8.1.10

कागज के पुराने टुकड़ो से - औरो को सताने वाले खुद चैन नहीं पाते हैं...

आज पुराने चंद कागज मिले उसमे मेरी खुद की लिखी रचना मिली . यह रचना मेरे द्वारा उस समय लिखी गई थी जब पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद चरम सीमा पर था. आपकी सेवा में आज प्रस्तुत कर रहा हूँ.

औरो को सताने वाले खुद चैन नहीं पाते हैं
औरो को जलाने वाले भी खुद जला करते हैं.
गरीबो के घरौदे जलाकर तुम्हे क्या मिलता है
गरीब की आह हर मोड़ पे तुझे बरबाद कर देगी
गुरुर है तो खुद अपना आशियाँ जलाकर देखो.
ऐ मानवता के दरिन्दे महेंद्र तुझे सलाह देता है.
शांति मिलेगी गरीब की कुटिया सजाकर देखो.
तुम औरो को बेवजह जलाकर खुद न जलो
मानवता के पुजारी बन चैन की वंशी बजाओ.

कागज के पुराने टुकड़ो से -
रचनाकार - महेंद्र मिश्र .

5.1.10

पुराने कागज के चंद टुकड़ो से - "उनकी यादो में,अब हम विरह गीत गाने लगे हैं"

उनकी यादो में,अब हम विरह गीत गाने लगे हैं
ख्यालो में और किताबो में, उनको पाने लगे है.

वहां उनका दिल धड़कता है, याद यहाँ आती है
वो परेशान दिखती है,दिल से जान निकलती है.

इस तन्हाई में, कोई दिल को आवाज दे रहा है
किसकी आवाज गूँज रही है, इस सूने अंगना में.

दूर रहकर भी मुझसे वो भी दिल से परेशान है
उनका नाम भी शामिल है, अब मेरी रुसवाई में.

4.1.10

श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज और लंगोटा नंदजी महाराज का लंगोट गुमने का प्रसंग

श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज ने कहा ... अलख निरंजन बच्चा !
हमारी लंगोटी कहाँ है ? कितनी सर्दी पड़ रही है ।
लोग अब बाबाओं से ही मजाक करने लगे हैं ।
अलख निरंजन



लंगोटा नंदजी महाराज ने कहा - अरे कोई पहलवान भक्त है तो आओ और इन शठाधीश बाबा को उठाकर सात समंदर पार पटककर आओ, मेरा जीना हराम कर रखा है,
हमारी दुकानदारी को बर्बाद करने की कसम खा रखी है, इन चिलमखोर बाबा ने !

अरे बाबाओं अपनी लंगोटी कहाँ ख़ोज रहे है आप आपके दस मीटर के बड़े लंगोट तो इनने पहिन रखा है . कहो तो इन पहलवानों को आपकी देखरेख के लिए बुलवाया जाय ....