14.4.09

व्यंग्य कविता - आधुनिक नेता और जनता जनार्दन


आजकल राजनीति एक रैलगाडी बन गई है
जिसका आने- जाने का टाइम टेबल तो है

टाइम टेबल तो.. सिर्फ दिखावे के लिए है
हक़ीकत मे.. रेलगाड़ी घंटो लेट आ रही है

इसी तरह.... राजनीति मे रोज़ राजनेता
जनता जनार्दन को.......मूर्ख बनाते है

नित .नए - नए सब्ज़ बाग़ दिखा रहे है
गर चुनाव मे जीत गए... समझा रहे है

तो ये करवा देंगे तो..... वो करवा देंगे
तो ये दिलवा देंगे तो.... वो दिलवा देंगे

चुनाव जीतने के बाद ...राजनेता फिर से
राजनीति की..गाड़ी के ड्राईवर बन जाते है

देश मे यहा वहां नाचते गाते मौज मनाते है
अगले चुनावो तक क्षेत्र से..ग़ायब रहते है

चुनाव आते ही नकली मुखैटा चेहरे पर लगाकर
जनता को चराने धोखा देने हाज़िर हो जाते है.

लेखक- एक अनाम लेखक (नाम नहीं मालूम)

12.4.09

व्यंग्य - गरम हथौडे पर नेता और पत्रकार जी


एक नेताजी अभी हाल मे ही लोकसभा का चुनाव हार गये थे पर फिर भी चेहरे क़ी मुस्कान मे कोई भी कमी नही आई थी . उस पराजित हारे हुए नेता के चेहरे पे हरदम मुस्कान टपकती ही रहती थी . नेताजी घर से बाहर निकले ही थे कि रास्ते मे वे एक पत्रकार से टकरा गये . भाई पत्रकार तो पत्रकार फिर उपर से था पक्का मुँह फट....देखते ही देखते वह फौरन दौड़कर नेताजी का इंटरव्यू लेने पहुँच गया.

पत्रकार- नेताजी आप चुनाव हार चुके है फिर भी आप सरकारी बंगला ख़ाली नही कर रहे है और निगम के अध्यक्ष का पद भी नही छोड़ रहे है भाई नैतिकता का ख़्याल रखो ? आप ग़ैर क़ानूनी रूप से सरकारी बंगला पर अवैध क़ब्ज़ा कर रहे है ?

नेताजी पान थूकते हुए बोले - देखो भाई ये वैध और अवैध क्या है मुझे नही मालूम और हम इनके पचडे मे नही पड़ते है और जब भी मेरी आलोचना हुई है तो भाई जनता ने भारी वोट देकर बहुमत से मुझे चुना है और सदन में मुझे भेजा है. मैंने हमेशा कहा है कि मेरा फ़ैसला जनता की अदालत करेगी और जबाब देने वाला मै कौन होता हूँ बेहतर होगा इसका उत्तर आप जनता से ही मांगे तो बेहतर होगा जी. आज आप पद छोड़ने कह रहे है और बांग्ला ख़ाली करने कह रहे है कल आप लोग मुझसे क्षेत्र छोड़ने को कह सकते है.

पत्रकार- अब आप भूतपूर्व हो चुके है ?

नेताजी- मै स्वयं को भूतपूर्व नही बल्कि अभूतपूर्व मानता हूँ मै एक बार हार गया हूँ तो क्या हुआ फिर से चुनकर आ जाएगे तब मुझे ऐसा सुख सुविधाओ वाला बंगला फिर से कहाँ से मिलेगा . जो चीज़ मिल गई है तो उसे मै ज़िंदगी भर नही छोड़ता हूँ फिर भाई जी ज़िंदगी भर सत्ता की दलाली करने और रहने के लिए दिल्ली मे भी तो कोई जगह होना चाहिए कि नहीं. अब तुम खुदई विचार करो जी और सोचो.

पत्रकार- आप क्या कह रहे है कुछ चिंतन करिए कि आप क्या सही है ?

नेता- भाई जी मेरा चिंतन व्यापक है. जनसेवा के प्रति समर्पित नेता का चिंतन समाज हितैषी दार्शनिक प्रवृती का हो जाता है उसका व्यक्तित्व और कृतित्व व्यापक हो जाता है कि ये बंगला,सरकारी कारे उसके लिए कुछ भी नही न के बराबर हो जाता है और फिर नेता आदमी जनसेवा का हिसाब रखेगा क़ि नही क़ि इन सरकारी बंगले का हिसाब रखेगा क्या जनसेवा इसीलिए क़ी जाती है.

पत्रकार ने नेता जी क़ी सुनकर अपना सिर फोड़ लिया..और वहां से भाग खडा हुआ.

sabhaar- aanaam rachanakaar.

11.4.09

मुस्कुरा कर इस दिल पे वे जख्म देते है

वफ़ा की खुशबू हर रह गुजर से आती है
वफ़ा की खुशबू यारा कजां से भी आती है.

हम साथी संगदिल..मुझे बेवफा कहते है
वफ़ा की खुशबू उनके लबों से आती है.

उनके प्यार में रुसवा होता जा रहा हूँ
मै अश्को से वफ़ा के दाग मिटा रहा हूँ.

अफसाना उनके प्यार का दिल से देखो
उनका सटीक निशाना इस दिल पे देखो.

मुस्कुरा कर इस दिल पे वे जख्म देते है
दिल के करीब आने का ये बहाना देखो.

दिल टूटता है तो आहट भी नहीं होती है
रिश्ता जान का दिल से दूर हो जाता है.

अपना जो राहे वफ़ा में हमसफ़र होता है
अक्सर वही करीब होकर दूर हो जाता है.
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