31.3.09

चलना सिखा दिया.... गलना सिखा दिया है

चलना सिखा दिया गलना सिखा दिया है
घनघोर आंधियो में जलना सिखा दिया है

हमें मिला है अपने श्रद्धेय गुरुदेव का बल
माँ ने हमें दिया है अपना पुनीत आंचल

सुख दुःख है यहाँ मैदान और दल दल
संसार एक पथ है जिसमे न फूल केवल

काँटों भरी डगर पे चलना सिखा दिया है
फूलो की सेज के इच्छुक है सभी यहाँ

लेकिन प्रकाश के कण दिखते नहीं कही पर
तम की महानिशा में चलना सिखा दिया है

यहाँ साधन भरे पड़े है पर साधना नहीं है
भगवान तो वही है पर यहाँ साधना नहीं है

चलना सिखा दिया गलना सिखा दिया है
अपनी उपासना को फलना सिखा दिया है

साभार-युग निर्माण योजना से रचना.
जय गुरुदेव

8 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

"काँटों भरी डगर पे.... चलना सिखा दिया है "

धन्यवाद महेंद्र जी !!!!! बहुत ही अच्छे गीत का विस्मरण करवा दिया ! कृपया ऐसे ही गुरुदेव के विचार ब्लॉग के जरिये पहुचाते रहे ! जय गुरुदेव

अजय कुमार झा ने कहा…

waah bahut khoob kya aandaaje bayan hai mahender bhai , maja aa gaya padh kar.

अनूप शुक्ल ने कहा…

चरैवेति-चरैवेति!

विवेक सिंह ने कहा…

बहुत कुछ सीख गए आप !

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

हाँ विवेक जी
बहुत कुछ सीख गया हूँ पर देर से सीखा हूँ .हा हा हा

Unknown ने कहा…

चलना सिखा दिया गलना सिखा दिया है
घनघोर आंधियो में जलना सिखा दिया है

bahut sunder sir ji

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

ati sunadr bhai ji