बदल गई है सारी दास्ताँ फर्क महज ये इतना ही है
बस दो कदम की दूरी है फिर भी मिलना कठिन है.
जब बदल गई शमां तो शमां फजल भी बदल गई है
आरजू जिस नजर की थी मैंने वो नजर बदल गई है.
जख्म अपनों से खाए जख्म खाना आदत हो गई है
आरजू जिस निगाह की थी वो निगाहें बदल गई है.
जो दाग मेरे माथे पर तूने जिस बेदर्दी से लगाया है
खुदा फिर भी उन्हें सलामत रखें यही मेरी दुआ है.
......
बस दो कदम की दूरी है फिर भी मिलना कठिन है.
जब बदल गई शमां तो शमां फजल भी बदल गई है
आरजू जिस नजर की थी मैंने वो नजर बदल गई है.
जख्म अपनों से खाए जख्म खाना आदत हो गई है
आरजू जिस निगाह की थी वो निगाहें बदल गई है.
जो दाग मेरे माथे पर तूने जिस बेदर्दी से लगाया है
खुदा फिर भी उन्हें सलामत रखें यही मेरी दुआ है.
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4 टिप्पणियां:
जो दाग मेरे माथे पर तूने जिस बेदर्दी से लगाया है
खुदा फिर भी उन्हें सलामत रखें यही मेरी दुआ है.
बहुत सुंदर
धन्यवाद
महेंद्र भाई
नमस्कार
बहुत अच्छी रचना है आपकी
"आरजू जिस निगाह की थी वो निगाहें बदल गई है."
अच्छी अभिव्यक्ति है
-विजय
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर: मुझे जीने दो...#links#links
आरजू जिस नजर की थी मैंने वो नजर बदल गई है....यह पंक्ति विशेष पसंद आई।
जख्म अपनों से खाए जख्म खाना आदत हो गई है
बहुत खूब महेंद्र जी...वाह.
नीरज
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