हमारे साथ अपनी मधुर यादो के उजाले रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए .
जो बिछड गए.. वो शायद कभी सपनों में मिले
जिस तरह किताब में सूखे हुए सहेजे फूल मिले.
मेरे पास आए.. न जाने क्यो अब मुंह फेर बैठे
आज का नही .यह है ज़माने का दस्तूर निराला.
"हेन्द्र"
2 टिप्पणियां:
जन्माष्टमी की बहqत बहुत शुभकामनाएं।
बहुत ही सुन्दर गजल सुनाने के लिये धन्यवाद
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