महर्षि भृगु जी का आश्रम भृगुकच्छ जिसे बर्तमान में भडोच के नाम से पुकारा जाता है . कहा जाता है पूर्व में माँ नर्मदा अंकलेश्वर होकर जाती थी . स्नान करने के लिए महर्षि भृगु जी को ५० मील दूर अंकलेश्वर से नर्मदा जल लाना पड़ता था . उनके शिष्यों ने इतने दूर से जल लाने में कठिनाई का अनुभव किया . शिष्यों की समस्या का निराकरण करने के ध्येय से अपने शिष्यों को महर्षि भृगु ने बुलाया और कहा कि आप लोग मेरी लंगोटी लेकर अंकलेश्वर जाए और इसे नर्मदा जल में धोकर लगोटी को एक रस्सी में बांधकर वगैर पीछे देखे मेरे आश्रम में लाये और जब मै कहूँ तब पीछे मुड़कर देखना तो तुम्हे माँ नर्मदा का जल दिखाई देगा . यदि आप लोगो ने पीछे मुड़कर देखा तो सब काम बिगड़ जावेंगे .
अपने गुरु की आज्ञा पाकर सब शिष्य हंशी खुशी अंकलेश्वर गए और नर्मदा जल में लगोटी को धोया और लंगोटी को रस्सी में बांधकर वगैर पीछे मुड़े बिना आश्रम तक लाये और गुरु जी को आवाज दी . महर्षि भृगु जी ने अपनी कुटिया से बाहर आकर अपने शिष्यों को पीछे मुड़कर माँ नर्मदा के दर्शन करने की आज्ञा दी . जब शिष्यों ने पीछे मुड़कर देखा तो अथाह जल में लंगोटी तैरते हुए देखा तो शिष्यों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा . सबने सामूहिक रूप से माँ नर्मदा का पूजन अर्चन किया और माँ नर्मदा के जयकारे के जोर जोर से नारे लगाये .
जब से आजतक माँ नर्मदा भडोच से होकर ही आगे समुद्र तक जाती है .
जय नर्मदे माँ.
5 टिप्पणियां:
रोचक है यह श्रृंखला
महेन्दर जी बहुत ही धन्यवाद अच्छी जानकारी देने के लिये.
Priya panditjee, pichhle ek mah se Poona main tha aur vyast hone ke karan blog jagat se door raha. Is beech maloom hua ke samaychakra ke saath kuchh durghatna hui. Dukh hua. Khair ab Nirantar hai aur rahega. Bakhoob hain maa Narmada aur aapka un par nirantar likhna. Fareed yane Shershah Soori kee yah baat peshe nazar hai ke "Ilm (gyan) kaamyabi kee manzil ka pahla qadam hai". Hum sab milkar use hee to ek doosre ko baant rahe hain. Dekhiye ek din sab ke sab kamyaab honge. Aapka apna--
बहुत बढ़िया जानकारी, आभार!
जयते-जयते मां नर्मदे....
जयते-जयते मां नर्मदे...
जयते-जयते मां नर्मदे..
Mishra g
badhai
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