दोनों की किस्मतो का आज फैसला होगा
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.
तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.
किस्मत कहाँ.. मै उड़कर पहुँचू बहारो तक
कभी दिल में कभी गुलिस्ता को झांकता हूँ.
अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.
मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको
उसकी दुनिया मै अपने साथ ले जा रहा हूँ.
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.
तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.
किस्मत कहाँ.. मै उड़कर पहुँचू बहारो तक
कभी दिल में कभी गुलिस्ता को झांकता हूँ.
अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.
मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको
उसकी दुनिया मै अपने साथ ले जा रहा हूँ.
15 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूब महेन्द्र जी!
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
जमाने और मोहब्बत की जंग मे मोहब्बत की जीत होगी....शानदार रचना
regards
waah bahut hi sundar
जमाने ओर मोहाब्बत की जंग ..... बहुत ही सुंदर रचना, लेकिन हार पक्की.
धन्यवाद
तो एक जंग यह भी लड़ी जा रही है -शुभकामनाएं !
वाह ! बहुत खूब !
बहुत अच्छा लगा आपका अंदाजे बयां
सुंदर रचना. विजयी भव. आभार.
जमाने और मोहब्बत की जंग मे मोहब्बत की जीत होगी....
आमीन!!!!
आमीन!!!!
आमीन!!!!
मोहब्बत चीज ही ऐसी है
शानदार रचना
bahut khoob, mahendra ji
महेंद्र जी
अच्छे अंतरे प्रस्तुत किए हैं आपने
ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं .......
दोनों की किस्मतों का आज फैसला होगा
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.
तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.
अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.
फ़िर भी आप अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं
- विजय
तुम अपनी उलझी जुल्फों को सुलझाती हो...वाह...पढ़ कर कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक..ग़ज़ल याद आगयी...
नीरज
महेंद्र जी...
यकीनन उम्दा लिखा है.. प्यार को चाहे हम खोयें या हम ना चाहते हुए भी उस्को छोड़ कर जायें.. ऐसे डर साथ लगे ही रहते हैं.. कुछ पंक्तियां याद आयी..
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी...
आदर सहित
सुन्दर जी।
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