2.11.08

माइक्रो पोस्ट - सबक : दूरियां और नजदीकियाँ.

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ये दूरियां मजबूरी हो सकती है मगर इतनी भी बड़ी नही है कि बने बनाये रिश्तो को पल में तोड़ दे .वक्त गर आ जाए अगर तो सच्चे प्रेम और सच्चे रिश्तो की डोर दूरियों को भी लांघकर नजदीकियो में बदल देती है, चाहे फ़िर वह झूठा बहाना ही क्यो न हो .......

18 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

दूरियाँ नजदीकियाँ बन गईं अजब इत्तफाक है।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र जी
दूरियां अब मजबूरियां कदापि नही हैं
- विजय तिवरी किसलय

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र जी
दूरियां अब मजबूरियां कदापि नही हैं
- विजय तिवरी किसलय

Girish Kumar Billore ने कहा…

दूरियां केवल भय विद्वेष अहंकार कुंठा से होती हैं जिनते हाथों
हम मजबूर होते हैं
दूरियां मजबूरियां भी तो हैं
"चाहे फ़िर वह झूठा बहाना ही क्यो न हो ......!".
में सारी कहानी छिप है बंधू
आदमी अपने कैंकडेपन की वज़ह से भी दूर रहता
है उसे भय होता है की कहीं उसकी टांग खिचाई न हो
जाए ......
लोग तो अपने साथ कोई विशेषण जोड़ कर जीने का शौक पाल
लेतें हैं .........मैं अमुक हूँ मैं तमुक हूँ ........इस भ्रम और भ्रम को
सही साबित करने के गुन्ताड़े में दूरियां पाल लेते हैं
यही असहजता की निशानी है .
आप की माइक्रो पोस्ट में आप सहीं हैं मैं आपसे सहमत हूँ
जो कुंठित और छिद्रान्वेषी होगा जो आँख पे पट्टी बाँध के
हाथी का मुआयना कर रहा होगा वो भले कुछ भी माने
मैं मानता हूँ की दूरियां "संकीर्ण-मानस"की मज़बूरियाँ ही तो है
मुझे आपको हम सब को पिता-माता,भाई-बहन से अपेक्षाएं
करने से पहले हर नकारात्मक के विष को पीने की क्षमता
विकसित करनी होगी तभी हम मज़बूर न होंगे
दूरियां न होंगी विशाल सागर- सम्राट से हम
सर्वप्रिय होंगें

PREETI BARTHWAL ने कहा…

दिल ही है जो दुरियों को नजदीकियों में बदल सकता है,
दिल जो चाहे तो मजबूरियों को खत्म कर सकता है।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही फरमाया और बड़े गहरे उतरे.

समय चक्र ने कहा…

आपकी निम्नाकित टीप बहुत ही सही और सटीक है
"मुझे आपको हम सब को पिता-माता,भाई-बहन से अपेक्षाएं
करने से पहले हर नकारात्मक के विष को पीने की क्षमता
विकसित करनी होगी तभी हम मज़बूर न होंगे
दूरियां न होंगी विशाल सागर- सम्राट से हम
सर्वप्रिय होंगें"
सत्यवचन .आभार गिरीश जी

राज भाटिय़ा ने कहा…

दुरियो मे कोई दरार ना आये? कोई भडकाने वाला ना हो?तो दुरिया अपने आप ही खत्म हो जाती है.
धन्यवाद

G Vishwanath ने कहा…

इंटरनेट का युग है।
कम से कम एक प्रकार की दूरी तो मिट गई।
हम ब्लॉग जगत के मित्रों से इस नवीन माध्यम के कारण कोई दूरी महसूस नहीं करते।
चित्र ने मन मोह लिया।
इस प्यारे बच्चे को कौन देल से दूर रखना चाहेगा?

नीरज गोस्वामी ने कहा…

महेंद्र जी माइक्रो पोस्ट में गहरी बात कर गए हैं आप...वाह...और आप का चित्र...लाजवाब.
नीरज

Vivek Gupta ने कहा…

सुंदर माइक्रो पोस्ट

Anil Pusadkar ने कहा…

भई वाह कया कहने।

Girish Kumar Billore ने कहा…

यह टिप्पणी किसी विशेष कारण से अंकित ज़रूर है क्योंकि यह सार्वजनिक समस्या है

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Beshak...
बेशक.....

seema gupta ने कहा…

वक्त गर आ जाए अगर तो सच्चे प्रेम और सच्चे रिश्तो की डोर दूरियों को भी लांघकर नजदीकियो में बदल देती है, चाहे फ़िर वह झूठा बहाना ही क्यो न हो .......
"yes yes yes, very right and trule said...."

Regards

Abhishek Ojha ने कहा…

सच्ची बात !

समीर यादव ने कहा…

सही है...! सांच को आँच क्या..

समय चक्र ने कहा…

आपकी टिप्पणी से मुझे लिखने का मानसिक संबल मिलता है और आपकी अभिव्यक्ति से मुझे दिशा प्राप्त होती है.आप सभी का मै आभारी हूँ.