चार शराबी दिल्ली पहुंचे वहां पर उन्होंने खूब छककर शराब पी और फिर उसके बाद शहर घूमने निकले . वहां उनकी नजर एक मंदिर पर पड़ी. उनमे से एक शराबी बोला - देखो यहाँ के लोग कितने मूर्ख है जिन्होंने मंदिर को धूप में रखा है. भगवान के घर की भी यहाँ के लोगो को परवाह नहीं है.
बाकी शराबियो ने कहा - गोली मरो यहाँ के लोगो को चलो हम सब मिलकर मंदिर को धकेलकर छाँव में ले चलते है. सब के सब बजरंग बली का नारा लगाते हुए जोर जोर से मंदिर को धकेलकर ठेलने लगे.
जब शाम हो गई तो चारो शराबियो ने अपनी अपनी पीठ ठोक ली और कहने लगे देखो हमने मंदिर को धकेलकर मंदिर को छाँव में कर ही दिया है.
कुछ लोग शराबियो की हरकतों को देख रहे थे उनमे से एक ने पूछा - आप सब लोग यह सब क्या कर रहे है.
एक शराबी ने कहा - " शर्म नहीं आती पूछते हुए की भगवान के घर को कोई इस तरह से घूप में रखते है ".
उत्तर में उस आदमी ने कहा देखते है तुम लोग कितने दिनों तक मंदिर को धूप से कैसे बचाकर रखते हो.
एक शराबी बोला - " हम तुम्हारे बाप के नौकर है जो रोज रोज मंदिर को छाँव में ले जाते फिरे.
....
एक लड़का भागकर गश्त करने वाले पुलिस वाले के पास पहुँचा और बोला - जरा उस कोने में चलिए मेरे पिताजी दो घंटे से एक बदमाश से लड़ रहे है.
पुलिसवाला - तुमने पहले खब़र क्यों नहीं दी ?
लड़का - उस समय मेरे पिताजी उस बदमाश को पीट रहे थे.
....
रामप्यारी ने अपने अध्यापक से कहा - "यह कहना गलत है की दो और दो मिलकर चार होते है. मिसाल के तौर पर दो पानी की बूंदों में दो पानी की बूंदे मिलाकर देखिये की चार बूंदे होती है की नहीं.
....
ताऊ रामप्यारी से - मानलो तुम्हारे जेब में तीन पाई है और एक पाई जेब में और डाल दी जाए तो क्या होगा ?
रामप्यारी - मेरी जेब फट जायेगी
ताऊ - वह कैसे ?
रामप्यारी - गजब कर रहे हो मेरी जेब इतनी छोटी है की उसमे चारपाई कैसे आ सकती है.
29.7.09
27.7.09
फिर से अपने गाँवो को स्वर्ग बनायेंगे
फिर से अपने गाँवो को स्वर्ग बनायेंगे
अपने अन्दर सोये देवत्व को जगायेंगे.
गाँवो की गलियां क्यों गन्दी रहने देंगे
गंदगी नरक जैसी अब क्यों रहने देंगे.
सहयोग,श्रम से हम यह नरक हटायेंगे
रहने देंगे बाकी हम मन का मैल नहीं.
अब भेदभाव का हम खेलेंगे खेल नहीं
सब भाई भाई है सब मिलकर गायेंगे.
देवो जैसा होगा चिंतन व्यवहार चलन
फिर तो सबके सुख दुःख बाँट जायेंगे.
शोषण-उत्पीडन फिर नाम नहीं होगा
फिर पीड़ा -पतन का नाम नहीं होगा
सोने की चिडिया हम फिर कहलायेंगे.
साभार-युग निर्माण हरिद्वार से.
अपने अन्दर सोये देवत्व को जगायेंगे.
गाँवो की गलियां क्यों गन्दी रहने देंगे
गंदगी नरक जैसी अब क्यों रहने देंगे.
सहयोग,श्रम से हम यह नरक हटायेंगे
रहने देंगे बाकी हम मन का मैल नहीं.
अब भेदभाव का हम खेलेंगे खेल नहीं
सब भाई भाई है सब मिलकर गायेंगे.
देवो जैसा होगा चिंतन व्यवहार चलन
फिर तो सबके सुख दुःख बाँट जायेंगे.
शोषण-उत्पीडन फिर नाम नहीं होगा
फिर पीड़ा -पतन का नाम नहीं होगा
सोने की चिडिया हम फिर कहलायेंगे.
साभार-युग निर्माण हरिद्वार से.
24.7.09
टंकी पे चढी : इस टंकी में है बड़े बड़े गुण ... दुनिया रंग रंगीली
कभी शोले फिल्म देखी थी जिसमे वीरू बसंती को पटाने मनाने के लिए टंकी पर चढ़ जाता है और उसे टंकी से उतरने के लिए बसंती हाँ कर देती है और इस फिल्म की तर्ज पर आज एक समाचार पत्र में पढ़ा की एक प्रेमिका अपने शादीशुदा प्रेमी को मनाने के लिए जाकर टंकी पर चढ़ गई और टंकी पे चढ़कर जोर जोर से अपने प्रेमी का नाम पुकारने लगी . मजमा जमा हो गया .
शादीशुदा प्रेमी मर्द अपनी पत्नी बच्चो के साथ टंकी के पास आया और उनकी उपस्थिति में वह अपनी प्रेमिका के पास खुद टंकी पर चढ़कर गया और सबकी उपस्थिति में टंकी पर ही उसने अपनी प्रेमिका की मांग भरी और उसे टंकी पर से उतार कर मरने से बचा दिया . चूंकि टंकी पर चढ़ने वाली बालिग हो गई थी इसीलिए पुलिस ने शादी के सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि उस शादीशुदा मर्द उर्फ़ आज का वीरू को १५१ की धारा के तहत हवालात की राह जरुर दिखा दी .
यह लगता है कि टंकी पर अपनी मांग को लेकर चढ़ जाओ भाई लोग मना कर टंकी से उतार ही लेंगे. आगे आने वाला समय बताएगा कि टंकी पर चढ़ने उतरने के धंधे से क्या क्या ..... है. अपनी बात मनमाने के लिए समय बदलने के साथ लोगो के विचार और तरीके बदल गए है .और आज के समय में ये सब तरीके हास्यापद लगते है और लोगो के मनोरंजन का कारण बन जाते है .
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