स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय लोग यह कहा करते थे कि अंग्रेजो का काम था लोगो में आपस में फूट डालो और राज करो और अपना उल्लू सीधा कर अपना परचम फहराओ . अंग्रेज तो चले गए है पर वे अपनी नीति हम भारतीय लोगो को दिल से सिखा गए है और उस नीति का प्रयोग कुछ भारतीय जन बखूबी प्रयोग कर रहे है . कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के इस नीति का भरपूर प्रयोग कर है . ऐसे जनों को आप क्या कह सकते है .
ऐसा ही एक वाकया गए गुजरे दिनों मेरे साथ हुआ है . आज भी वह बात मुझे रह रह कर कसोट रही है कि मैंने ऐसे व्यक्ति से उसकी उपरी सज्जनता को देखकर अचानक दोस्ती कैसे कर ली . वाकया इस प्रकार है . ब्लागिंग के क्षेत्र में मै करीब दो सालो से कलम उकेर रहा हूँ . ब्लागिंग के दौरान मित्रता का क्षेत्र बढ़ा . जब मित्रो के बारे में कुछ करने की सोची . न जाने कहाँ कैसे मुलाक़ात हो गई . मैंने बताया की भाई अब याहब भी कुछ कर लो तो भाई ने फोन नंबर लिया तड से संपर्क किया . एक कार्यक्रम में दूसरे के कार्यक्रम में उन महोदय से मुलाक़ात की और मौके भरपूर लाभ उठाने की द्रष्टि से एक कार्य शाला आयोजित करने की घोषणा कर डाली और जोरदार तालियाँ पिटवा ली . वे महोदय चले गए और वे भी घोषणा करके चले गए पर कार्य शाला डेढ़ वर्ष गुजर जाने के बाद भी आज तक आयोजित नही की गई .
जनाब की अगली कारगुजारी भी देखिये . मौके पे गए नही किसी के पर अपना नाम हो अपनी वाह वाही हो तो मौके का लाभ उठाते हुए अपनी मर्जी से एक काम कर डाला . पहले उस काम को करने के लिए किसी की सलाह चाहते थे और अवसर जानकर उस काम को दूसरे की सलाह लिए बिना कर लिया और सभी को ठेल दिया और कह दिया मुझे कार्यक्रम जल्दी करना था तो कर लिया .
कार्यक्रम के बाद कह दिया जो आए तो उनका आभार और जो न आए उनका आभार . जब मैंने यह पढ़ा तो असल मेरी जल्दी समझ में आ गया कि भैय्या ये तो मौका परस्त है . चार नए लोगो को खड़े कर वाहवाही तो लुटवा ली पर सामने वाले आपके पूर्व परिचितों के सामने उनकी कलई तो खुल गई . एक वाकया और एक रात फोन किया आप क्यो नही आए तो मैंने कहा व्यक्तिगत परेशानी थी . उदास होकर बोले किसी ने आपको भड़का दिया है यहाँ तो खेमाबाजी और गुटबाजी है .
यह सब सुनकर मेरा दिल उदास हो गया . मै ऐसा इंसान नही हूँ और न मेरे पास समय है कि मै यह सब कर सकूँ यह सब सोचकर परेशान रहा तो मित्र लोगो ने बताया कि ये तो उनकी पुरानी आदत है खलल डालना और वाह वाही लूटना . .....और वे महोदय हर क्षेत्र में खेमाबाजी में चर्चित रहते है और खेमेबाजी और गुटबाजी में विश्वास करते है और क्षेत्रो के पुराने खल है .
आज मैंने अंग्रेजो की फूट डालो नीति को दिल से अनुभव किया कि यह बुराई हम भारतीय जनों के रगों में अब भी दौड़ रही है . भाई अंग्रेज चले गए पर भारतीय लोग जो नीति का पालन कर रहे है यह नीति बुराई कब छोडेंगें ? . इस तरह की ऐसे लोगो की हरकतों से लोगो में कटुता का ही वातावरण निर्मित होता है और इसमे किसी कि भलाई नही है .. यह सब जानकर मैंने भी संकल्प कर लिया है कि ऐसे मौकापरस्त लोगो से मुझे दूर रहना चाहिए उसमे ही मेरी भलाई है .
व्यंग्य-महेंद्र मिश्र
जबलपुर
11 टिप्पणियां:
बहुत गलत बात है यह फूट डालना !
सही कहा आपने
विभिन्न लोग विभिन्न प्रकार के होते हैं.हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अच्छे - बुरे की पहचान की क्षमता अपने में पैदा करे.
जब हम कान के कच्चे हैं तो उनका दोष क्या?
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
मौका परस्ती तो साहित्यिक जगत में होता ही है. क्या आप सोच रहे हैं की ब्लॉग अछूता है? यहाँ भी होता है. सब अवरोधों को पार करने की कला भी सीखनी होगी. आपकी बात से हम सहमत हैं. आभार.
महेंद्र भाई
नमस्कार
मैं भाई सुब्रमनियम जी की बात से बिल्कुल सहमत हूँ कि "मौका परस्ती से ब्लॉग भी अछूता नहीं है" साथ ही मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि आप अपनी चुनी राह पर ही बढ़ते रहें, एक दिन अवश्य ऐसा आएगा कि जब कोई भी ग़लत इंसान आत्मावलोकन करेगा तो कम से कम एक बार अवश्य सोचने पर मजबूर होगा कि कि मैं वाकई ग़लत था.
और उस दिन उसका पश्चाताप ही हमारी सही सफलता होगी.
एक बात उन लोगों के लिए भी कहना चाहूँगा कि वे ऐसी बातों से बाज़ आयें कि जब तक वे समझें तब तक देर न हो जाए.
मिश्रा जी अंत मैं आपकी बात से करना चाहूँगा हूँ कि जब आपने ख़ुद ही लिखा है कि "इस तरह की ऐसे लोगो की हरकतों से लोगो में कटुता का ही वातावरण निर्मित होता है और इसमे किसी कि भलाई नही है ." और आप ये भी फरमा रहे हैं कि ." यह सब जानकर मैंने भी संकल्प कर लिया है कि ऐसे मौकापरस्त लोगो से मुझे दूर रहना चाहिए उसमे ही मेरी भलाई है ". समझदार वही होते हैं जो हर हाल में अपनी राह तय कर ही लिया करते हैं.
- विजय
http://hindisahityasangam.blogspot.com/2009/01/blog-post_9566.html
'तुलसी या संसार में भांति-भांति के लोग।' आप तो अपना काम करते रहिए। जो सबको नासमझ समझे वह सबसे बडा नासमझ। ये पब्लिक है, सब जानती है। आपको कुछ भी कहने की जरूरत नहीं। लोग सबको निपटा देते हैं।
महेंद्र भाई अब क्या कहे मेरी जिन्दगी मै तो काफ़ी लोग आये,मै घर से बाहर रहा ही नही था, इस लिये इन दुनिया के तोर तरीके मुझे नही आते थे, लेकिन मै धन्यवाद करता हुं उन मोका परस्त लोगो का जिन्होने मुझे इस दुनिया के तोर तरीके सीखा दिये, बस बार बार ठोकर खा कर अकल आ जाये यही काफ़ी है, आगे से जल्द विशवास मै मत आये.
धन्यवाद
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पूरा मामला समझ में नहीं आ रहा है...। शायद कॊई नितान्त व्यक्तिगत आघात लगा है महेन्द्र जी को। ?
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