नियति क्रम से हर वस्तु, हर व्यक्ति का अवसान होता है . मनोरथ और प्रयास भी सर्वथा सफल कहाँ होते है ? यह सब अपने ढंग से चलता रहे पर मनुष्य भीतर से टूटने न पाए इसी में उसका गौरव है . जिस तरह से समुद्र तट पर जमी हुई चट्टानें चिर अतीत से अपने स्थान पर अड़ी बैठी रहती है . हिलोरें चट्टानों से लगातार टकराती है पर चट्टानें हार नहीं मानती है . उसी तरह हमें भी नहीं टूटना चाहिए और जीवन से कभी निराश नहीं होना चाहिए... कभी हार नहीं माननी चाहिए .
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8 टिप्पणियां:
कभी हार नहीं माननी चाहिए ....
100 pratisht shee.
जीत ही उनको मिली जो हार से जमकर लड़े हैं,
हार के भय से डिगे जो, वे घराशायी पड़े हैं।
waah ...........bahut hi sundar baat kahi.
आभार सदविचारों का पंडित जी...
आप से सहमत जी
वाह महेन्द्र भाई बहुत ही प्रेरणादायक बात कही आपने
मनुष्य भीतर से टूटने न पाए इसी में उसका गौरव है.
बहुत अच्छी बात है .
- विजय तिवारी "किसलय"
तूफानों से लड़ता है सफीना मेरा!
ओहन पे झपटता है नगीना मेरा!!
तू डर के भागता है साए की तरफ !
सूरज को बुझाताहाई पसीना मेरा!!!
जय शम्भू!!!!
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