सुन्द और उपसुन्द नाम के दो महाबली राक्षस थे उन्हें अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था . वे तीनो लोको का राजा बनना चाहते थे इसीलिए उन्होंने भगवान शंकर की घोर तपस्या की . भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्होंने राक्षसों से वर मांगने को कहा . राक्षसों ने भगवान शंकर की पत्नी को वर में मांग लिया . भगवान यह सुनकर आगबबूला हो गए फिर भी वचनवद्ध थे . वचन के अनुसार उन्हें वर देना ही था तो उन्होंने अपनी सुन्दर पार्वती राक्षसों को दे दी .
सुन्दर पार्वती को पाकर उन राक्षसों की बुद्धि मारी गई और वे पार्वती को लेकर आपस में झगड़ पड़े. राक्षसों को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से भगवान शंकर ने एक ब्रामण का रूप रख लिया और उनके पास पहुँच गए . राक्षसों ने भगवान शंकर को अपना बिचोलिया बना लिया. दोनों भाई अपने तप और बल की श्रेष्ठता को लेकर उतावले थे .
ब्रामण ने समझाया तुम लोग आपस में द्वंद युद्ध कर लो जो बलवान होगा पता लग जावेगा . दोनों राक्षसों ने गदा उठा ली और आपस में भिड गए और आपस में लड़ भिड़कर मारे गए . भगवान भोलेनाथ ने अपना रूप प्रगट किया तो पार्वती जी खुश हो गई . शंकर जी ने पार्वती जी की और देखा तो पार्वती जी ने मुंह फेर लिया . शंकर जी ने पार्वती जी से कहा की गलती मेरी थी जो मैंने उन्हें बिना सोचे समझे वर दे दिया .
शिक्षा इस कहानी से यह मिलती है की हमें आपस में कलह नहीं करना चाहिए.और उड़नतश्तरी जी की टीप के अनुसार यह शिक्षा मिलती है वगैर सोचे समझे हमें वर नहीं देना चाहिए.
सुन्दर पार्वती को पाकर उन राक्षसों की बुद्धि मारी गई और वे पार्वती को लेकर आपस में झगड़ पड़े. राक्षसों को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से भगवान शंकर ने एक ब्रामण का रूप रख लिया और उनके पास पहुँच गए . राक्षसों ने भगवान शंकर को अपना बिचोलिया बना लिया. दोनों भाई अपने तप और बल की श्रेष्ठता को लेकर उतावले थे .
ब्रामण ने समझाया तुम लोग आपस में द्वंद युद्ध कर लो जो बलवान होगा पता लग जावेगा . दोनों राक्षसों ने गदा उठा ली और आपस में भिड गए और आपस में लड़ भिड़कर मारे गए . भगवान भोलेनाथ ने अपना रूप प्रगट किया तो पार्वती जी खुश हो गई . शंकर जी ने पार्वती जी की और देखा तो पार्वती जी ने मुंह फेर लिया . शंकर जी ने पार्वती जी से कहा की गलती मेरी थी जो मैंने उन्हें बिना सोचे समझे वर दे दिया .
शिक्षा इस कहानी से यह मिलती है की हमें आपस में कलह नहीं करना चाहिए.और उड़नतश्तरी जी की टीप के अनुसार यह शिक्षा मिलती है वगैर सोचे समझे हमें वर नहीं देना चाहिए.
10 टिप्पणियां:
मुख्य शिक्षा:
बिना सोचे वर नहीं देना चाहिये. :)
sundar kahaanee mahender bhai
asli saar to sameer jee ne bata hee diya...
शिव जी का कोई भरोसा नहीं । यूँ ही सब कुछ बिना सोचे समझे किये जाते हैं । राक्षसों को वर देने में तो उनका कोई सानी नहीं । वो तो राक्षस थोड़े मूढ़ मति हुआ करते थे अन्यथा शिव जी का क्या हाल होता, पता नहीं ।
sahi baat hai
सही है.
बहुत ज्ञानदायक शिक्षा.
रामराम.
satya wachan huzur.....
arsh
bilkul ...
ye to prerak prasang tha...
To Bacchon! humein is kahani se kya shiksha milti hai?
blog main kabhi kabjhi aata hoon aur poora padh ke hi chain milta hia...
//har ek post pe alag alag comment tipiya diya hai...
...aabhar!!
हैं मां पार्वती ,भोले भंडारी को तनिक दुनिया-दारी सिखलाओ ज़रा ....................
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