12.1.10

आप सभी के प्रेम स्नेह ने बाध्य कर दिया की मै फिर कलम चलाऊ...

तीन सालो का ब्लागिंग का सफ़र....खूब पोस्टे पढी....खूब लिखी और खूब टिप्पणियां दिलोजान से अर्पित की . हिंदी ब्लागिंग को देखा जाना और समझा.... बस यही समझ में आया है की बस वही खींच तान, लल्लू चप्पू बाजी, संयमित मर्यादित नपे तुले शब्दों का अभाव , जो कहते है की गुटबाजी है इसे समाप्त किया जाना चाहिए वे ही गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे है . किसी को भी अमर्यादित टीप भेज देना और वरिष्ट होने का दावा करना ...कहाँ तक उचित है . किसी की भी खिल्ली उड़ाना और किसी भी विषय पर विचार किये वगैर अपनी बात थोप देना आदि आदि यहाँ .... बखूबी देखने को मिल रही है ...अब तो इस मंच से साहित्यकार कवि लेखक भी जुड़ने से डरने लगे है ..को लेकर...मैंने यह पोस्ट " क्या यही स्वतंत्र अभिव्यक्ति का मंच है की किसी पर भी कुछ भी थोपो ....क्या ब्लागिंग जीनियस करते है आदि आदि....क्यों न अब ब्लागिंग को राम राम कर ली जाये ".

अत्यंत भावावेश में लिख दी थी जिसके परिपेक्ष्य में आदरणीय काजल कुमार, डाक्टर मनोज मिश्र, समीर लाल जी, डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी, भाई मिथिलेश दुबे, अजय कुमार जी, राज भाटिया जी, मनोज कुमार, अजय कुमार झा, ज्ञानदत्त जी पाण्डे, ताउजी, दिनेश राय जी द्विवेदी जी, अलबेला खत्री जी , अरविन्द मिश्र, भाई ललित शर्माजी , सतीश पंचम जी, गिरीश बिल्लौरेजी, भाई अनिल पुसदकर जी , खुशदीप सहगल जी, डा.अमर कुमार जी, स्मार्ट इंडियन , जी.के. अवधिया जी , सिद्धार्थ जोशी जी, मिरेड जी, सुरेश चिपलुकर जी, पी.सी.गोदियाल जी ,पंडित डी.के.शर्मा जी, निर्झर'नीर, शिव कुमार जी मिश्र और अदा जी के विचार प्राप्त हुए .

आप सभी के विचारो पर मैंने काफी मनन और चिंतन किया और उसके उपरांत पुन: मैंने आप सभी से जुड़े रहने का फैसला कर लिया है . पुन जुड़ने का फैसला " आप सभी से जो स्नेहिल प्यार और निरंतर आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है" के कारण ले रहा हूँ . साथ डा.अमर कुमार जी का आभारी हूँ जिन्होंने अपने विचार के माध्यम से जो गुरुमंत्र दिया है उस पर अपनी कलम के माध्यम से अमल करने की पुरजोर कोशिश करूँगा. शायद यही कमी थी की यह सब माहौल देखकर जल्दी विचलित हो जाता था . इस गुरु मन्त्र से निसंदेह मेरी कमी जल्द दूर हो जाएगी...

आभारी हूँ आप सभी की टीप के लिए जिससे मेरे मानसिक मनोबल बढ़ा है और पूरे मनोयोग से एक नई उर्जा के साथ ब्लागिंग करूँगा...और करता रहूँगा. ब्लागिंग के माध्यम से मेरी पोस्टो की चर्चा बिना लाग लपेट के सीधे अखबारों में हो जाती है और आप सभी का स्नेह समय समय पर मिलता रहता है इसीलिए मै ब्लॉग लिखने में रूचि रखता हूँ .

अंत में एक बात - पर मित्रो यह न समझना की अमरसिह की तरह लटके झटके पढ़ा कर फिर से वापिस आ गया हूँ .. हा हा हा हा
 
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9.1.10

माइक्रो - बहुमूल्य बात ...

नियति क्रम से हर वस्तु, हर व्यक्ति का अवसान होता है . मनोरथ और प्रयास भी सर्वथा सफल कहाँ होते है ? यह सब अपने ढंग से चलता रहे पर मनुष्य भीतर से टूटने न पाए इसी में उसका गौरव है . जिस तरह से समुद्र तट पर जमी हुई चट्टानें चिर अतीत से अपने स्थान पर अड़ी बैठी रहती है . हिलोरें चट्टानों से लगातार टकराती है पर चट्टानें हार नहीं मानती है . उसी तरह हमें भी नहीं टूटना चाहिए और जीवन से कभी निराश नहीं होना चाहिए... कभी हार नहीं माननी चाहिए .

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8.1.10

बाकी कुछ बचा तो मंहगाई और सरकार मार गई...

जनता ने इन पर विश्वास जताकर इन्हें जिताकर ताज ए तख़्त पर बैठाया और उम्मीद की सरकार से उन्हें राहत मिलेगी क्योकि चुनावों के पूर्व इन नेताओं ने भारी भारी राहत पैकेजों की घोषणा की थी . सरकार बनते ही जिस तरह से मंहगाई ने तांडव नृत्य कर अपना असर दिखाना शुरू किया तो उसने जनता जनार्दन की कमर ही तोड़ कर रख दी . पहले दाल ने अपना असर दिखाया जिससे सबकी दाल पतली हो गई और मंहगी होने के कारण गरीबो के घर में गल नहीं रही है . पिछले साल शक्कर के मूल्य भाव २७ से २८ रुपये प्रति किलोग्राम थे आज अचानक शक्कर के मूल्य ४५ रुपये पचास पैसे हो गए है और सुनने में आया है की शक्कर के भाव पचास रुपये तक करने की साजिशे की जा रही है .

सरकार की त्रुटी पूर्ण नीतियो के कारण पूरा मार्केट बुरी तरह से वायदा बाजार और सटोलियो के चंगुल में फंस गया है . सटोलियो और बिचौलियो द्वारा भरी स्तर पर की जाने वाली कमीशनखोरी के चलते बाजार में आवश्यक वस्तुओ की कीमतों में भारी वृद्धि हो रही है . बढ़ती मंहगाई को नियंत्रित करने में सरकार हर मोर्चे पर असफल साबित हो रही है जिसका खामियाजा जनता जनार्दन को भुगतना पड़ रहा है .

जबलपुर शहर में दूध के रेट एक साल पहले करीब पंद्रह से सोलह रुपये लीटर थे और दूध माफियो के चलते आज जबलपुर शहर में दूध २८ रुपये लीटर बेचा जा रहा है और उसे इस माह से तीस रुपये लीटर बेचे जाने की कोशिशे की जा रही है . दूध जो बच्चो का आवश्यक आहार निवाला है क्या वो भी मंहगा होने के कारण बच्चो को नसीब नहीं होगा . यह सब देखकर दुःख होता है . क्या सरकार ने गांधारी की तरह आँखों में पट्टी बांधकर व्यापारियो को खुली छूट दे दी है की तुम रेट बढाओ हम तुम्हारे साथ है . सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है .

अब समय आ गया है की जब निर्वाचित जनप्रतिनिधियो को जनता के सुख दुःख की परवाह नहीं है तो बढ़ती मंहगाई के खिलाफ जनता जनार्दन को खुद आगे आना होगा वरना इसके परिणाम भुगतने तैयार रहना होगा . मंहगाई एक ऐसा मुद्दा है जिसका असर सब पर पड़ता है इसीलिए हम सभी को इस मसले पर सजग रहना चाहिए और हर हाल में बढ़ती मंहगाई के खिलाफ आन्दोलन करना चाहिए .

आलेख - महेन्द्र मिश्र
जबलपुर