7.5.20

कर्तव्यपालन ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म और संपदा है ...

स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष कर रहे महाराणा प्रताप जंगलों और पहाड़ों में अपने छोटे से परिवार के साथ इधर उधर मारे मारे फिर रहे थे । एक दिन ऐसा आया कि उनके पास खाने की सामग्री भी नहीं बची थी । एक दिन पास में जो अनाज बचा था जिसे उनकी धर्म पत्नी ने पीसकर रोटियां बनाई उसे वनबिलाव उठा कर ले गया और उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था । भूख प्यास से व्याकुल होकर उनकी छोटी बच्ची रोने लगी । इस स्थिति को देखकर महाराणा प्रताप का साहस टूटने लगा  और वे अत्यधिक परेशान हो गए और उनके मन में एक विचार आया क्यों न शत्रु से संधि कर ली जाए और सुख चैन की जिंदगी गुजर बसर करें ।

उनका साहस और मनोबल टूटते देख कर उनकी धर्मपत्नी ने महाराणा प्रततप को समझाया कि हे नाथ कर्तव्यपालन  मानव जीवन की सबसे बड़ी संपदा है इसे किसी भी तरह हर हाल में किसी भी मूल्य पर छोड़ना नहीं चाहिए । सच्चे मनुष्य न आघातों से और न कष्ट होने पर घबराते नहीं हैं और उन्हें कर्तव्यपालन करने का ध्यान होता है । हे नाथ आप इस विपरीत परिस्थति में बिलकुल न घबराएं । जीवन में सुख और दुख के अनेकों अवसर आते हैं फिर आप इस तरह की बात क्यों कर रहे हैं ।

धर्मपत्नी की बात सुनकर महाराणा प्रताप का उदास चेहरा फिर से चमकने लगा और उन्होंने अपनी पत्नी की सलाह मान ली ।  महाराणा प्रताप ने पत्नी से कहा कि तुच्छ जीव भी सुविधा का जीवन जी लेते हैं पर कर्तव्य की कसौटी पर महान व्यक्ति  ही कैसे जाते हैं । परीक्षा की इस घड़ी में हमें भी खोटा नहीं खरा उतरना होगा । महाराणा प्रताप जंगल में गए और खाने के लिए दूसरा आहार खोज कर लाएं । इस संकट की घड़ी में बाद में भाभाशाह सामने आये और उन्होंने मुगलों से युद्ध करने के लिए काफी धन महाराणा प्रताप को दिया । महाराणा प्रताप दुगुने उत्साह के साथ फिर अपनी सेना को जुटाने में लग गए।    

6.5.20

कोरोना महामारी को लेकर अधिक दिन लॉक डाउन बढ़ने की अब उम्मीद न करें ...

कोरोना वायरस से सारी दुनिया  परेशान है और इस महामारी ने सारी दुनिया  में अपने पैर पसार लिए हैं और दिनोंदिन यह महामारी बढ़ती ही जा रही है । दुनिया के बड़े बड़े देशों ने इस महामारी के आगे अपने घुटने टेक दिए हैं और लाखों लोग काल के गाल में समां गए हैं और लाखों लोग कोरोना वायरस से  संक्रमित हैं । अपने देश में करीब 44 हजार व्यक्ति संक्रमित हो गए हैं और इनमें से करीब 1500 लोग ही स्वस्थ हो पाये हैं तथा हजारों व्यक्ति अभी भी अस्वस्थ हैं और उनका इलाज चल रहा है ।

सरकार अब इस स्थिति में नहीं है कि अधिक समय तक  लॉक डाउन की समयावधि बढ़ायें । अधिक समय तक लॉक डाउन बढ़ाने के कारण देश की आर्थिक स्थिति चरमरा रही हैं और देश का अर्थ तंत्र कमजोर हो रहा है । इस महामारी के चलते मार्च 2020 से लेकर अभी तक सरकार के द्धारा इस महामारी से बचने के उपाय आप सभी को समझा दिये गए हैं । जैसे भीड़ में एकत्रित न होना, बार बार हाथ धोना, गर्म पानी के साथ हल्दी का सेवन करना, घर को ऑफिस को सेनिटाइज करना, घर के बाहर जाने पर मास्क पहिनना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना, इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए काढ़े का उपयोग करना शामिल  है ।

अब जिम्मेदारी आपकी बनती है कि आप देशहित में उपरोक्तों का पालन करें और खुद अपने आपको स्वस्थ रखें ।  बीमार होने के बाद और देश और दुनिया की स्थिति को आप देख रहे हैं । सरकार हमेशा आपकी चौकीदारी नहीं करेगी । सरकार लंबे समय तक लॉक डाउन की सीमा  नहीं बढ़ायेगी और अधिक सख्ती नहीं करेगी ।  आप खुद समझदार हैं अपनी दिनचर्या अपने  दिये गए सुझावों के अनुसार बदल लें और स्वस्थ और प्रसन्न रहें । देश के विकास और  देश के अर्थतंत्र को मजबूत करने में जुट जाएँ ।

 जय हिन्द

लेख - महेन्द्र मिश्रा, जबलपुर  

5.5.20

मजेदार प्रसंग - मजेदार प्रसंग - वृंदावन के बंदर

मजेदार प्रसंग -  मैं वृंदावन हमेशा जाता रहता हूँ । एक बार यमुना तट गया था जहां पर श्री कृष्ण जी ने शेषनाग का मर्दन किया था और पास में कदंब का पेड़ लगा है । पेड़ की छाया में एक मंदिर है जहां श्री कृष्ण जी शेषनाग का मर्दन करते हुए एक प्रतिमा स्थापित है । मंदिर के दरवाजे में पंडित जी बैठे थे ।

मंदिर के बाहर हमेशा की तरह मैंने अपनी चप्पल उतारी और मंदिर के अंदर दर्शन करने प्रवेश किया था कि इतने में कदंब पेड़ के ऊपर से दो बंदर आये और मेरी चप्पल उठा कर पेड़ में चढ़ गये । इधर उधर वे बंदर उछल कूंद करते रहें ।


काफी देर मैँ खड़ा रहा फिर मैंने पंडित जी से कहा यदि मैं मंदिर न आता तो मेरी चप्पल न जाती । पंडित जी ने कहा मैं आपकी चप्पल आपको वापिस दिला दूंगा सामने एक व्यक्ति खड़ा है उसको बीस रुपये दे देना ।

मैनें कहा ठीक है बीस रुपये दे दूंगा । पंडित जी ने उस व्यक्ति को बुलाया और उससे कहा इनकी चप्पल लेकर आओ तुमको रुपये मिल जायेंगें ।


वे दोनों बंदर एक डाल से दूसरी डाल पर उछल कूंद करते रहें कभी वे मंदिर की छत पर चढ़ जाते । मुझे आश्चर्य हो रहा था । वह आदमी बेसन के छोटे लड्डू लेकर आया और जहां बंदर बैठे थे उनकी ओर वह लड्डू उछाल कर ऊपर फेंकने लगा । काफी देर बाद एक बंदर ने लड्डू लपकने के चक्कर में एक चप्पल छोड़ दी ।

नीचे जैसे ही चप्पल नीचे गिरी उस व्यक्ति ने तुरंत मुझे चप्पल उठा कर दे दी और कहा कि आप तुरंत चप्पल पहिन लें नहीं तो बंदर फिर से उठा कर ले जाएगा । मैंने चप्पल पहिन ली । दूसरी चप्पल के लिए वह आदमी फिर से दूसरे बंदर की ओर फिर से लड्डू उछालने लगा । लड्डू लपकने के चक्कर में दूसरे बंदर से चप्पल छूट गई और मुझे उस व्यक्ति ने दूसरी चप्पल वापिस लेकर दे दी ।

करीब आधा घंटे तक यह हंगामा देखता रहा और सोच लिया कि अब यहां अकेला नहीं आऊंगा । मेरा मनोरंजन भी काफी हुआ । आप कभी वहां जाए तो संभल कर जाएं नहीं तो जूते चप्पल बंदर उठा कर लें जायेगें । यह मजेदार प्रसंग हमेशा याद रहेगा ।

जय श्री राधे कृष्णा हरि ॐ ।

अपने बच्चों को संस्कारवान बनायें ...

बच्चों की प्रथम पाठशाला परिवार ही होता है और परिवार से बच्चों को अच्छे और बुरे संस्कार मिलते हैं । बच्चों को परिवार का वातावरण उन्हें प्रभावित करता हैं वे जिस वातावरण में रहते हैं उसी के अनुरूप ढल जाते हैं ।   एक बार एक माँ अपने बच्चे को बुरी तरह से पीट रही थी ।  पड़ोस की एक महिला ने देखा कि वह महिला अपने छोटे से बच्चों को पीट रही है यह देख कर उससे रहा न गया और उसने दौड़कर बच्चे को बचा लिया फिर उसने बच्चे की माँ से पूछा कि  इस बच्चे को तुम बुरी तरह से क्यों पीट रही हो । बच्चे की मां ने पड़ोस की महिला को बताया की आज इसने चोरी की है और मंदिर की दानपेटी से इसने रुपये पैसे चुराए है  और बच्चे की इस हरकत से उसे गुस्सा आ गया है  इसीलिए वह अपने बच्चे को पीट रही है । बच्चे से पड़ोस की महिला ने बड़े प्यार से पूछा और कहा अरे तुम तो बहुत अच्छे बच्चे हो गंदे बच्चे चोरी करते हैं ।

बच्चे ने पडोसी महिला को बताया कि मेरी मां भी चोरी करती है  और मेरी माँ प्रतिदिन  मामा के यहाँ जो दूध आता है उसमें से आधा दूध निकाल लेती हैं और दूध में आधा पानी मिला देती है यह चोरी नहीं है तो क्या  है  और मुझ से कहती है कि ये सब मामा को नहीं बताना । बच्चे ने पड़ोसी महिला को बताया कि उसने पहली बार मंदिर की दानपेटी से रुपये पैसों की चोरी की है । यह सब सुनकर बच्चे की मां हतप्रद हो गई और उससे फिर कुछ कहते नहीं बन पड़ा ।

यदि हम अच्छे संस्कार और अच्छे गुण अपने बच्चों को देना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें और परिवार जनों को  अच्छे गुण और संस्कार खुद धारण करना चाहिए । आपके अच्छे गुण और अच्छे  संस्कार को देख कर बच्चे अच्छे संस्कार और अच्छे गुण ग्रहण करते हैं । परिवार ही बच्चों की प्राथमिक पाठशाला है जहाँ से बच्चे अच्छे और बुरे संस्कार ग्रहण करते हैं ।  आप संस्कारवान बनें और अपने बच्चों को भी संस्कारवान बनाएं जिससे और समाज भी संस्कारवान बन सकें ।  

4.5.20

लगातार संघर्ष करने से सफलता अर्जित होती है ....

महाभारत में भीषण युद्ध चल रहा था । युद्द भूमि में गुरु और शिष्य आमने सामने थे । दुर्योधन की तरफ से द्रोणाचार्य और पांडवों की ओर से अर्जुन युध्द के मैदान में खड़े थे । अर्जुन को द्रोणाचार्य ने धनुष विद्या सिखाई थी और द्रोणाचार्य अर्जुन के समक्ष युध्द के मैदान में असहाय दिख रहे थे ।

कौरवों ने अपने गुरु द्रोणाचार्य से कहा - आप तो अर्जुन से युद्द हार रहे हैं और आपका शिष्य जीत रहा है तो द्रोणाचार्य ने कहा - मुझे राजसुख भोगते हुए कई वर्ष गुजर गए हैं और अर्जुन जीवन भर लगातार संघर्ष करता रहा है और निरंतर अनेकों कठिनाइयों से जूझता रहा है । जो राजसुख भोगता है और जिसे हर तरह की सुविधा मिलती रहती है वह अपनी शक्ति और सामर्थ्य खो बैठता है और लगातार संघर्ष करने वाले को निरंतर शक्ति और नित नई ऊर्जा प्राप्त होती रहती है ।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि कठिनाइयों के कीचड में ही सफलता का कमल खिलता है इसी तरह का हाल अर्जुन का भी है । जिसका जीवन प्रतिरोधों और चुनौतियों से घिरा रहता है वह लगातार प्रखर होता जाता है । जिस दिन व्यक्ति की प्रतिकूलताएँ समाप्त हो जाती हैं और वह प्रमाद ग्रस्त होने लगता है । महर्षि अरविंद जी कहते थे कि दुःख भगवान के हाथों का हथौड़ा है उसी के माध्यम से मनुष्य का जीवन संवरता है । जितना आप जीवन में लगातार संघर्ष करेंगें उतनी ही ज्यादा आपको सफलता मिलेगी इसमें कोई संदेह नहीं है ।