एक आशियाना सजाने में मेरी हस्ती मिट गई
उन्हें हालेगम सुनाने में तमाम उम्र गुजर गई
देखिये वो..एक पल में फ़िर से बेगाने हो गए
कई कई बरस लग गए उन्हें अपना बनाने में.
मेरे दिले गम पर कहकहे लगाए थे सभी ने
हमें सारे ज़माने में मुझे एक भी हमदर्द न मिला
गीत गजल.. जब मेरे अश्को पर ढल गए यारा
हमें फ़िर से उन्हें गुनगुनाने में मजा आने लगा.
कोई तो अपनी है जो मुझे अपने पास बुलाती है
यूँ बुलाती है मुझे वो मेरी प्यारी अपनी तो है
यारब उनका रहमो करम कैसे दिल से भुला दूँ
जो मुझे अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है.
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8 टिप्पणियां:
bahut sundar
ek bahut hi pyaari rachna........
महेन्द्र जी बहुत अच्छी रचना है
मुझे ये लाईन ज्यादा अच्छी लगी-
यारब उनका रहमो करम कैसे दिल से भुला दूँ
जो मुझे अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है.
महेन्द्र जी आप तो शायर बनते जा रहे है, सारे शेर बहुत ही सुन्दर
धन्यवाद
बेहतरीन!! वाह!
देखिये वो..एक पल में फ़िर से बेगाने हो गए
कई कई बरस लग गए उन्हें अपना बनाने में
" bhut khub, ek se bdh kr ek'
regards
अहा ! ख़ूब !
यारब उनका रहमो करम कैसे दिल से भुला दूँ
जो मुझे अपने आगोश में गहरी नींद सुलाती है.।
खूबसूरत पंक्तियॉं, सुन्दर गीत। बधाई।
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