16.9.08

राष्ट्रहित में अपने उत्तरदायित्वो का निर्वहन ईमानदारी से करे

हमारे देश को आजाद हुए ६१ वर्ष पूर्ण हो चुके है और हमारा देश एक परिपक्व राष्ट्र की श्रेणी में समग्र विश्व के समक्ष अब शान से खड़ा है . हमारे देश ने आजादी के बाद इन ६१ वर्षो में बहुत कुछ पाया है और बहुत खोया भी है . जहाँ एक और भौतिक सुख सुविधाओं से लबरेज समाज का चेहरा बदलने लगा है तो दूसरी और अलगाववादी सोच और आतंक के नए ताने बाने बुने जा रहे है . भाषा धर्म क्षेत्र और पहनावा की धुरी बनाकर एक ही देश के देशवासी एक दूसरे को शत्रु समझकर अपने ही घर में आग लगाने तुले हुए है और देश की सुख शान्ति के उपवन को उजाड़ने में जुटे है .

हमारा देश सम्प्रदाय और सम्प्रदायों में बंट सा गया है . आम आदमी में अब बर्दास्त करने की क्षमता लुप्त हो रही है और केवल मै और हम तक की सीमा में सारी सोच कैद सी हो गई है और इस का दुष्परिणाम यह निकला कि हमारे देश के कई प्रान्त अलगाव व हिंसा के रास्ते पर भटक गए है . आजादी के ६१ बसंत का सुख भोगने वाला हमारा देश भारत अब नैतिकता और मूल्यों के हो रहे भीषण पतझड़ को टकटकी लगाये देख रहा है .

प्रश्न यह है कि हमारा देश हम सभी पर दिलोजान से निछावर है और हम सभी को पाल पोस रहा है पर देश की चिंता किसको है यह आज के परिपेक्ष्य में ज्वलंत प्रश्न चिन्ह बन गया है . अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान व समर्पित न होने का दंड क्षम्य और माफ़ी योग्य नही है अतः आज देश में चल रही विषम परिस्थिति को द्रष्टिगत रखते हुए आम नागरिक और हम सभी को अपने उतरदयित्वो का निर्वहन ईमानदारी और कर्मठता के साथ करने का संकल्प लेना चाहिए .

जय भारत माँ जय जय अखंड भारती जय हिंद.

16 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

सही कह रहे है मिश्रा जी....

Unknown ने कहा…

जय भारत माँ जय जय अखंड भारती जय हिंद.

seema gupta ने कहा…

"very well said, great"

Regards

Arvind Mishra ने कहा…

सहमत

Arshia Ali ने कहा…

पूर्णत सहमत।

शोभा ने कहा…

सुंदर रचना. बधाई स्वीकारें.

admin ने कहा…

सही कहा आपने। हर आदमी अपने स्वार्थ में इस कदर डूबा हुआ कि उसे समाज, मानवता अथवा देश जैसी बातें छू तक नहीं जातीं।
यदि हर व्यक्ति इस चीज को शिददत से महसूस करे, तो हमारा देश फिर से सोने की चिडिया बन सकता है।

Unknown ने कहा…

aap ka lekh padha . aap ne bilkul sahi likha hai . sab kyon vo nhai karte jo hum ko karna cahiye.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut sahi nazariyaa prastut kiya hai aapne
ek-ek vichaaron ka mahatwpurn sthaan hai

जितेन्द़ भगत ने कहा…

वाकई देश को बदलने से पहले व्यक्‍ति‍ को अपना सुधार करना पड़ेगा। आपका कहना सही है कि‍-
'आम आदमी में अब बर्दास्त करने की क्षमता लुप्त हो रही है और केवल मै और हम तक की सीमा में सारी सोच कैद सी हो गई है'

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

"आजादी के ६१ बसंत का सुख भोगने वाला हमारा देश भारत अब नैतिकता और मूल्यों के हो रहे भीषण पतझड़ को टकटकी लगाये देख रहा है ."

बहुत गहन चिंतन है आपका ! धन्यवाद !

Udan Tashtari ने कहा…

गहरा एवं सार्थक चिन्तन:

जय भारत माँ जय जय अखंड भारती जय हिंद.

बवाल ने कहा…

Priya Pandit jee, aapkee is sunder post par Tippani ke liye ek sher fir lal-n-bavaal par de raha hoon. Padh kar bataiye, kaisa laga ?

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप बिलकुल सही कह रहे हे.
धन्यवाद

Nitish Raj ने कहा…

बिल्कुल सही नजरिया है आपका।

आलोक कुमार ने कहा…

हम सभी को अपने उतरदयित्वो का निर्वहन ईमानदारी और कर्मठता के साथ करने का संकल्प लेना चाहिए...आप सही कह रहे हैं!!