जब दो गुटों में झगडा हो जाता है लोग एक दूसरे को मारने और मारने के लिए एक दूसरे पर पत्थरो की बौछार करते है और लोग घायल हो जाते है खून-खच्चर हो जाते है पर छिंदवाडा जिले से तकरीबन ८० किलोमीटर दूर गोटमार मेले का आयोजन परम्परा का निर्वाह करने के किया जाता है जहाँ लोग समूह में एक दूसरे पर पत्थर बरसाते है और यह मेला विश्व में अपने तरह का अनोखा माना जाता है .यह आयोजन ठीक पोला के दूसरे दिन आयोजित किया जाता है . माँ चंडी के दरबार में परम्परा का निर्वाह करने के लिए सैकडो लोग जाम नदी के तट पर इकठ्ठा होंगे और एक दूसरे पर पत्थरो से हमला करते है लोग घायल होते है और कई जाने अतिउत्साह में जाती है और यह आयोजन प्रशासन की देखरेख में आयोजित किया जाता है हालाकि प्रशासन और शासन द्वारा यह आयोजन बंद कराने के अनेको प्रयास किए गए परन्तु परम्परा के नाम पर इस आयोजन को रोक पाने में प्रशासन और शासन को असफलता ही हाथ लगी है .
यह आयोजन कब से शुरू किया गया है इसकी जानकारी किसी को नही है . लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाकर माँ चंडी की अनोखी पूजा करते है . यहाँ के लोगो का यह मानना है कि भलाई जान चली जाए पर वे इस परम्परा का निर्वाह जरुर करेंगे . इस मेले के सम्बन्ध में कई कहानियाँ सुनी जाती है कि इस खूनी खेल शुरू होने का कारण क्या है यश कोई नही जानता है . सैकडो वर्षो से सावरगांव और पाढुनां के निवासी जाम नदी के तट पर इकठ्ठा होते है और पलाश के पेड़ को निशाना सड़ते हुए एक दूसरे पर पत्थरो से हमला करते है . इस खूनी पत्थरबाजी को देखने के लिए महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश के अलावा विदेश से लोग यहाँ आते है .
इस मेले के सम्बन्ध में यह भी माना जाता है कि सावरगांव की लड़की से पदुराना के किसी युवक का प्रेम हो गया और इस युवक ने लड़की को लेकर भागने का प्रयास किया पर यह बात सावरगांव के लोगो को पता लग गई . युवक जैसे ही युवती को लेकर नदी के तट पर पहुँचा तो सावरगांव गाँव के लोगो ने युवक पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया और उस युवक पर हमला होते देख उसके गाँव वालो ने दूसरे गाँव वालो पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया . बात यहाँ तक बिगड़ गई कि लोग खून खच्चर हो गए और सैकडो लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी और इन प्रेमियो की याद में यह खूनी खेल खेला जाता है जबकि इन गाँव वालो के बीच आपसी दुश्मनी नही है .
एक कहानी और जुड़ी है नागपुर में भौसले महाराज का राज्य शासन हुआ करता था .भौसले महाराज ने दलपतशाह को शासन करने के लिए सावरगांव और पांडुरना का इलाका दिया था और बाद में दलपतशाह ने विद्रोह कर दिया . उस समय भौसले शाह महाराज शक्तिशाली शासक थे और उन्होंने इस बगावत को दबाने के लिए सेना भेजी . दलपतशाह के पास कम सेना थी पर उसके आदिवासी जांबाजों ने जाम नदी के तट पर भोसले की सेना पर पत्थरो से हमला कर उसकी सेना को भगा दिया . ऐसी किवदंतियो को लेकर इस गोटमार खूनी खेल का आयोजन किया जाता है . शासन और प्रशासन इस मेले को लेकर काफी सजग रहता है की किसी प्रकार की घटना घटित न हो पर फ़िर भी हजारो लोगो को अपनी जान और हाथ पैरो गवाना पड़ते है .
गोटमार मेले का समापन
कल तक जो एक दूसरे के दोस्त थे जो एक दूसरे पर जान छिड़कते थे आज वे परम्परा का निर्वाह करने के लिए एक दूसरे के दुश्मन बन गए . आज शाम तक चले भीषण खूनी पत्थरबाजी में १ व्यक्ति की मौत हो गई और करीब ४१२ व्यक्ति घायल हो गए . शाम को प्रशासन के अधिकारियो द्वारा दोनों और के गुटों की सहमति से इस खूनी पत्थरबाजी को बंद कराया .
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6 टिप्पणियां:
Mishra Ji, Pahli bar aapke blog dekh raha hu.n.
Achchhe lekh ke liye badhai.
अजब दुनिया ,अजब लोग .अच्छा संकलन !
वाकई इस अद्भुत संवेदी जानकारी के लिये बधाई स्वीकारें....
ये देखा करते थे पर खेला क्यों जाता है आज पता चला।
बडा अजीब त्योहार हे,
" ye kaisa ocassion hai, came to knew from your article only"
Regards
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