कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर
गम की दास्ताँ हमसे न पूछो दिले दर्द सुनाकर हम फ़िर तडफेगे
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर
कभी कभी दिए जलाकर ख़ुद प्यार के अपने हाथो बुझाने पड़ते है
कभी कभी ख़ुद को मिटाकर वादे कस्मे फ़िर भी निभाने पड़ते है.
तमाम कोशिशे की बहुत चाहा मैंने उनको भुला कर कि हम जिए
कोशिशे तमाम मेरी नाकाम रही है पर भुलाकर हम जी न सके.
दिलशाद कभी न हो पाया मेरा ,मैंने माँ से भी ज्यादा जिसे चाहा
अपना दामन छुडा कर चले गये फ़िर भी न अब न लगे दिल मेरा
मयकदे में जाकर देखा है बज्म उनकी तलाश इन आँखों को है
जो नजरो से गिराकर गए है मुझे न करार न सुकून मिल सका है
दिल लगाकर ये एहसास हुआ है जो चले गए ठोकरों में उड़ाकर
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर.
7 टिप्पणियां:
दिल लगाकर ये एहसास हुआ है जो चले गए ठोकरों में उड़ाकर
कोई इलाज नही इन जख्मो का ये जाना सबको दिलेहाल सुनाकर.
bahut sunder rachana
humre dustbin pr amantrit he
बहुत बढिया लिखा है।
कभी कभी दिए जलाकर ख़ुद प्यार के अपने हाथो बुझाने पड़ते है
कभी कभी ख़ुद को मिटाकर वादे कस्मे फ़िर भी निभाने पड़ते है.
वाह वाह वाह वाह क्या शेर है
धन्यवाद
Bhut khub. sabhi aek se badkar aek.
kabiletarif.
बहुत बढिया.....
महेन्द्र जी आपको दशहरे की बधाई।
एक टिप्पणी भेजें