29.10.09

माइक्रो पोस्ट : सत् प्रेरणा और दुष्प्रवृत्तियाँ प्रत्येक मनुष्य के अंतःकरण में छिपी रहती है...

माइक्रो पोस्ट : सत् प्रेरणा प्रत्येक मनुष्य के अंतःकरण में छिपी रहती है और दुष्प्रवृत्तियाँ भी उसी के अन्दर होती है . अब यह उसकी अपनी योग्यता बुद्धीमत्ता और विवेक पर निर्भर करता है की वह अपना मत देकर जिसे चाहे उसे विजयी बना दे .

26.10.09

मौजू के जोग मौज करो......



रघुनाथ नाई अपने मित्र से - मेरी पत्नी मेरा बड़ा रौब मानती है मै उसपे खूब रौब झाड़ता हूँ . जो काम मै उससे करने को कहता हूँ वो तुंरत कर देती है . कल रात ग्यारह बजे मैंने पत्नी से कहा पानीगरम करके ले आओ वो भागवान तुंरत पानी गरम करके ले आई .
रघुनाथ का मित्र - आपकी पत्नी तो बड़ी अच्छी है पर आपने उससे क्या कहा ?
रघुनाथ नाई - हाँ मैंने कहा ठंडे पानी से मै बर्तन नहीं धो सकता .


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ताउजी महाताउश्री - तुम्हारे पास मै आता कैसे ? तुम्हारा कोई पत्र नहीं मिला जिसमे तुम्हारा कोई पता होता .
महाताउश्री ताउजी से - मगर मैंने तो पत्र डाला था उसमे ये भी लिख दिया था की पत्र मिले या न मिले तुम जरुर आ जाना .
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भिखारी - बाबू एक अंधे को लाचार को दस रुपये दे दो
राहगीर - सूरदास तो टोटली अंधे थे मगर तुम्हारी एक आंख तो खुली है .
भिखारी - तो बाबा पॉँच ही रुपये दे दो .
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जब तीन बुलाए और तेरह आ जाए तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर - तब खुद नौ दो ग्यारह हो जाना चहिये .
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ओह काँफी समय हो गया
तुम्हे हिंदी बोलना भी नहीं आता यह बोलो काँफी का समय हो गया .
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एक वर्कशाप में एक महिला ढीले ढाले कपडे पहिनाकर गई . वर्कशाप में एक कामगार ने उस महिला से कहा - मैडम इस वर्कशाप में ढीले ढले कपडे पहिनाकर आना माना है .ढीले कपडो का मशीनों से फंस जाने का डर रहता है .
महिला ने उत्तर दिया - यदि मै चुस्त कपडे पहिनकर वर्क शाप में आई तो मशीनों में कामगारों के फंस जाने का डर रहेगा.


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एक नन्हे बालक ने गर्भवती महिला का पेट छूकर कहा - यह क्या है और इसके अन्दर क्या है ?
महिला ने प्यार से बालक के सर पर हाथ फेरते हुए कहा - यह पेट है और इसके अन्दर मेरा प्यारा बेटा है जिसको मै बहुत प्यार करती हूँ ..
नन्हे बालक ने आश्चर्य से आंटी से कहा - ओह अगर आप इसे इतना प्यार करती है तो फिर आपने इसे खा क्यों लिया है .
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23.10.09

दो सौ वी पोस्ट : सज्जनता नम्रता उदारता सेवा आदि सदगुण और मानवीय प्रखरता

सभी ब्लॉगर भाई बहिनों के द्वारा मेरा ब्लाग लेखन में लगातार उत्साहवर्धन और निरन्तर हौसलाफजाई करते रहने से आज मुझे " निरन्तर " ब्लॉग में दो सौ वी पोस्ट पूरा करने का मौका मिला है जिसके लिए मै आप सभी का आभारी हूँ . आज की दो सौ वी पोस्ट आचार्य श्रीराम शर्मा जी को समर्पित है ..

***** सज्जनता नम्रता उदारता सेवा आदि सदगुणों की जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है पर साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए की प्रखरता के बिना ये विशेषताए भी अपनी उपयोगिता खो बैठती है और लोग सज्जन को मूर्ख दब्बू चापलूस साहसहीन भोला एवं दयनीय समझने लगते है . बहुत बार ऐसा भी होता है की डरपोक कायर संकोची पुरुषार्थ हीन व्यक्ति सज्जनता का आवरण ओढ़कर अपने को उदार या अध्यात्मवादी सिद्ध करने का प्रयत्न करते है . डरपोकपन को साहसहीनता को दयालुता क्षमाशीलता संतोष वृद्धि की आड़ में छिपाना कितना उपहासास्पद होता है और उस भ्रम में रहने वाला कितने ही घाटे में रहता है . यह सर्वविदित है . लोग उसे बेतरह उगते और आयेदिन सताते है . इस स्थिति को भलमनसाहत का दंड ईश्वर की उपेक्षा धर्म की दुर्बलता दर्म की दुर्बलता आदि कहा जाता है जबकि वस्तुत वह प्रखरता की कमी के दुष्परिणाम हैं *******