5.9.08

माँ नर्मदा प्रसंग : भडोच में माँ नर्मदा का आगमन

महर्षि भृगु जी का आश्रम भृगुकच्छ जिसे बर्तमान में भडोच के नाम से पुकारा जाता है . कहा जाता है पूर्व में माँ नर्मदा अंकलेश्वर होकर जाती थी . स्नान करने के लिए महर्षि भृगु जी को ५० मील दूर अंकलेश्वर से नर्मदा जल लाना पड़ता था . उनके शिष्यों ने इतने दूर से जल लाने में कठिनाई का अनुभव किया . शिष्यों की समस्या का निराकरण करने के ध्येय से अपने शिष्यों को महर्षि भृगु ने बुलाया और कहा कि आप लोग मेरी लंगोटी लेकर अंकलेश्वर जाए और इसे नर्मदा जल में धोकर लगोटी को एक रस्सी में बांधकर वगैर पीछे देखे मेरे आश्रम में लाये और जब मै कहूँ तब पीछे मुड़कर देखना तो तुम्हे माँ नर्मदा का जल दिखाई देगा . यदि आप लोगो ने पीछे मुड़कर देखा तो सब काम बिगड़ जावेंगे .

अपने गुरु की आज्ञा पाकर सब शिष्य हंशी खुशी अंकलेश्वर गए और नर्मदा जल में लगोटी को धोया और लंगोटी को रस्सी में बांधकर वगैर पीछे मुड़े बिना आश्रम तक लाये और गुरु जी को आवाज दी . महर्षि भृगु जी ने अपनी कुटिया से बाहर आकर अपने शिष्यों को पीछे मुड़कर माँ नर्मदा के दर्शन करने की आज्ञा दी . जब शिष्यों ने पीछे मुड़कर देखा तो अथाह जल में लंगोटी तैरते हुए देखा तो शिष्यों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा . सबने सामूहिक रूप से माँ नर्मदा का पूजन अर्चन किया और माँ नर्मदा के जयकारे के जोर जोर से नारे लगाये .

जब से आजतक माँ नर्मदा भडोच से होकर ही आगे समुद्र तक जाती है .

जय नर्मदे माँ.

4.9.08

व्यंग्य : आओ दफ्तर दफ्तर खेले ....

व्यंग्य आओ दफ्तर दफ्तर खेले ....

नया वेतनमान तन्ख्याय में लग गया है और लोगो की बल्ले बल्ले हो गई . सभी केन्द्र के कर्मचारी आगामी वेतन को लेकर गुणा भाग में व्यस्त हो गए . एरिअर्स को लेकर कई घरवाली से लेकर सभी अपने अपने खर्चे के बजट बनाने में तन मन से जुट गए है . कोई घरवाली के लिए जेवर तो कई नैनो कार की फिराक में है . बाकि तो बल्ले बल्ले है पर काम करने के दो घंटे और बढ़ा दिए गए है उसी को लेकर कईओ के माथे पर पसीने की बूंदे छलकने लगी है .

जब अपने कार्यालयीन सहकर्मियो से कार्य की समयावधि बढाये जाने की चर्चा करते है तो बड़े बाबू पान की पीक थूकते हुए बोलते है कि बड्डा चिंता करने की कोई बात नही है .इससे फर्क नही पड़ता है . बस समय पर खेलते कूदते हुए कार्यालय में आओ साहब को अपना धूधना के दर्शन कराओ और नमस्ते इस तरह से करो कि साहब को तुम्हारे कार्य पर उपस्थित हो जाने का एहसास हो कि हम आ गए है .

फ़िर उसके बाद फ़िर मौजा मौजा . केटीन जाओ . कलियो की नजाकत देखो जिससे आँखों को शान्ति का शीतल एहसास हो . पहले दो धंटे केन्टीन में बैठते थे तो अब तीन घंटे बैठो . अब तुम लोग समझ गए होगे . बस अपने समय पर आ जाओ . इसी समय बड़े बाबू को साहब का बुलावा आ गया . बड़े बाबू जाते जाते बोले हाँ "जितनी देर बैठोगे उतनी जेबे भी तो गरम होगी ". कार्यालय के फर्श पर फ़िर पान की पिचकारी छोडी और हंसते हुए साहब के पास चले गए .

रिमार्क- बड़े बाबू बुरा न मानना ये तो कलम की भावना है .

महेंद्र मिश्रा जबलपुर.

माँ नर्मदा प्रसंग : श्री नंदिकेश्वर तीर्थ की कहानी

कणिका नाम की नगरी में एक ब्रामण रहता था जो वृध्धावस्था में अपने घर की जिम्मेदारी अपने पुत्र सम्वाद को सौप कर काशी चला गया और कुछ समय के पश्चात उसकी मृत्यु हो गई . थोड़े समय के बाद उसकी माँ बीमार हो गई . मृत्यु के पूर्व उसकी माँ ने अपने पुत्र संवाद से अनुरोध किया कि मृत्यु के उपरांत मेरी अस्थियाँ काशी ले जाकर गंगा में विसर्जित कर देना . अपनी माँ की अन्तिम इच्छा पूरी करने के लिए संवाद अपनी माँ की अस्थियाँ काशी ले गया और वहां वह एक पंडा के घर रुक गया . पंडा जी ने उसे गौशाला में ठहराया .

पंडा जी गाय का दूध दुह रहे थे . गाय का बछडा दूध पीने को आतुर हो रहा था . बछडा जोर से रस्सी खींचकर गाय का दूध पीने लगा इसी खीचातानी में पंडा के हाथ का दूध गिर गया और सब जगह फ़ैल गया और पंडा के पैरो में भी चोट आ गई और क्रोध में उन्होंने बछडे की खूब पिटाई की और वहां से बडबड़ा कर चल दिए . बछडे की पिटाई होती देख गाय से रहा नही गया वह जोर जोर से रोने लगी . गाय बछडे देते हुए बोली की तेरी पिटाई का बदला मै पंडा जी की पिटाई कर लूंगी .

बछडे ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा कि माँ मेरे लिए आप बदले में पंडा को न मारे और ब्रम्ह हत्या जैसा जधन्य अपराध न करे . अपना जीवन और ख़राब और हो जावेगा . पंडा जी अपने स्वामी है आज उन्होंने मुझे मारा है कल वे मुझे प्यार भी करेंगे . हे माँ आप उन्हें क्षमा कर दें . गाय ने कहा तू ब्रम्ह हत्या कि चिता न कर माँ नर्मदा का एक तीर्थ नंदिकेश्वर ऐसा है जहाँ स्नान ध्यान आदि करने से ब्रम्ह हत्या जैसे पापो से मुक्ति मिल जाती है यह सब सुनकर बछडा चुपचाप हो गया .

शाम को जैसे ही पंडा जी गौशाला में दाखिल हुए उसी समय गाय ने रस्सी तोड़कर अपने पीने सींगो से पंडा जी पर आक्रमण कर दिया और पंडा को मार डाला और तुंरत वह काशी से नंदिकेश्वर मन्दिर की ओर भागी . यह सब सम्वाद देख सुन रहा था वह भी गाय के पीछे पीछे भागा . कुछ दिन बाद गाय ने नंदिकेश्वर तीर्थ पहुंचकर उसमे डुबकी लगाई . सबके देखते ही देखते ही उसका श्याम वर्ण शरीर पहले की तरह सफ़ेद हो गया . सम्वाद ने नंदिकेश्वर तीर्थ का महत्त्व देखकर जानकर नंदिकेश्वर तीर्थ को नतमस्तक होकर प्रणाम किया ओर जोर जोर से नंदिकेश्वर तीर्थ के जय के नारे लगाये .

हर हर महादेव नर्मदे हर