19.12.08

हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है


हम इस तरह से मंजिले मकसद तक पहुंचे है
मैंने काँटों भरी राह को हम सफर समझा है.



मेरी आँखों में बसे दिल को उतर कर नही देखा
समुन्दर नही देखा कश्ती के उस मुसाफिर ने.

चाँद तारे मुस्कुराते रहे, दिल में अरमां बने रहे
बढ़ता दर्द ढलती रात पर वो फ़िर भी नही आए.







गिरता है समुन्दर में दरिया बड़े उमंग उत्साह से
लेकिन दरिया में समुन्दर नही गिरता प्यार से

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9 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

सुंदर रचना. प्रयोग में हम हमेशा यही कहते हैं की दरिया समुंदर में गिरती है. पर गिरते हुए किसी ने नहीं देखा होगा. आभार.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

ghazal ke saath chitra bhi khoobsoorat hain.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रचना के साथ सुन्दर चित्र।बहुत बढिया प्रस्तुति।बधाई।

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर रचना के साथ सुंदर चित्र भी ! वाह !

राज भाटिय़ा ने कहा…

इस सुंदर गजल ओर सुंदर चित्रो के लिये आप का धन्यवाद

Smart Indian ने कहा…

सुंदर!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बेहतरीन चित्रों से सजी आप की ये रचनाएँ बेमिसाल हैं...बधाई...
नीरज

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बढ़िया कविता और उससे मैच करते चित्रों का संयोजन! आपने पोस्ट पर निश्चय ही सार्थक मेहनत की है।

kumar Dheeraj ने कहा…

खूबसूरत लिखते है । आपने कविता के जरिए जो लिखी है वह काबिलेतारिफ है जरूर लिखिए