26.4.20

सच्चे संत/महात्मा वैभव का नहीं निर्मल भावनाओं का सम्मान करते हैं ...

एक गाँव में एक करोड़पति व्यापारी था उसे अपने धन पर काफी घमंड था और वह हमेशा गरीब लोगों का शोषण करता था और उन्हें खूब सताता था । एक बार व्यापारी के गांव में एक बड़े संत महात्मा आयें और वे एक गरीब की कुटिया में जाकर ठहर गये ।

जब व्यापारी ने सुना कि उसके गाँव में एक संत महात्मा आयें हैं तो वह उनके दर्शन करने गया और वहाँ जाकर उसने देखा कि महात्मा जी गरीब के घर में रूखी सूखी रोटी खा रहे हैं । यह देख व्यापारी ने महात्मा जी से कहा कि आप यहाँ रुखा सूखा भोजन कर रहे हैं मेरे गांव में जो भी संत महात्मा आते हैं वे मेरे ही घर में रुकते हैं और मेरे घर में किसी भी तरह की कमी नहीं हैं और आपसे निवेदन हैं कि आप मेरे यहाँ ठहरें और विश्राम करें ।

महात्मा जी ने कहा - यह भोजन अत्यंत रुचिकर है और मैं तो मेहनत की कमाई से कमाया गया अमृत खा रहा हूँ और जो आनंद इस रूखे सूखे भोजन करने में मुझे मिल रहा है वह स्वादिष्ट पकवानों में भी नहीं मिलेगा । महात्मा जी के वचनों को सुन कर व्यापारी को यह ज्ञान हो गया कि सच्चा संत महात्मा वे ही होते हैं जो वैभव का नहीं व्यक्ति की निर्मल भावनाओं का सम्मान करते हैं ।

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