14.10.08

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल

आचार्य श्रीराम गुरुदेव की पुस्तक युग निर्माण शांतिकुंज हरिद्वार पढ़ रहा था जिसमे एक बहुत ही सुंदर रचना पढ़ी जो प्रेरक संदेश देती है . मानसिक संबल आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए ऐसी कविताये प्रेरक दवा का काम करती है . प्रस्तुत कर रहा हूँ.

हम बदलेंगे युग बदलेगा यह संदेश सुनाता चल
आगे कदम बढाता चल बढाता चल बढ़ाता चल

अन्धकार का वक्ष चीरकर फूटे नव प्रकाश निर्झर
प्राण प्राण में गूंजे शाश्वत सामगान का नूतन स्वर
तुम्हे शपथ है ह्रदय ह्रदय में स्वर्णिम दीप सजाता चल
स्नेह सुमन बिखरता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

पूर्व दिशा में नूतन युग का हुआ प्रभामय सूर्य उदय
देवदूत आया धरती पर लेकर सुधा पात्र अक्षय
भर ले सुधापात्र तू अपना सबको सुधा पिलाता चल
शत शत कमल खिलाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल.

ओ नवयुग के सूत्रधार अविराम सतत बढ़ते जाओ
हिमगिरी के ऊँचे शिखरों पर स्वर्णिम केतन फहराओ
मंजिल तुझे अवश्य मिलेगी गीत विजय के गता चल
नवचेतना जगाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

रचना - आचार्य गुरुदेव.
युग निर्माण शांतिकुंज हरिद्वार.

11 टिप्‍पणियां:

makrand ने कहा…

मंजिल तुझे अवश्य मिलेगी गीत विजय के गता चल
नवचेतना जगाता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल

bahut sunder lekh

अजय कुमार झा ने कहा…

mahendra bhai,
behad prernadaayak baat sunaayee apne padh kar achha laga. dhanyavad.

विवेक सिंह ने कहा…

प्रेरक प्रसंग के लिए आभार !

रंजना ने कहा…

वाह..... सचमुच अति प्रेरक सुंदर भावपूर्ण छंद है.पढ़वाने के लिए आभार..

राज भाटिय़ा ने कहा…

महेन्दर जी सुंदर ओर प्रेरक प्रार्थना पढबने के लिये आप का धन्यवाद

सचिन मिश्रा ने कहा…

Bahut badiya, jarur bdlegein hum sab.

Vivek Gupta ने कहा…

सुंदर |

समीर यादव ने कहा…

तुम्हे शपथ है ह्रदय ह्रदय में स्वर्णिम दीप सजाता चल
स्नेह सुमन बिखरता चल तू आगे कदम बढ़ाता चल .

मिश्रा जी, प्रेरणा के लिए इन पंक्तियों कि सदैव उपयोगिता बनी रहेंगी. आपको धन्यवाद.

seema gupta ने कहा…

चटाख!" एक थप्पड़ वेटर के मुंह पर पड़ा और वह सपनों कि दुनिया से बाहर आ गया.
'very inspiring and positive creation'

regards

admin ने कहा…

प्रेरक और आस बढाने वाला गीत है। मैं गीत पंक्ति को पहले कई बार पढ चुका था, पर पूरा गीत पहली बार पढने को मिला। शुक्रिया।

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

' हम सुधरे जग सुधरा ,हम बदले युग बदला ",बीस तीस साल पहले पढा था और फ़िर दुनिया को सुधारने का जोश ठंडा पड़ गया आज तक ख़ुद को सुधारने का संघर्ष चल रहा है | " अव्वल अल्लाह नूर उपाया ,सब इक माटी के भांडे, इक नूर ते जग उपजाया कौन भले कौन मांदे "|\/ झरोखा -अन्यो नास्ति पर आगमन का आभारी हूँ ,उत्साह बढाते रहिएगा ,अभी अनगढ़ है झरोखा को गवाक्ष आपही लोगो का सहयोग बनाएगा ----
अन्योनास्ति

"कालचक्र" की
चौपाल के

"झरोखा "से

"कबीरा"