6.1.09

मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको

दोनों की किस्मतो का आज फैसला होगा
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.

तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.

किस्मत कहाँ.. मै उड़कर पहुँचू बहारो तक
कभी दिल में कभी गुलिस्ता को झांकता हूँ.

अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.

मेरे बाद जमाना क्या पूछेगा कभी उसको
उसकी दुनिया मै अपने साथ ले जा रहा हूँ.

15 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

बहुत ख़ूब महेन्द्र जी!

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

seema gupta ने कहा…

जमाने और मोहब्बत की जंग मे मोहब्बत की जीत होगी....शानदार रचना

regards

mehek ने कहा…

waah bahut hi sundar

राज भाटिय़ा ने कहा…

जमाने ओर मोहाब्बत की जंग ..... बहुत ही सुंदर रचना, लेकिन हार पक्की.
धन्यवाद

Arvind Mishra ने कहा…

तो एक जंग यह भी लड़ी जा रही है -शुभकामनाएं !

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह ! बहुत खूब !

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपका अंदाजे बयां

P.N. Subramanian ने कहा…

सुंदर रचना. विजयी भव. आभार.

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

जमाने और मोहब्बत की जंग मे मोहब्बत की जीत होगी....
आमीन!!!!
आमीन!!!!
आमीन!!!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मोहब्बत चीज ही ऐसी है
शानदार रचना

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

bahut khoob, mahendra ji

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र जी
अच्छे अंतरे प्रस्तुत किए हैं आपने

ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं .......
दोनों की किस्मतों का आज फैसला होगा
एक तरफ़ जमाना है एक तरफ़ मोहब्बत.

तुम अक्सर उलझी जुल्फों को सुलझाती हो
कभी तुमसे उलझी हुई किस्मत सुलझेगी.


अपनी धुन में आज दुआ को भी भूल गया
नामे खुदा भूल गया वो जब करीब मेरे आये.



फ़िर भी आप अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं
- विजय

नीरज गोस्वामी ने कहा…

तुम अपनी उलझी जुल्फों को सुलझाती हो...वाह...पढ़ कर कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक..ग़ज़ल याद आगयी...
नीरज

Unknown ने कहा…

महेंद्र जी...
यकीनन उम्दा लिखा है.. प्यार को चाहे हम खोयें या हम ना चाहते हुए भी उस्को छोड़ कर जायें.. ऐसे डर साथ लगे ही रहते हैं.. कुछ पंक्तियां याद आयी..

चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी...

आदर सहित

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सुन्दर जी।