखा कि उसे सभी चाहते है तो उसने पैसो की जगह हर एक से केला लेना शुरू कर दिया . धीरे धीरे टीपू बन्दर कामचोर होता गया और उसकी कामचोरी बढती गई . फ़िर धीरे धीरे उसने सभी से पैसे लेना शुरू कर दिया.

जब सभी ने देखा की टीपू बन्दर कामचोर हो गया है और सभी से पैसे लेने लगा है और सबने बैठकर पंकजवन में एक बैठक आयोजित की और सर्वसम्मति से निर्णय पारित किया कि अब टीपू बन्दर को हटा दिया जाए और बिन्दु भालू को डाकिया बना दिया


परन्तु इसी बीच जम्बो हाथी बीचमे कूंद पड़ा और बोला अब इस जंगल में कोई डाकिया नही बनेगा . तो सभी जानवरों ने उससे कहा कि नया डाकिया नही बनेगा तो हम लोगो को चिट्ठी कैसे मिलेगी . जंबो हाथी ने कहा - अब शहर में अपने नाते रिश्तेदारों दोस्तों भाई बहिनों और माता पिता को यह संदेश भिजवा दो कि वे अब चिट्ठी न लिखे तो आप सभी आगे देखेंगे कि टीपू बन्दर घर में बैठा रहेगा.

बिन्दु भालू ने कहा भैय्या जम्बो आपका आइडिया बहुत अच्छा है मगर अगर शहर में किसी को कुछ हो गया तो ख़बर कैसे पता लगेगी . सभी जानवर एक साथ बोले हाँ हाँ बताओ कैसे पता चलेगा ?

जंबो हाथी ने कहा - सब शांत होकर मेरी बात सुनो हम सब मिलकर एक साथ पंकज वन में एक बूथ खोलेंगे और जब नंबर लगायेंगे तो बात हो जाया करेग . सभी जानवर अपने अपने घरो में टेलीफोन लगा ले जिससे उन्हें कभी डाकिये के भरोसे रहना नही पड़ेगा यह सुनकर सभी जानवर बहुत खुश हो गए . . यह सब बातें टीपू बन्दर सुन रहा था उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने बहुत पश्चाताप किया और उसने सभी जानवरों से माफ़ी मांगी.

रिमार्क - उपरोक्त कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपना काम ईमानदारी से संपादित करना चाहिए और कामचोर नही बनना चाहिए . ईमानदारी सबसे अच्छी नीति मानी गई है और इसका उल्लेख सभी धर्मग्रंथो और कहानियो में मिलता है . .नीति शिक्षा में ईमानदारी पर हमेशा जोर दिया जाता है और ईमानदारी के सन्दर्भ में तरह तरह के पाठ लोगो को पढाये जाते है पर इसके बावजूद लोग गलती कर बैठते है ऐसा क्यो ?

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8.11.08

व्यंग्य : हमरे ब्लॉगर भैय्या चुनाव के पहले चित्त हो गए ....

हमरे एक दोस्त है . भैय्या बात इ है कै वे कछु दिनन से ब्लॉग लिखन लगे है और बेवा जगत में बड़ा नाम कमाईलियन है . मै उनका तनिक भी इस पत्रा में नाम न लिख्वे करू . कायके कहूं भैय्या खो पता चलवे करे तो तो समझो अपनी खैर नही.

मै उनको काल्पनिक नाम रामरतन हिन्दी ब्लॉगर इ पात्र में लिख देत हो . अपने रामरतन हिन्दी बिलागरवा है कछुक दिनों में उन्होंने बड़ा नाम कमा लिया है . जर्मनी कनाडा अमेरिका सिंगापुर और भारत के सभी नामी गिरामी शहरों के ब्लॉगर उनकी बेवा साइड में टीप देने वो का बोलत है कमेंस देने आत है सो अपने रामरतन ब्लागरवा को भारी घमंड हो गया है रात दिनन कम्पूटरवा में अपनी अंगुलियाँ ठोकत रहत है और अपनी आंखे फोडत रहत है.

सरकारी कर्मचारी है सो ब्लॉग से कमाई भी नही कर सकत है और विज्ञापन की पर्ची भी नही चिपका सकत है . कही कमाई का किसी को पता चल गया सो सर मुढाये बिना ओले पड़ने का खतरा अधिक है . पर अपने भैय्या है बड़े लालची हमेशा पैसो की जुगत करत रहत है.

अब हमरे प्रदेशवा में चुनाव का माहौल चल रहा है . उम्मीदवारों ने फॉर्म जमा कर दिए है और अपनी सम्पति का ब्यौरा भी चुनाव आयोग को दे दिए है . जो नाक पोछत थे जो साईकिल की टूटी सीट पर बैठकर सवारी किया करते थे आज वे करोड़पति है उनको चुनाव लड़ने की झंडी मिल गई है वे मैदाने ज़ंग में उतरने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने में लगे है और रुपया पैसा पानी की तरह बहा रहे है क्योकि उन्हें मालूम है कि जीतने के बाद एक करोड़पति से दशानन करोड़पति बन जावेंगे.

खैर छोडिये अब अपना अपने असल मुद्दे पे वापिस चल पडत है . हाँ ब्लॉगर भइया रामरतन को किसी ने सलाह दे डाली कि भैय्या जुगत बैठा लो और इस चुनाव में वेव साइड में किसी नेता का प्रचार कर डारो और कमाई कर डारो मौका है भइया . अपने रामरतन भैय्याँ जी जुगत भिड़ने में जुट गए ..

एक दिन अपने क्षेत्र के अंगूठा छाप पूर्व विधायक भौतई पैसन वाले है को ख़बर मिली कि अपने रामरतन हिन्दी ब्लॉगर है विश्व में उनकी चार चार वेवसाइड को लोग चाव लेकर पढ़त है देश विदेश के लोग टीप देने उनके ब्लागरवा में आत है क्यो न अपन अपना चुनाव प्रचार वेवसाइड में करा दे देश विदेश में प्रचार होगा नाम होगा दूर से वोट मिल जावेगी . सो झट से अपने रामरतन ब्लागरवा के पास अपनी लकदक कार लेकर पहुँच गए.

अपने भैय्याँ जी को प्रचार करने को कहा और ढेर सा पैसा देने कि बात भी कही . अपने भैय्याँ जी टेस में आ गएँ झट से उनई के सामने अपने ब्लागवा में उनका प्रचार लिखने लगे.

इसी बीच का भओ कि वहां अपुन पहुँच गए और अपुन ने जुगत से सारी बातें सुनी और अपनी ताजी ताजी खोपडी से समझी और फ़िर एक कोने में उ नेता को ले गया और उसे समझाया -

भइया तुम लगे हो चुनाव विधानसभा का है तो तुम अपनों प्रचार पूरे विश्व में कराना चाहते हो का तुम्हे सारी दुनिया के लोग वोट देवे आहे . जा बताओ तुम्हे वोट विधान सभा क्षेत्र से मिलने है कै सारी दुनिया से . तुम्ह के नाहक पैसा खर्चा करत हो और समय ख़राब करत हो . नेताजी ने अपनी खोपडी खुजाई फ़िर उसके बाद बात उनके समझ में कुछ आई और और तुंरत अपनी लकदक कार से वहां से फ़ुट लिए .

यह देखकर हमरे बड्डे को खूब गुस्सा आई और उन्होंने मुझे खूब लाल पीली ankhe दिखाई और दहाड़ कर बोले यार तुमने मेरी होने वाली कमाई पर पानी फेर दिया यार मेरा मुंडा ख़राब हो गया है तुम यहाँ से फ़ुट जाओ .

फ़िर का है कि अपुन भी ठहरे ब्लॉगर भैय्या सो अपुन ने भी छूट गोली चलाई और भैय्याँ से कहाँ शुक्र करो -

रामरतन मेरे आने के कारण तुम बच गए वरना चुनाव में नेताजी का प्रचार करने के आरोप में तुम्हारी सरकारी नौकरी चली जाती फ़िर उसके बाद तुम रोड पर पचास रुपये रोज पर राजनीतिक दलों का झंडा लेकर घूमते नजर आते .

यह सुनकर अपने रामरतन भैय्याँ ने सर झुका लिया . इसके बाद मै भी यह कहते हुए वापिस लौट गया "कि वेवकूफो की दुनिया में कमी नही है" . सुना है कि तब से अपने ब्लागर भैय्याँ घर में बीमार पड़े है और मुझे जरुर कोस रहे होंगे.

आखिर आप सभी बताईं कि इसमे हमरी का गलती है मैंने तो उसकी सरकारी नौकरी बचाई और नेताजी के वेवाजगत में प्रचार में नाहक खर्च होने वाले रूपये पैशैन बचाओ . पैसा की लालच में चुन्नव होने के पहले अपने ब्लागरवा भैय्या रामरतन पहले से चित्त हो गए है अब आप ही बताइन कि इस्मा हमरी का गलती है.

व्यंग्य - महेंद्र मिश्रा रचनाकार.