17.3.09

जीवन सागर है डूबोगे मोती पाओगे

जीवन सागर है डूबोगे मोती पाओगे
बैठोगे तट पर बस सीट ही पाओगे

तैरोगे तेज धार में तीव्र गति पाओगे
लहर नाव बैठे मंजिल तक जाओगे

तुम हंस के माथे पर बिंदियाँ लगाओ
हरी चुनरिया से कविता को सजाओ.

जाओगे झोपडी में दर्द बाँट लाओगे
सूनी आँखों में ज्योति भर लाओगे.

शोषित को शोषण से दूर खींच लाओगे
पहुंचोगे सीमा पर जीवन फल पाओगे.

......

7 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

mahendra bhai,
jindagee ko samjhane aur samjhaane ka ye pahloo bhee anokaa laga, haan ye anusaran karne waalon kee list mein khud aap dikhaayee pad rahe hain, samjhaa nahin.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर भाव ... सुंदर प्रस्‍तुतीकरण भी ... बधाई।

Udan Tashtari ने कहा…

जाओगे झोपडी में दर्द बाँट लाओगे
सूनी आँखों में ज्योति भर लाओगे.

-अच्छे भाव!!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

महेंद्र जी
"जीवन सागर है डूबोगे मोती पाओगे " रचना दिल को छु गयी.
बहुत ही सुकून देने वाली कविता है. आनन्द आ गया .
- विजय

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जाओगे झोपडी में दर्द बाँट लाओगे
सूनी आँखों में ज्योति भर लाओगे.
........ati sundar rachna.........

राज भाटिय़ा ने कहा…

जाओगे झोपडी में दर्द बाँट लाओगे
सूनी आँखों में ज्योति भर लाओगे.
बहुत ही सुंदर धन्यवाद

vandana gupta ने कहा…

jeevan sagar hai duboge moti paoge
bahut gahre bhav.