27.7.09

फिर से अपने गाँवो को स्वर्ग बनायेंगे

फिर से अपने गाँवो को स्वर्ग बनायेंगे
अपने अन्दर सोये देवत्व को जगायेंगे.

गाँवो की गलियां क्यों गन्दी रहने देंगे
गंदगी नरक जैसी अब क्यों रहने देंगे.

सहयोग,श्रम से हम यह नरक हटायेंगे
रहने देंगे बाकी हम मन का मैल नहीं.

अब भेदभाव का हम खेलेंगे खेल नहीं
सब भाई भाई है सब मिलकर गायेंगे.

देवो जैसा होगा चिंतन व्यवहार चलन
फिर तो सबके सुख दुःख बाँट जायेंगे.

शोषण-उत्पीडन फिर नाम नहीं होगा
फिर पीड़ा -पतन का नाम नहीं होगा
सोने की चिडिया हम फिर कहलायेंगे.

साभार-युग निर्माण हरिद्वार से.

24.7.09

टंकी पे चढी : इस टंकी में है बड़े बड़े गुण ... दुनिया रंग रंगीली


कभी शोले फिल्म देखी थी जिसमे वीरू बसंती को पटाने मनाने के लिए टंकी पर चढ़ जाता है और उसे टंकी से उतरने के लिए बसंती हाँ कर देती है और इस फिल्म की तर्ज पर आज एक समाचार पत्र में पढ़ा की एक प्रेमिका अपने शादीशुदा प्रेमी को मनाने के लिए जाकर टंकी पर चढ़ गई और टंकी पे चढ़कर जोर जोर से अपने प्रेमी का नाम पुकारने लगी . मजमा जमा हो गया .

शादीशुदा प्रेमी मर्द अपनी पत्नी बच्चो के साथ टंकी के पास आया और उनकी उपस्थिति में वह अपनी प्रेमिका के पास खुद टंकी पर चढ़कर गया और सबकी उपस्थिति में टंकी पर ही उसने अपनी प्रेमिका की मांग भरी और उसे टंकी पर से उतार कर मरने से बचा दिया . चूंकि टंकी पर चढ़ने वाली बालिग हो गई थी इसीलिए पुलिस ने शादी के सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि उस शादीशुदा मर्द उर्फ़ आज का वीरू को १५१ की धारा के तहत हवालात की राह जरुर दिखा दी .

यह लगता है कि टंकी पर अपनी मांग को लेकर चढ़ जाओ भाई लोग मना कर टंकी से उतार ही लेंगे. आगे आने वाला समय बताएगा कि टंकी पर चढ़ने उतरने के धंधे से क्या क्या ..... है. अपनी बात मनमाने के लिए समय बदलने के साथ लोगो के विचार और तरीके बदल गए है .और आज के समय में ये सब तरीके हास्यापद लगते है और लोगो के मनोरंजन का कारण बन जाते है .

22.7.09

एक हितोपदेश कहानी " आपस में कभी बैर न करो ?

सुन्द और उपसुन्द नाम के दो महाबली राक्षस थे उन्हें अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था . वे तीनो लोको का राजा बनना चाहते थे इसीलिए उन्होंने भगवान शंकर की घोर तपस्या की . भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्होंने राक्षसों से वर मांगने को कहा . राक्षसों ने भगवान शंकर की पत्नी को वर में मांग लिया . भगवान यह सुनकर आगबबूला हो गए फिर भी वचनवद्ध थे . वचन के अनुसार उन्हें वर देना ही था तो उन्होंने अपनी सुन्दर पार्वती राक्षसों को दे दी .

सुन्दर पार्वती को पाकर उन राक्षसों की बुद्धि मारी गई और वे पार्वती को लेकर आपस में झगड़ पड़े. राक्षसों को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से भगवान शंकर ने एक ब्रामण का रूप रख लिया और उनके पास पहुँच गए . राक्षसों ने भगवान शंकर को अपना बिचोलिया बना लिया. दोनों भाई अपने तप और बल की श्रेष्ठता को लेकर उतावले थे .

ब्रामण ने समझाया तुम लोग आपस में द्वंद युद्ध कर लो जो बलवान होगा पता लग जावेगा . दोनों राक्षसों ने गदा उठा ली और आपस में भिड गए और आपस में लड़ भिड़कर मारे गए . भगवान भोलेनाथ ने अपना रूप प्रगट किया तो पार्वती जी खुश हो गई . शंकर जी ने पार्वती जी की और देखा तो पार्वती जी ने मुंह फेर लिया . शंकर जी ने पार्वती जी से कहा की गलती मेरी थी जो मैंने उन्हें बिना सोचे समझे वर दे दिया .

शिक्षा इस कहानी से यह मिलती है की हमें आपस में कलह नहीं करना चाहिए.और उड़नतश्तरी जी की टीप के अनुसार यह शिक्षा मिलती है वगैर सोचे समझे हमें वर नहीं देना चाहिए.

19.7.09

चुटकुले जो आपको शायद हँसा दें

ताऊ - दुनिया का आकार कैसा है .....?
रामप्यारी चुप रही
ताऊ ने रामप्यारी की स्मृति को उभारने के विचार से खुद ही पूछा "गोल"
रामप्यारी बोल पड़ी ..... नहीं
ताऊ - तो क्या चपटी है ....?
रामप्यारी ने फिर से कहा - नहीं
ताऊ - " न गोल है और न चपटी है तो आखिर ये पृथ्वी कैसी है......?
रामप्यारी ने सरलतापूर्वक कहा - महाताऊ बाबा कहते है की दुनिया टेढ़ी है .

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रामप्यारी - मै भी तालाब में कूद कर तैरने लगूँ
रामप्यारी की मम्मी - नहीं तुम डूब जाओगी
रामप्यारी - लेकिन महाताऊ तो तैर रहे है
ताऊ - अरी तू जानती नहीं है इनका बीमा हो चुका है .

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