17.1.10

ताउजी पर कुछ चुटकुले और कुछ ठक ठक करती लखटकिया लाइने ----

ठण्ड कुछ बढ़ गई है जिसके असर से ब्लॉग जगत अछूता नहीं है . हिंदी ब्लागजगत में माहौल भी कुछ ठंडा ठंडा सा दिख रहा है इसीलिए माहौल में कुछ गर्मी लाने के लिए कुछ जोग -


ताउजी से ताऊ का एक मित्र - मित्र तुम्हारे मोबाइल पर आई लव यूं के खूब लगातार मैसेज आ रहे है . आखिर बात का है ?
ताउजी - अरे असल मे रामप्यारी का मोबाइल ले आया हूँ .
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ताउजी ने अपने दोस्तों से चलते समय कहा - अभी घर जाकर बीबी को सफाई देना पड़ेगी .
दोस्तों ने ताउजी से पूछा - आखिर किस बात की सफाई ?
ताउजी - ये तो घर जाकर ही पता लगेगा.
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मैरिज ब्यूरो में मैरिज आफिसर के पद के लिए एक महिला बसंती पहुंची . उस महिला से इंटरव्यू लेने वाले ने पूछा - मैडम इस पद के लिए न तो आपके पास डिग्री न डिप्लोमा है और न कोई तकनीकी योग्यता है फिर भी आप इंटरव्यू देने चली आई ?
बसंती ने कहा - अरे साब डिग्री डिप्लोमा की छोडिये मे छः तलाक ले चुकी हूँ और सांतवा केस न्यायलय के समक्ष विचाराधीन है .
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ताउजी के दांतों में बहुत दर्द था . वे डेंटिस्ट के पास दन्त दिखाने पहुंचे . डेंटिस्ट ने ताउजी से कहा - आपका एक दन्त तो आधा सड़ गया है अब इसे उखाड़ना ही पडेगा.
ताउजी - डाक्टर एक शर्त पर उखाड़ने दूंगा की पहले आपको कसम लेना पडेगी की मे सिर्फ एक ही दन्त उखाडूंगा .
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एक चीटी हाथी की पीठ पर सवार होकर नदी पार कर रही थी . वजन के कारण लकड़ी का पुल चरमराने लगा तो हाथी से चीटी बोली - यार मेरे वजन के कारण यदि पुल चरमरा रहा है तो क्या मे उतरू.... तुम्हे कोई जिससे दिक्कत न हो ....

कुछ ठक ठक करती लखटकिया लाइने ----

० अपनी पड़ोसन को भली महिला मानने से पहले उसके पति से मिल लीजिये ,,,
० नाकामयाबी हर किसी को दिखती है कामयाबी का कोई गवाह नहीं होता है ,,,
० यदि आप बैंक के सौ रुपये के देनदार है तो यह आपकी दिक्कत है और यदि आप बैंक के सौ करोड़ के देनदार है तो ये बैंक की प्राब्लम है,,,

13.1.10

मकर संक्रांति विशेष - हाल क्या था दिलो का हमसे पूछो न सनम ...उनका पतंग उड़ाना गजब हो गया ....

ओह जब जब मकर संक्रांति आती है तब अपना बचपना भी याद आ जाता है और उन सुखद दिनों की स्मृतियाँ दिलो दिमाग में छा जाती है . वाकया उन दिनों का है जब मै करीब पन्द्रह साल का था . कहते है की जवानी दीवानी होती है . इश्क विश्क का चक्कर भी उस दौरान मेरे सर पर चढ़कर बोल रहा था .





मकरसंक्रांति के दिन हम सभी मित्र पतंग धागे की चरखी और मंजा लेकर अपनी अपनी छतो पर सुबह से ही पहुँच जाते थे और जो पतंगे उड़ाने का सिलसिला शुरू करते थे वह शाम होने के बाद ही ख़त्म होता था . मेरे घर के चार पांच मकान आगे एक गुजराती फेमिली उन दिनों रहती थी . उस परिवार के लोग मकर संक्रांति के दिन अपने मकान की छत पर खूब पतंग उड़ाया करते थे . उस परिवार की महिलाए लड़कियाँ भी खूब पतंगबाजी करने की शौकीन थी .




उस परिवार की एक मेरे हम उम्र की एक लड़की खूब पतंग उड़ा रही थी मैंने उसकी पतंग खूब काटने की कोशिश की पर उसने हर बार मेरी पतंग काट दी . पेंच लड़ाने के लिए बार बार नए मंजे का उपयोग करता .हर बार वह मेरी पतंग काटने के बाद हुर्रे वो काट दी कहते हुए अपनी छत पर बड़े जोर जोर से उछलते हुए कूदती थी और विजयी मुस्कान से मेरी और हंसकर देखती तो मेरे दिल में सांप लोट जाता था .



एक दिन मैंने अपनी पतंग की छुरैया में एक छोटी सी चिट्ठी बांध दी और उसमे अपने प्यार का इजहार का सन्देश लिख दिया और उसमे ये भी लिख दिया की तुमने मेरी खूब पतंगे काटी है इसीलिए तुम्हे मै अपना गुरु मानता हूँ . छत पर वो खड़ी थी उस समय मैंने अपनी वह पतंग उड़ाकर धीरे से उसकी छत पर उतार दी . पतंग अपनी छत पर देखकर लपकी और उसने मेरी पतंग को पकड़ लिया और पतंग की छुर्रैया में मेरा बंधा संदेशा पढ़ लिया और मुस्कुराते हुए काफी देर तक मुझे देखती रही और मुझे हवा में हाथ हिलाते हुए एक फ़्लाइंग किस दी . उस दौरान मेरे दिमाग की सारी बत्तियां अचानक गुल हो गई थी .



मकर संक्रांति के बाद एक दो बार उससे लुक छिपकर मिलना हुआ था . वह शायद मेरा पहला पहला प्यार था शायद उसका नाम न लूं तो भारती था . अचानक कुछ दिनों के बाद बिजनिस के सिलसिले में उनका परिवार गुजरात चला गया और वो भी चली गई उसके बाद उससे कभी मिलना नहीं हुआ . जब जब मकर संक्रांति का पर्व आता है तो उसके चेहरे की मुस्कराहट और और उसका पतंकबाजी करना और ये कह चिल्लाना वो काट दी है बरबस जेहन में घूमने लगता है .

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12.1.10

आप सभी के प्रेम स्नेह ने बाध्य कर दिया की मै फिर कलम चलाऊ...

तीन सालो का ब्लागिंग का सफ़र....खूब पोस्टे पढी....खूब लिखी और खूब टिप्पणियां दिलोजान से अर्पित की . हिंदी ब्लागिंग को देखा जाना और समझा.... बस यही समझ में आया है की बस वही खींच तान, लल्लू चप्पू बाजी, संयमित मर्यादित नपे तुले शब्दों का अभाव , जो कहते है की गुटबाजी है इसे समाप्त किया जाना चाहिए वे ही गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे है . किसी को भी अमर्यादित टीप भेज देना और वरिष्ट होने का दावा करना ...कहाँ तक उचित है . किसी की भी खिल्ली उड़ाना और किसी भी विषय पर विचार किये वगैर अपनी बात थोप देना आदि आदि यहाँ .... बखूबी देखने को मिल रही है ...अब तो इस मंच से साहित्यकार कवि लेखक भी जुड़ने से डरने लगे है ..को लेकर...मैंने यह पोस्ट " क्या यही स्वतंत्र अभिव्यक्ति का मंच है की किसी पर भी कुछ भी थोपो ....क्या ब्लागिंग जीनियस करते है आदि आदि....क्यों न अब ब्लागिंग को राम राम कर ली जाये ".

अत्यंत भावावेश में लिख दी थी जिसके परिपेक्ष्य में आदरणीय काजल कुमार, डाक्टर मनोज मिश्र, समीर लाल जी, डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी, भाई मिथिलेश दुबे, अजय कुमार जी, राज भाटिया जी, मनोज कुमार, अजय कुमार झा, ज्ञानदत्त जी पाण्डे, ताउजी, दिनेश राय जी द्विवेदी जी, अलबेला खत्री जी , अरविन्द मिश्र, भाई ललित शर्माजी , सतीश पंचम जी, गिरीश बिल्लौरेजी, भाई अनिल पुसदकर जी , खुशदीप सहगल जी, डा.अमर कुमार जी, स्मार्ट इंडियन , जी.के. अवधिया जी , सिद्धार्थ जोशी जी, मिरेड जी, सुरेश चिपलुकर जी, पी.सी.गोदियाल जी ,पंडित डी.के.शर्मा जी, निर्झर'नीर, शिव कुमार जी मिश्र और अदा जी के विचार प्राप्त हुए .

आप सभी के विचारो पर मैंने काफी मनन और चिंतन किया और उसके उपरांत पुन: मैंने आप सभी से जुड़े रहने का फैसला कर लिया है . पुन जुड़ने का फैसला " आप सभी से जो स्नेहिल प्यार और निरंतर आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है" के कारण ले रहा हूँ . साथ डा.अमर कुमार जी का आभारी हूँ जिन्होंने अपने विचार के माध्यम से जो गुरुमंत्र दिया है उस पर अपनी कलम के माध्यम से अमल करने की पुरजोर कोशिश करूँगा. शायद यही कमी थी की यह सब माहौल देखकर जल्दी विचलित हो जाता था . इस गुरु मन्त्र से निसंदेह मेरी कमी जल्द दूर हो जाएगी...

आभारी हूँ आप सभी की टीप के लिए जिससे मेरे मानसिक मनोबल बढ़ा है और पूरे मनोयोग से एक नई उर्जा के साथ ब्लागिंग करूँगा...और करता रहूँगा. ब्लागिंग के माध्यम से मेरी पोस्टो की चर्चा बिना लाग लपेट के सीधे अखबारों में हो जाती है और आप सभी का स्नेह समय समय पर मिलता रहता है इसीलिए मै ब्लॉग लिखने में रूचि रखता हूँ .

अंत में एक बात - पर मित्रो यह न समझना की अमरसिह की तरह लटके झटके पढ़ा कर फिर से वापिस आ गया हूँ .. हा हा हा हा
 
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