यदि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व और कृतित्व असाधारण होता है तो सभी उसका नेतृत्व स्वीकार कर लेते है और उस व्यक्ति के हर आदेश को स्वीकार कर लेते है ऐसे व्यक्ति के कार्य को * वन मैन शो * कहा जा सकता है.
परन्तु इसके विपरीत कुछ विशेष वर्ग में इस तरह के आदमी पाये जाते है जो उस वर्ग के सदस्यों से आपस में परामर्श किए वगैर अपनी मनमर्जी करता है और अपनी अहमियत साबित करने के लिए कुछ भी कार्य करता है जबकि वह समझता है कि उस वर्ग समुदाय के लोग उसकी बात मानेगे और उसके हर कार्य में सहमति देंगे और उसे वाहवाही मिल जावेगी परन्तु जो कार्य वह अपनी मनमर्जी से कर रहा होता है उससे वर्ग समुदाय के लोग खुश नही रहते है और उसे दिल से वाहवाही नही देते है .. .. ऐसे व्यक्ति का कार्य * वन मैन शो * नही कहा जा सकता है और भविष्य में आदर के पात्र नही होते है ...
इस बारे में हर आदमी के अलग अलग विचार हो सकते है ...
17 टिप्पणियां:
वन मैन शो और लीडरशीप में अंतर है.
आपने सही दिशा में विचारा.
नेतृत्व डिमाण्ड करने की चीज नहीँ, कमाण्ड करने की चीज है। यह बहुत से लोग विचारते नहीं।
आप सही सोच रहे हैँ।
बिल्कुल सहि सोच हैआपकी
sahi baat...
हम भी कुछ-कुछ सीख रहे हैं, इस पोस्ट से.
अहम से पीड़ित लोग ऐसा ही करते हैं या यह कहिए की ऐसे लोगों की "नीड फॉर रेकग्निशन" प्रबल होती है या हमारी नज़रों में औकात से अधिक.बढ़िया सोच है. आभार.
सुब्रमनियन जी
मै आपके विचारो से शतप्रतिशत सहमत हूँ . समाज में घरो में परिवारों में मुहल्लों में शहरों में प्रदेशो में देशो में ऐसे व्यक्ति और कई ऐसे उदहारण सहज देखने मिल जाते है (ऐसे लोगों की "नीड फॉर रेकग्निशन" प्रबल होती है) . ऐसे व्यक्तियों को हम मोकापरस्त भी कह सकते है जो समय पर भरपूर मौका खोजते रहते है . टीप के लिए आपका आभारी हूँ .
aapne baat to thick hi kahi hai,
आदरणीय महेंद्र मिश्रा जी
अभिवंदन
तीसरी आँख से - * वन मैन शो * आलेख में आपने बिना लाग लपेट के ऐसी बात कह दी है कि कोई भी सम्बंधित शख्स एक बार अवश्य ही चोर कि दाढी में तिनका जैसा सकपका ज़रूर जाएगा . क्यों कि बिना राय शुमारी के अथवा महत्वाकांक्षा को लेकर किया कोई भी कार्य समझ में आ ही जाता है ( आपके अनुसार :-समाज में घरो में परिवारों में मुहल्लों में शहरों में प्रदेशो में देशो में ऐसे व्यक्ति और कई ऐसे उदहारण सहज देखने मिल जाते है (ऐसे लोगों की "नीड फॉर रेकग्निशन" प्रबल होती है) . ऐसे व्यक्तियों को हम मौकापरस्त भी कह सकते है जो समय पर भरपूर मौका खोजते रहते है ) इसके दूरदर्शी प्रतिफल कभी अच्छे नहीं हो सकते , भले ही तात्कालिक सुखानुभूति को हम अपनी सफलता मान लें.
सुब्रमनियन जी ने भी बात को बहुत अच्छे ढंग से समझा मैं उनसे भी सहमत हूँ.
- विजय
प्रिय विजय भाई
भाई सब को समेट कर लिखा है व्यक्ति विशेष को लिखता तो वह उचित नही होता . ऐसे विलक्षण जीव सर्वत्र है .
किसको चोर कहे किसकी दाढ़ी में तिनका है यह चेहरे पर लिखा नही होता है . मन के भावः अपनी लेखनी से अभिव्यक्त किए है . धन्यवाद आपकी बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए.
Bilkul sahi kaha aapne....
महेंद्र जी आप ने बिलकुल सही लिखा, ओर मै सुब्रमनियन जी की टिपण्णी से भी सहमत हूं, वेसे ऎसे लोग ज्यादा टिक नही पाते उन का पता जल्द चल जाता है.
धन्यवाद
सादर नमस्कार।
विचारणीय लेख। यथार्थ।
वन मैन शो ka accha vivrn....
Regards
Bhai mujhe to yahan tikna hai ...! isliye sabke piche lag kr chlne me hi bhlayi hai....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
aap ka aalekh yadi koi pratikriyaa hai to taareef naheen karoongaa ye kahoongaa ki jaisaa ye likhaa hai aapane :-
परन्तु इसके विपरीत कुछ विशेष वर्ग में इस तरह के आदमी पाये जाते है जो उस वर्ग के सदस्यों से आपस में परामर्श किए वगैर अपनी मनमर्जी करता है और अपनी अहमियत साबित करने के लिए कुछ भी कार्य करता है जबकि वह समझता है कि उस वर्ग समुदाय के लोग उसकी बात मानेगे और उसके हर कार्य में सहमति देंगे और उसे वाहवाही मिल जावेगी परन्तु जो कार्य वह अपनी मनमर्जी से कर रहा होता है
to vichaar karanaa hogaa
main pooree trah se sahamat naheen hoon
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