23.8.08

अपनी मधुर यादो के उजाले रहने दो

हमारे साथ अपनी मधुर यादो के उजाले रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए .
जो बिछड गए.. वो शायद कभी सपनों में मिले
जिस तरह किताब में सूखे हुए सहेजे फूल मिले.
मेरे पास आए.. न जाने क्यो अब मुंह फेर बैठे
आज का नही .यह है ज़माने का दस्तूर निराला.

"हेन्द्र"

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

जन्माष्टमी की बहqत बहुत शुभकामनाएं।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर गजल सुनाने के लिये धन्यवाद